आज समूचा विश्व कोरोना जैसी घातक बीमारी से जूझ रहा है। लेकिन इस घातक बीमारी से भारत अपने आपको काफी सीमा तक बचा सकता था, अगर पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने में भारतीय संस्कृति का अनदेखा नहीं किया होता। एक समय था, जब भारत के किसी भी प्रान्त में जाओ, पीपल, बरगद और नीम के पेड़ों की अधिकता देखने को मिलती थी, लेकिन आज पश्चिमी सभ्यता के आगे अंधे होकर इन वृक्षों के महत्व को नज़रअंदाज़ कर दिया। ये केवल वृक्ष ही नहीं वनस्पति हैं, औषधि है। जितनी ऑक्सीजन इन वृक्षों से प्राप्त होती है, किसी अन्य वृक्ष से नहीं। कोरोना में शिकायत ऑक्सीजन की कमी सामने आ रही है। वेदों एवं शास्त्रों में इसका उल्लेख भी मिलता है। कभी प्रदूषण का सियापा और अब कोरोना। जहां तक प्रदूषण की बात है, जितना सियापा दिल्ली में होता है, या दिल्ली की सीमा से सटे प्रांतों के कुछ भाग में होता है, उतना किसी अन्य राज्य में नहीं। दिल्ली से शीला दीक्षित की सरकार जाने के बाद से प्रदूषण का जरुरत से ज्यादा सियापा हो रहा है।
बाबा रामदेव द्वारा दन्त मंजन एवं पेस्ट निर्मित करने से पूर्व जो बड़ी-बड़ी कंपनियां मंजन एवं पेस्ट में नमक, कोयला एवं अन्य चीजों से सावधान रहने के लिए सतर्क करती थीं, आज वही कंपनियां अपने व्यवसाय को बनाए रखने के लिए उन्हीं चीजों का प्रयोग कर रही हैं, जो बाबा रामदेव द्वारा किया जा रहा है।
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु,
सखा शंकरमेवच।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम,
वृक्षराज नमस्तुते।।
पिछले 70 सालों में पीपल, बरगद और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर लगाना साजिशन बन्द किया गया है।
ये तीनो पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं ओर पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड का 100% एबजार्बर है, बरगद 80%, नीम 75% और कीकर 65 से 70%
अब सरकार ने इन पेड़ों से दूरी बना ली तथा इसके बदले विदेशी यूकेलिप्टस को लगाना शुरू कर दिया जो जमीन को जल विहीन कर देता है।
इस यूकेलिप्टस के पेड़ को लगाना राजीव गांधी के जमाने में चालू किया, आज हर जगह यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य सजावटी पेड़ो ने ले ली है।
अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नहीं रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ जायेगा।
हर 500 मीटर की दूरी पर एक पीपल का पेड़ लगाये तो आने वाले कुछ साल भर बाद प्रदूषण मुक्त हिन्दुस्थान होगा।
वैसे आपको एक और जानकारी दे दी जाए।
पीपल के पत्ते का फलक अधिक और डंठल पतला होता है जिसकी वजह शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं।
अनेक पिछड़े इलाकों में अनेक पिछड़े इलाकों में तो पीपल बरगद आदि पेड़ों को लगाने को लेकर अनाप-शनाप भ्रांतियां भी फैलाई जाती हैं यह काम ज्यादातर ईसाई और म्लेच्छों का होता है जबकि भारतीय संस्कृति में आम पापड़ पीपल तुलसी केला बरगद आक ढाक जैसे पेड़ों को लगाना धन वैभव स्वास्थ्य और संतान सुख का कारण माना जाता है
वैसे भी पीपल को वृक्षों का राजा कहते है। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु,
सखा शंकरमेवच।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम,
वृक्षराज नमस्तुते।
अब करने योग्य कार्य
हम सभी इन जीवनदायी पेड़ों को ज्यादा से ज्यादा लगायें तथा यूकेलिप्टस से परहेज के लिए कोशिश करेंगे सरकार को भी वन संवर्धन अभियान को तेज करने और नीम पंया बड़ पीपल आम व केला व तुलसी जैसे पूजनीय और वायु शोधक पेड़ों को लगाने का अभियान तेज करने के लिए वाध्य किया जाय ।
आइये हम सब मिलकर अपने “भारत” को प्राकृतिक आपदाओं से बचाएँ।
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