तालिबान कौन हैं और क्या है इनका असली मकसद? भारतीयों ऑंखें खोलो

अपने देश में अपनी पत्नी बेटी और बहन को आतंकियों को सौंप कर भागते पठानों को देख कर जंजीर फ़िल्म का वो पठान का बच्चा याद आ गया जो दोस्त के लिए जान कुर्बान करने का माद्दा रखता था। कितना फर्जीवाड़ा तैयार किया गया था स्क्रिप्ट राइटरों द्वारा। भोगल का पूरा इलाका अफगानी पठानों से पटा पड़ा है। ड्रग्स और सेक्स का कारोबार करते हैं। भोगल में पाकिस्तान से आये पंजाबी शरणार्थियों के लिए मकान अब अफगान पठानों से गुलजार रहते हैं। इनकी वजह से भोगल काफी महंगा हो चुका है। अब धीरे धीरे यहां के पंजाबियों ने अलग फ्लैट ले लिए पर वह अपने पुराने मकानों को अफगान पठानों को ही देना ज्यादा पसंद करते क्योंकि उन्हें ज्यादा पैसे मिलते हैं। आजकल भोगल में अफगानी दुकानें बड़ी मात्रा में खुल रही हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स, फ़ूड, मेडिकल, जिम इत्यादि क्षेत्रों में इनकी बड़ी संख्या देखी जा सकती है। कुछ तो यहाँ के मुसलमानों से शादी कर स्थाई निवासी भी बन चुके हैं, सनद रहे कि इनके आर्थिक मजबूती का आधार इनकी औरतें और ड्रग्स के धंधे हैं। 

इन पर न तो सरकार की दृष्टि जाती है न ही आम जनता जिसमें खासकर पंजाबी समुदाय शामिल है उसको आने वाले खतरे के बारे में पता है। इसका कारण है कि उनके मुंह में अवैध धंधे वाले पैसे ठूंसे गए हैं। सूत्र बताते हैं कि इनमें उन पठानों के लक्षण नही दिखे जो फिल्मों में सलीम जावेद की जोड़ी दिखाती है। खुदा गवाह में एक ठाकुर और पठान के किस्से को जिस तरीके से फिल्माया उससे भी यह लगा कि पठान का बच्चा हाथ पर अपना सिर लेकर आएगा पर आएगा जरूर लेकिन यहां जब देखता हूँ तो सिवाय मुंह छिपाने, जाहिलियत और काइयाँपन के कुछ नज़र नही आता। हो सकता कि कुछ अपवाद हों पर कोई कौम अपवादों के सहारे इतना बड़ा नरेटिव सेट नही कर सकती। 

काबुल हवाई अड्डे पर जो कुछ हुआ वह देख कर लगा कि एक नामर्द कौम जो अपनी बीबी और मासूम बच्चों को बलात्कृत होने को छोड़ दे और भाग जाए उसे मर्द का बच्चा कैसे परिभाषित कर दुनिया को दिखाया गया। अशरफ गनी भाग गया, अधिकारी भाग गए, लोग भाग रहे, ऐसे भगोड़ों को क्या बहादुर कौम कहा जा सकता है? भागते तो ठीक पर अपने परिवार के साथ भागते तो वह न्यायोचित होता, परिवार की रक्षा में मर जाते तो यह समझा जाता कुर्बानी देने वाली कौम है। 

पंडित राजेश और पठान का बच्चा

अफगानिस्तान में यदि कोई वीर है तो वह एक मंदिर में धर्मध्वजा को पकड़े एक पंडित राजेश नाम का मनुष्य है जो यह जानता है कि आतंकी उसे छोड़ेंगे नही पर वह अपने धर्म से एक माशा भी नही डिगा है पर वह यह भी जानता है कि शरीर के नष्ट होने से आत्मा नही मरती, वह धर्म को धारण करने के लिए पुनः शरीर धारण करेगा। यह होती है सनातन की शक्ति यह होता है ब्रह्म तेज जिसने शताब्दियों तक भीषण प्रहार झेला फिर भी आज तक टिका हुआ है।

सिकन्दर ने भारत पर जब 326 B.C. आक्रमण किया कहते हैं तब पंजाब छोटे छोटे राज्यों में बंटा हुआ था अतः वह कुछ छोटे राज्य जीतने में सफल हो गया।

किन्तु 305 B. C. में जब उसके उत्तराधिकारी सेल्यूकस ने भारत पर आक्रमण किया तो उसका सामना चंद्रगुप्त मौर्य के एकछत्र शासन से हुआ। परिणामस्वरूप न केवल उसकी हार हुई बल्कि उसे अपनी पुत्री हेलेना की शादी चंन्द्रगुप्त से करनी पडी तथा काबुल, कंधार, हेरात व बिलोचिस्तान 4 प्रांत भी देने पडे जो आज अफगानिस्तान व पाकिस्तान हैं।

ऐसे ही जब मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी, मौहम्मद गौरी, तैमूर और बाबर ने भारत पर आक्रमण किये थे भारत बिखरा हुआ था इसलिए वे लोग सफल हो गये।

किन्तु इस समय भारत एक मजबूत देश है इसलिए अगर किसी पाकिस्तानी या तालिबानी या उनके किसी भारतीय रिश्तेदार को लगता हो कि वो भारत पर कब्जा कर लेंगे तो भूल जाना।पिटोगे तो लेकिन हेलेना भी देनी पड़ेगी।अखण्ड भारत का नक्शा अभी बहुतों ने संभाल कर रक्खा है। 

भारतीयों ऑंखें खोलो 

म्यांमार में जब मुसलमान बौद्ध लड़कियों का बलात्कार कर रहा था, भारत का मुसलमान खामोश था।

जब बौद्धों ने रोहिंग्या मुसलमानों को उन्हीं की जुबान में पलट वार शुरू किया, भारत का मुसलमान बिलबिला उठा और भारत की आर्थिक राजधानी को दंगो की आग में झोंक दिया।

जब मुसलमान फ्रांस में लूट-मार,चोरी व बलात्कार कर रहा था, तब भी भारत का मुसलमान खामोश था, पर जैसे ही फ्रांस ने पलट वार किया तो भारत का मुसलमान फिर से देश को आग में झोंकना चाहता था पर मौजूदा राष्ट्रवादी मोदी सरकार के चलते अपने मकसद में कामयाब नही हो पाया।

जब मुसलमान इजराइल में, दंगे-फसाद, लूट-मार कर रहा था, तो भारत का मुसलमान खामोश था, लेकिन जैसे ही यहूदियों ने पलट वार किया, भारत का  मुसलमान फिर से देश जलाने निकला था, पर बीजेपी सरकार के चलते कामयाब न हो सका।

जब आईएसआईएस सीरिया और इराक में मुसलमानों को मारता है तो भारत मुसलमान खामोश रहता है। आज तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में मुसलमानों को मार रहा है तो भी भारत का मुसलमान खामोश है। 

कारण - क्योकि दुनिया के हर मुसलमान का एक ही मकसद है, पूरी दुनिया का इस्लामीकरण, और इस मकसद के रास्ते मे सबसे बड़ा रोड़ा है हिन्दू,

इसलिये पहले हिंदुस्तान में (गज़वा-ऐ-हिन्द) फिर सारा जहां

अफ़ग़ानिस्तान के झूठे आंसुओ में मत आना,

एक बार यूरोप सीरिया के मुसलमान शरणार्थियों को अपने यहां पनाह देकर आज तक पछता रहा है, मुसलमान जिस देश मे शरण मांग के जाता है, उसी देश के कानून को नही मानता, और कुछ सालों बाद, वहां के नागरिकों से ज्यादा अधिकार मांगने लगता है, यही है हादसे,अधिकारों की बात करने लगता है। 

इसलिये इन अफ़ग़ानिस्तान के झूठे आंसू देख के बहक मत जाना

दुनिया मे 57 मुस्लिम देश है, 10+ देश इतने अमीर है कि पूरे 57 देशों को पाल ले, पर किसी भी एक देश ने न सीरिया के मुसलमानों को शरण दी और न ही वो अब अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों को शरण देंगे।

आंख खोल हिंदुस्तानी दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी इंडोनेशिया के बाद, भारत मे ही रह रही है, जिस दिन उनकी संख्या बढ गयी और काग्रेसी, वामपंथी सत्ता मे आ गये उस दिन तू फिर से देश के टुकड़े देखने के लिये तैयार रहियो। भारत की मोदी सरकार पर इतना दबाव बनाओ कि किसी अफगानी को भारत में शरण न दे। मानवता नहीं भारत के भविष्य को बचाना है। 

देखिए सोशल मीडिया पर धर्म योद्धा ग्रुप से प्रोफेसर चंद्र प्रकाश का ऑंखें खोलने वाला लेख :-

तालिबान हैं कौन?

तालिबान ने युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दिया है। बिना किसी खास विरोध के तालिबान के लड़ाके काबुल में प्रविष्ट हो गये और राष्ट्रपति सहित पूरा अफगान प्रशासन काबुल से भाग खड़ा हुआ। करीब 20 साल बाद अब काबुल पर तालिबान का दोबारा कब्जा हो गया है। लेकिन ये तालिबान हैं कौन? कहां से पैदा हुए? इनकी विचारधारा किस इस्लाम से प्रेरित है? 

तालिब का अर्थ होता है विद्यार्थी। तालिबान का अर्थ हुआ विद्यार्थियों का समूह। आज अफगानिस्तान में "विद्यार्थियों के जिस समूह" के कारण तालिबान चर्चा में हैं इनका जन्म पाकिस्तान के एक मदरसे दारुल उलूम हक्कानिया में हुआ था। पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा मुजाहिद (मजहबी योद्धा) तैयार करने का आदेश और डॉलर मिला था जिसे पूरा करने के लिए पाकिस्तानी फौज ने  दारुल उलूम हक्कानिया को चुना। इसी मदरसे से एक तालिब पढकर निकला था जिसका नाम था मुल्ला उमर जो उस समय कराची में कुरान पढाता था। 

दारुल उलूम हक्कानिया के उस समय प्रिंसिपिल थे मौलाना समी उल हक उर्फ मौलाना सैंडविच। मौलाना समी उल हक मुल्ला उमर से बहुत प्रभावित थे। उन्हें जब पाक फौज का आदेश मिला कि अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ जिहाद करना है तो उन्होंने कराची में रह रहे मुल्ला उमर से संपर्क किया। अफगानिस्तान में पैदा हुआ मुल्ला उमर अफगान लैंडलार्ड से छापामार लड़ाइयां लड़ता रहा था इसलिए यह मौका मिलते ही वह अफगानिस्तान में जिहाद के लिए तैयार हो गया और इस तरह तालिबान का जन्म हुआ। 

दारुल उलूम हक्कानिया देओबंदी इस्लाम की शिक्षा देने वाला मदरसा है इसलिए वहां से जो तालिबान निकले वो देओबंदी इस्लाम की शिक्षाओं को मानने वाले हैं। देओबंद भारत में सहारनपुर जिले का एक कस्बा है जहां हनफी इस्लाम पर आधारित एक मदरसा संचालित होता है जिसका नाम है दारुल उलूम। दारुल उलूम देओबंद दुनिया की सबसे कट्टर इस्लामिक विचारधाराओं में से एक है। इसकी कट्टरता के कारण ही इस मदरसे की तुलना मिस्र की अल अजहर युनिवर्सिटी से की जाती है जिसने अल कायदा को जन्म दिया। 

दारुल उलूम देओबंद को माननेवाले देओबंदी मुसलमान कहे जाते हैं। ये देओबंदी मुसलमान अपनी मान्यताओं को लेकर बहुत कट्टर होते हैं और अपने नबी की सुन्नत को बहुत कड़ाई से पालन करते हैं। उनकी सबसे आसान पहचान ये होती है कि वो एक खास तरह का ड्रेस पहनते हैं जिसे सलवार कमीज कहा जाता है लेकिन उनका सलवार उनके टखने के ऊपर ही रहता है। इसके अलावा वो सिर पर पगड़ी बांधते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टर इस्लाम का सबसे बड़ा प्रचार दारुल उलूम देओबंद ही करता है। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में देओबंदी इस्लाम को मानने वाले कट्टर और आक्रामक माने जाते हैं। ऐसा अनुमान है कि भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 20 प्रतिशत मुसलमान इस समय देओबंदी इस्लाम को अनुसरण करते हैं। 

दारुल उलूम देओबंद एक ऐसे इस्लामिक स्टेट का स्वप्न देखता है जिसमें शिर्क न हो। शिर्क का अर्थ हुआ जहां अल्लाह के अलावा और किसी को मानने और पूजनेनाले न रहते हों। इसके लिए उनके मदरसों से तालिबान तैयार किये जाते हैं जो ये मानते हैं कि शासन करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ देओबंदी मुसलमान के पास है। बाकी जो गैर मुस्लिम या फिर गैर देओबंदी मुस्लिम भी शासन कर रहे हैं उनको शासन से बाहर निकाल देना उनका इस्लामिक दायित्व है। इसलिए आज अफगानिस्तान में तालिबान इस्लामिक शासन के खिलाफ ही लड़ रहा है। 

आपको यह जानकर थोड़ा आश्चर्य होगा लेकिन सत्य यही है। अफगानिस्तान में अफगान सेना और तालिबान के बीच जारी ताजा लड़ाई के लिए गोला बारुद और हथियार भले ही पाकिस्तान और चीन दे रहे हों लेकिन उसका वैचारिक आधार भारत ने दिया है। भारत के एक मदरसे ने दिया है जिसका नाम दारुल उलूम देओबंद है। पाकिस्तान का पूरा आतंकी नेटवर्क देओबंदी और जमाती विचारधारा ही चलाती है। अब इस उपलब्धि पर हम भारतीय चाहें तो शर्म कर सकते हैं या फिर चाहे तो गर्व। लेकिन जो आज अफगानिस्तान में हो रहा है, वह कल पाकिस्तान में होगा और वही परसों हिन्दुस्तान में भी होगा। आज काबुल ढहा है। कल इस्लामाबाद ढहेगा। और हम नही जागे तो परसों नई दिल्ली भी जमींदोज हो जाएगा।

दुख्तरे अफगानिस्तान नीलाम ए तीन सौ डॉलर

अफगानिस्तान के गजनी मे शहर के बाहर एक बड़ा चौक है, उसमे बने एक चबूतरे पर कभी हिंदू बेटियां दो-दो दीनार में नीलाम की गई थीं। उस स्थान पर इस याद के लिए आक्रमणकारी मुसलमानों ने एक स्तम्भ बनवाया था, जो आज भी उस नीलामी के याद में अफगानिस्तान में धरोहर के रूप में संजोकर रखा गया है, जिस पर लिखा है -

दुख्तरे हिन्दोस्तान : नीलामे दो दीनार

अर्थात यहाँ हिन्दुस्तानी औरते दो-दो दीनार मे नीलाम हुई। 

ईश्वरीय न्याय देखिए की आज उसी अफगानिस्तान मे अफगानी लड़कियां तीन तीन सौ डॉलर मे बेची जा रही हैं वो भी तथाकथित इस्लाम के रक्षक तालिबानियों द्वारा।

इसी को कहते हैं कि ईश्वर की लाठी में आवाज नही होता है !

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