‘हाँ मैं अराजक हूँ’, साल 2014 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था। यह उनका सिर्फ कथन ही नहीं, समय-समय पर उनके कार्यों से भी इसकी झलक मिलती है। चाहे दिल्ली पुलिस को ठुल्ला कहना हो या गणतंत्र दिवस की परेड से कुछ दिन पहले अपने विधायकों सहित दिल्ली की सड़कों पर धरना देना और वहाँ सरकारी फाइलों को ले जाकर काम करने का दिखावा करना, ये कुछ ऐसे काम हैं, जिनसे उन्होंने न सिर्फ अपने कथन को सत्य साबित करने की कोशिश की, बल्कि मुख्यमंत्री के पद की गरिमा को कम किया।पंजाब चुनाव जीतने के बाद तो उन्होंने भारतीय राजनीतिक परंपरा को चुनौती दे दी। मुख्यमंत्री कार्यालय से देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीर हटा दी। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री भगवंत मान की सामने आई मुख्यमंत्री कार्यालय की तस्वीर में महात्मा गाँधी की तस्वीर भी गायब रही। हालाँकि, उन्होंने भगत सिंह और बाबा भीमराव अंबेडकर की तस्वीर लगाई, लेकिन यह भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में स्थापित मानकों के ठीक उल्टा था।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि जहाँ संंवैधानिक रास्ता खुले हों, वहाँ असंवैधानिक रास्ता अपनाना अराजकता है। इस रास्ते को जितनी जल्दी छोड़ दी जाए, उतना बेहतर है। जब केजरीवाल ने कहा था कि हाँ ‘मैं देश का सबसे बड़ा अराजकतावादी हूँ’ तो लोगों ने उनकी राजनीतिक अपरिक्वता समझकर नजरअंदाज कर दिया था, लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने उनके ऊपर लगे उस लेवल को हटने में बाधा का काम किया है।
खालिस्तान का परोक्ष समर्थन, दिल्ली के शाहीन बाग के अराजक एवं देशद्रोही तत्वों को समर्थन से लेकर कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार और पलायन का मजाक, ऐसे तमाम मुद्दे हैं जिसने मुख्यमंत्री केजरीवाल की मंशा और उनकी नीति पर सवाल खड़े किए। कोरोना काल में जब देश और दुनिया में अपने-अपने लोगों को सहारा देने की कोशिश की जा रही थी, तब उनके नेता श्रमिकों को उकसा कर सड़कों पर ला रहे थे और उन्हें दिल्ली से बाहर का रास्ता दिखाकर मौत के मुँह में झोंक रहे थे। उस दौरान प्रवासी मजदूरों भूखे और लाचार थे, लेकिन सरकार अपने विज्ञापन पर करोड़ों रुपए फूँक रही थी।
केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली के हर नागरिक के जीवन की रक्षा करना मुख्यमंत्री के रूप में उनका पहला कर्तव्य है। दिल्ली में उन्होंने मुफ्त बिजली और पानी की जो सब्जबाग दिखाकर मुख्यमंत्री बने, उसी की घोषणा वह अन्य राज्यों में करके जनता को ठगने की कोशिश जारी है। चाहे पंजाब हो, गुजरात हो या उत्तराखंड उन्होंने हर जगह वहाँ के हालात और उसकी वित्तीय स्थिति को जाने बिना मुफ्त का लॉलीपॉप थमाने का काम किया। यह आर्थिक अराजकता का एक बड़ा उदाहरण है।
पंजाब में ‘आप’ के लोक-लुभावने वादे
पंजाब चुनावों से पहले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने वहाँ के लोगों को हर महीने 300 यूनिट फ्री बिजली देने की घोषणा की थी। अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि जब पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार बनेगी तो ‘सबसे पहली कलम से जो काम होगा, वह बिजली फ्री देने का काम होगा’। उन्होंने राज्य की हर महिला को 1,000 रुपए प्रतिमाह देने की बात कही थी। अब जब सरकार बन गई तो वह अपने केंद्र से पैसे की माँग करके इसका सारा दोष केंद्र पर डालने की कोशिश कर रहे हैं।
चुनावों से पहले आम आदमी को पता था कि राज्य की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है। पंजाब पर 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है, फिर भी उन्होंने लोगों से लोक-लुभावने वादे किए। चुनाव पूर्व अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि अपने वादों को पूरा करने के लिए उन्हें पता है कि पैसा कहाँ से आएगा और इसका प्रशासनिक ढाँचा कैसा होगा, इसकी पूरी तैयारी कर ली गई है। उन्होंने कहा था कि पंजाब का 1.70 लाख करोड़ रुपए का बजट है और इसमें से भ्रष्टाचार खत्म कर वह 34 हजार करोड़ रुपए बचाएँगे। रेत की चोरी बंद करके 20 हजार करोड़ रुपए आ जाएँगे। इससे वे राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाएँगे।
पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के कुछ दिन बाद ही भगवंत मान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास पहुँचे और उनसे 50,000 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष के दो किस्तों की माँग की। उनका कहना था कि राज्य की वित्तीय स्थिति को सँभालने के लिए उन्होंने केंद्र सरकार से यह पैकेज की माँग की। इस माँग को अरविंद केजरीवाल पंजाब का पैसा बताकर सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं।
केजरीवाल का दावा
आम आदमी पार्टी के ट्विटर हैंडल से 7 अप्रैल को शेयर किए एक वीडियो में मुख्यमंत्री केजरीवाल एक निजी चैनल के पत्रकार से कह रहे हैं कि केंद्र सरकार के पास जो पैसा है, वह पब्लिक का पैसा है और भगवंत मान उसी पैसे को लेने के लिए गए थे। केजरीवाल का कहना है कि पंजाब के पब्लिक का पैसा केंद्र के पास पड़ा हुआ है।
राजनीति में आने से पहले अरविंद केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा (IRS) अधिकारी रहे हैं। उन्हें अच्छी तरह पता होगा कि केंद्र के आय के स्रोत क्या हैं और उसके खर्चे क्या हैं। राज्यों को किस आधार पर राशि का आवंटन होता है। ऐसा नहीं है कि उन्हें वित्त आयोग जैसी संस्थाओं और उसके कामों के बारे में नहीं पता होगा। इसके बावजूद, वह संवैधानिक व्यवस्था को दरकिनार कर माँगी गई राशि को पंजाब का पैसा बता रहे हैं।
कहाँ से आता है केंद्र के पास पैसा
केंद्र के आय में आयकर (Income Tax), कॉरपोरेट टैक्स, उधारी और GST की प्रमुख हिस्सेदारी होती है। केंद्र अपनी आय का 21 प्रतिशत कॉरपोरेट टैक्स, 20 प्रतिशत उधारी, 16 प्रतिशत आयकर और 19 प्रतिशत जीएसटी से प्राप्त करता है। इसके अलावा, केंद्र सरकार को गैर-कर आय से 9 प्रतिशत, कस्टम से 4 प्रतिशत, एक्साइज ड्यूटी से 8 प्रतिशत और गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियों से 3 प्रतिशत की आय होती है।
जहाँ तक खर्च की बात है तो केंद्र सरकार पर केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन-भत्ते, रक्षा, आधारभूत संरचना पर खर्च करना पड़ता है। केंद्र अपनी आय का सबसे अधिक हिस्सा 23 प्रतिशत राज्यों को देता है। 18 प्रतिशत कर्ज का ब्याज चुकाने और 13 प्रतिशत केंद्रीय योजनाओं तथा 9 प्रतिशत उज्ज्वला, मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर खर्च करता है। वहीं, सब्सिडी पर 8 प्रतिशत, रक्षा पर 9 प्रतिशत और पेंशन पर 5 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार खर्च करती है।
राज्यों में पैसे का बँटवारा
जीएसटी प्रणाली के तहत राज्य SGST लेते हैं, जबकि केंद्र CGST लेता है। दोनों ही कर योग्य वस्तु पर लागू जीएसटी का 50% है। इसका मतलब है कि राज्य पहले से ही ज्यादातर वस्तुओं और सेवाओं पर 50% टैक्स खुद ही वसूल कर लेते हैं। इसके अलावा, आयकर और कॉर्पोरेट टैक्स जैसे अन्य करों के साथ केंद्रीय जीएसटी का एक हिस्सा राज्यों को भी दिया जाता है। ऐसे में राज्यों को राजस्व में अपना हिस्सा माँगने के लिए केंद्र के पास जाने की जरूरत नहीं है। वह पहले से ही वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्र द्वारा आवंटित किया जाता है। केंद्रीय बजट 2022-23 में पंजाब को केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किए गए विभिन्न करों से 14,756.86 रूपए करोड़ आवंटित किए जा चुके हैं।
जब केंद्र सरकार अपनी आय का 23 प्रतिशत हिस्सा राज्यों के साथ साझा कर देती है, ऐसे में अपनी लोक-लुभावनों वादों को पूरा करने के लिए केंद्र को दोषी ठहराना अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान का राजनैतिक स्टंट से अधिक कुछ नहीं है। अरविंद केजरीवाल ने इस कदम से यह भी साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार को कम करके अपनी लोक-लुभावन योजनाओं के खर्चों का पोषण उनका महज खोखला दावा था। पहले से ही खस्ताहाल राज्य में अगर मुफ्त वाली घोषणाएँ लागू कर दी जाती हैं तो यह राज्य के लिए आत्मघाती साबित होगा।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पंजाब के हिस्से की पूरी राशि माँग करके संघीय व्यवस्था को चुनौती देने का काम कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने हाल ही में भारत के विचार को चुनौती देते हुए कहा था कि भारत कोई राष्ट्र नहीं, बल्कि ‘राज्यों का संघ’ मात्र है। इस तरह की मानसिकता राज्य को स्वतंत्र इकाई के रूप में पेश कर देश को विभाजित करने का खेल खेलने जैसा है। पंजाब वैसे भी अलगाववाद जैसे खतरों से जूझ रहा है। ऐसे में इस तरह की अव्यवस्था केंद्र और राज्यों के बीच की दूरी को बढ़ाने का काम करेगा।
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