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| साभार: newsclick |
The Govt is likely to scrap the 'Ministry of Minority Affairs' established by the UPA government in 2006 and merge it with the 'Ministry of Social Justice and Empowerment'..! pic.twitter.com/H8AkuaM2mK
— Satya Swara ( Voice of Truth ) (@Satya_Swara) October 3, 2022
उल्लेखनीय है कि अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2 (ग) के तहत छह समुदाय को केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक के तहत अधिसूचित कर रखा है। ये हैं- मुस्लिम, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी और सिख। लेकिन इस मंत्रालय के गठन के समय से ही ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ की सोच झलकती रही है, चाहे वह योजनाओं का क्रियान्वयन हो या फंडिंग या फिर उनका नामकरण।
खबर में कहा गया है कि मंत्रालय के अधिकारियों ने अभी इस मामले पर कुछ भी बताने से मना कर दिया है। लेकिन सूत्र ने कहा है, “भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का मानना है कि अल्पसंख्यक मामलों के लिए अलग से मंत्रालय की जरूरत नहीं है। उनके मुताबिक ये मंत्रालय सिर्फ यूपीए (मनमोहन सरकार) की तुष्टिकरण की राजनीति के चलते (साल 2006 में) बना। अब मोदी सरकार इसे दोबारा से सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के अंतर्गत लाना चाहती है।”
The Centre will likely scrap the Ministry of Minority Affairs established by the UPA government in 2006 and merge it with the Ministry of Social Justice and Empowerment.
— Amar Prasad Reddy (@amarprasadreddy) October 3, 2022
मंत्रालय समाप्त किए जाने को लेकर अभी कोई आधिकारिक सूचना नहीं आई है। मगर कॉन्ग्रेस ने और मुस्लिम संगठनों ने अभी से अपनी नाराजगी को व्यक्त करना शुरू कर दिया।
कॉन्ग्रेस के राज्यसभा सदस्य सैयद नसीर हुसैन ने कहा है कि भाजपा ऐसा करके समजा को बाँटना चाहती है। ऐसा मंत्रालय कॉन्ग्रेस वाली यूपीए सरकार इसलिए लाई ताकि अल्पसंख्यक मुख्यधारा में आएँ और उनका विकास हो। मगर भाजपा सरकार तो हर अवसर को अल्पसंख्यकों के खिलाफ ही प्रयोग करती है।
वहीं जमात-ए-इस्लामी के सचिव सैयद तनवीर अहमद ने कहा कि ये सब संविधान की आत्मा के खिलाफ है इसके मानव विकास रुकेगा। सरकार को तो ज्यादा से ज्यादा पैसा देकर मंत्रालय को मजबूत करना चाहिए ताकि अल्पसंख्यकों का कल्याण हो।

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