नई संसद के उद्घाटन का 19 विपक्षी दलों द्वारा बहिष्कार करने की क्यों हो रही राजनीति?

विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 28 मई 2023 को किए जाने वाले नए संसद भवन (New Parliament House) के उद्घाटन का बहिष्कार करने की घोषणा की है। विपक्षी दलों ने भवन का उद्घाटन विनायक दामोदर सावरकर की जयंती पर कराने और उद्घाटन में राष्ट्रपति को नहीं बुलाने को लेकर आलोचना कर रहे हैं।

नेताओं का कहना है कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हाथों न कराकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कराना राष्ट्रपति का अपमान है। AAP के नेता संजय सिंह ने कहा कि यह भारत के दलित आदिवासी और वंचित समाज का अपमान है। वहीं, कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने कहा कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति जी को ही करना चाहिए।

मोदी विरोधी वर्तमान युवा पीढ़ी को मोदी सरकार के विरुद्ध भड़का सकते हैं, लेकिन जब इसी युवा पीढ़ी को इनके इतिहास को दिखाया जाएगा, आइने में इनकी देखने वाली होगी। चलिए दो ही बातें बताते हैं: 1. जब सोमनाथ मन्दिर का जीणोद्धार के बाद उद्घाटन के लिए तत्कालीन प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किस अधिकार से वहां जाने से रोका था? 2. तत्कालीन महामहिम डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ राजन बाबू के निधन होने पर पटना जाने से जवाहरलाल नेहरू ने क्यों मना किया था? आदि आदि बहुत लम्बी सूची है, जो कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति के अपमान को चीख-चीखकर बता रही है। 

इस संबंध में कांग्रेस, शिवसेना (UBT), आम आदमी पार्टी, TMC, राजद, जदयू सहित 19 विपक्षी दलों ने एक संयुक्त बयान भी जारी किया है। अपने बयान में विपक्षी दलों ने कहा है, “जब संसद से लोकतंत्र की आत्मा को चूस लिया गया और सरकार डेमोक्रेसी के लिए खतरा बन गई है तो नए भवन का कोई मूल्य नहीं है।”

अपने संबोधन में विपक्षी दलों ने कहा कि अनुच्छेद 79 में संविधान कहता है कि संघ के लिए एक संसद होगा, जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन होंगे। इन सदनों को राज्यसभा और लोकसभा के नाम से जाना जाता है। राष्ट्रपति भारतीय संघ की ना सिर्फ प्रमुख होते/होती हैं, बल्कि संसद के अभिन्न हिस्सा भी होते/होती हैं।

अपने बयान में विपक्षी दलों ने आगे कहा कि राष्ट्रपति के बिना संसद की कार्यवाही नहीं चल सकती। इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने इसके भवन का उद्घाटन खुद ही करने का निर्णय लिया है। यह राष्ट्रपति का अपमान है और संविधान की मूल आत्मा का उल्लंघन करता है।

शिवसेना ठाकरे गुट के संजय राउत ने कहा, “सबसे पहले हमने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर कहा था। जब देश की आर्थिक स्थिति खराब है, तब लाखों-करोड़ों… सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करने की क्या जरूरत थी? जिस तरह से इस प्रोजेक्ट को सिर्फ प्रधानमंत्री की इच्छा के लिए बनाया, क्या उसकी जरूरत थी?”

राउत ने कहा, “आज जो देश की इमारत है, पार्लियामेंट हाउस है, वो और 100 साल चल सकती है। इस देश की जो इमारत है, उससे भी पुरानी इमारतें इटली, ब्रिटेन, फ्रांस में हैं और वो अब तक चल रही हैं। इसको बनाने की इसलिए जरूरत पड़ी कि ये संसद भवन ऐतिहासिक है और इस ऐतिहासिक संसद भवन से ना RSS और ना ही बीजेपी का कोई रिश्ता है।”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजपी पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा, “जो क्रांतिकारी काम हुए हैं, उससे RSS और बीजेपी का कोई रिश्ता नहीं है। एक इमारत बनाकर हम एक वो शिला लगाएँगे कि इनॉगरेटेड बाय प्राइम मिनिस्टर श्री नरेंद्र मोदी। इसके लिए ये खर्चा हो रहा है। इनके हाथों से नए संंसद भवन का उद्घाटन करना, ये प्रोटोकॉल है?”

संजय राउत ने कहा कि राष्ट्रपति सैद्धांतिक रूप से देश के प्रमुख होते हैं। वे संविधान के कस्टोडियन होते हैं और आप उन्हें नहीं बुलाया जा रहा है। यह उनका अपमान है। राउत ने कहा कि इसी आधार पर 19 विपक्षी दलों ने इस समारोह का बहिष्कार किया है।

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