सुश्री रंजना सिंह
पुराणों में पवित्र नाग वासुकी मंदिर का नाम भी पाया जाता है जैसा कि मत्स्य पुराण में उल्लेख किया गया है, कहा जाता है कि मंदिर प्रतिष्ठान से वासुकी तालाब तक और आगे उस क्षेत्र में है जो नागों का निवास माना जाता है नाग वासुकी मंदिर, प्रयागराज के दारागंज क्षेत्र में पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित है..!!कैसे प्रयाग आये नाग वासुकी
पद्म पुराण के पाताल खंड व श्रीमद्भागवत में नाग वासुकी व इस मंदिर का विस्तृत उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन में देवताओं व असुरों ने नागवासुकी को सुमेरु पर्वत में लपेटकर उनका प्रयोग रस्सा के तौर पर किया था। मंथन के चलते नागवासुकी के शरीर में काफी रगड़ हुई थी और जब मंथन समाप्त हुआ तो उनके शरीर में जलन होने लगी। जलन को दूर करने के लिए वासुकी मंद्राचल पर्वत चले गए, लेकिन उनके शरीर की जलन खत्म नहीं हुई। तब नाग वासुकी ने भगवान विष्णु से अपनी पीड़ा के बारे में बताया और जलन खत्म करने का उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने नागवासुकी को बताया कि वह प्रयाग चले जाएं वहां सरस्वती नदी का अमृत जल का पान करें और वही विश्राम करें, इससे उनकी सारी पीड़ा है खत्म हो जाएगी।
कैसा है स्वरूप
मंदिर के गर्भगृह में नाग-नागिन की स्पर्शधारी प्रतिमा है, जिसे नागवासुकी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि परमपिता ब्रह्मा के मानसपुत्रों ने नागवासुकी को मूर्ति के रूप में यहां स्थापित किया हैं। यहां मौजूद पत्थर 10 वीं सदी से भी प्राचीन बताये जाते हैं। मंदिर परिसर मे गणेश व पार्वती, भीष्म पितामह की शर-शय्या पर लेट हुई प्रतिमा व भगवान शिव की भी मूर्ति स्थापित है।
इस मंदिर में नागों के राजा वासुकी नाग विराजमान हैं। इस मंदिर की महिमा का बखान सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रयागराज आने वाले हर श्रद्धालु और तीर्थयात्री की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक की वह नागवासुकी का दर्शन न कर ले।
जब औरंगजेब भी बेहोश हो गया था
मुगलकाल में जब हिंदू धर्म स्थलों को पूरी तरह से तहस-नहस किया जा रहा था। उस समय नागवासुकी मंदिर को भी तोड़ने का प्रयास किया गया था। लेकिन, जब इसमें मुगल सैनिक सफल नहीं हुए और इसकी ख्याति मुगल शासक औरंगजेब तक पहुंची। तो वह खुद प्रयाग आया और उसने नागवासुकी मंदिर तोड़ने के लिए चढ़ाई कर दी। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि औरंगजेब गंगा तट की ओर से मंदिर में पहुंचा और अपनी तलवार निकालकर जैसे ही नागवासुकी की मूर्ति पर वार किया, अचानक नागवासुकी का दिव्य स्वरूप प्रकट हो गया। उनके विकराल और भयंकर स्वरूप को देखकर औरंगजेब कांपने लगा और डर कर बेहोश हो गया।
नागवासुकि मंदिर में शेषनाग और वासुकीनाग की मूर्तियां हैं। यह मंदिर अनोखा है क्योंकि यहां के देवता नाग वासुकी हैं और इनकी पत्थर की मूर्ति मंदिर के बीच में स्थित है। नागवासुकी मंदिर की काफी पौराणिक मान्यताएं भी है। इस मंदिर के बारे में ऐसी पौराणिक मान्यता है कि यहां आकर पूजा करने से काल सर्प दोष हमेशा के लिए खत्म हो जाते है। गंगा तट पर स्थित प्राचीन नागवासुकी मंदिर सदियों से आस्था का केंद्र रहा है। श्रावण मास में तो शिवालयों की तरह नागवासुकी मंदिर में रुद्राभिषेक, महाभिषेक व काल सर्पदोष की शांति का अनुष्ठान चलता है
महाकाल आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें,
जय महाकाल
No comments:
Post a Comment