सुप्रीम कोर्ट नियम कायदे से चलना चाहिए या धकापेल से

सुभाष चन्द्र 

यह चर्चा करने का मेरा उद्देश्य केवल इतना है कि लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया जाए कि देश की सर्वोच्च अदालत को नियम कायदों से चलना चाहिए न कि धकापेल और जजों की मनमर्जी से। कभी कभी लगता है जैसे अदालत नियमों से नहीं चल रही बल्कि सिक्का उछाल कर काम किया जा रहा है। 

मार्च, 2023 में OROP में बकाए के भुगतान के संबंध में अटॉर्नी जनरल Venkataramani ने सरकार का एक नोट Sealed Cover में यह कहते हुए दिया कि मामला संवेदनशील है तो चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने सरकार की ऐसी तैसी फेर दी और फटकार मारते हुए कहा - 

"We will not take any confidential documents or sealed covers, and am personally averse to this. There has to be transparency in court. This is about implementing the orders. What can be the secrecy here?" he said, adding that he wanted to put an end to "the sealed cover business". 

"If the Supreme Court follows it, High Courts will also follow"

The Chief Justice further called sealed covers 'completely against' settled judicial principles”

जबकि सत्य यह है कि सुप्रीम कोर्ट स्वयं अनेक मामलों में सरकार या खुद अपनी ही गठित की गई समितियों से Sealed Cover में रिपोर्ट लेता रहा है और CJI चंद्रचूड़ की बेंच ने अडानी की रिपोर्ट भी ऐसे ही जमा करने की अनुमति दी थी। फिर कौन से Settled judicial principles मीलॉर्ड ने बता दिए। दरअसल OROP मामले में  मकसद सरकार को जलील करने का था

अब दूर मत जाइए, कल CJI चंद्रचूड़ की संविधान पीठ ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं कि पार्टियों को मिले चंदे का 30 सितंबर, 2023 तक का ब्यौरा Sealed Cover में अदालत में पेश करे कहां गया अब Settled judicial principles जिसके अंतर्गत चंद्रचूड़ ने बात की थी कि सब कुछ खुले में दिया जाना चाहिए 

किसी भी फैसले की Review Petition की सुनवाई वह बेंच बंद कमरे में करती है जिसने Original Judgement दिया हो लेकिन PLMA फैसले के खिलाफ Review Petition की सुनवाई करने के लिए तत्कालीन चीफ जस्टिस रमना ने घोषणा की थी कि उसकी सुनवाई खुले में होगी

यानी जब मर्जी बंद कमरे में सुनवाई होगी और जब मर्जी सुनवाई खुले में की जाएगी - यह दोहरा रवैया चलाने  का क्या मतलब है एक बार फैसला कीजिए कि या तो सुनवाई in camera होगी या खुले में होगी

इसके अलावा, जिस मर्जी मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट खुद कर लेता है और जिस मर्जी को पहले हाई कोर्ट भेजने के आदेश दे देता है अक्सर जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट स्वयं सुनता है लेकिन कांग्रेस-चीन के MOU के राष्ट्र सुरक्षा से जुड़े मामले को सुप्रीम कोर्ट ने खुद न सुन कर याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट ले जाने के लिए कह दिया था और यहां तक धमकी दी थी कि यदि उनकी बाते गलत हुईं तो मुकदमा चलाया जाएगा ऐसी धमकी किसी याचिकाकर्ता को कभी देते देखा नहीं गया

इसके विपरीत राघव चढ़ा के राज्यसभा से निलंबन के मामले की सुनवाई हाई कोर्ट भेजने की बजाय स्वयं करने का फैसला CJI चंद्रचूड़ ने कर लिया और सुनवाई शुरू कर दी इसी तरह  मुंबई में बैठे तुषार गांधी की मुजफ्फरनगर में एक टीचर द्वारा एक मुस्लिम बच्चे की पिटाई के मामले को इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजने की बजाय सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं सुनवाई शुरू कर दी और उत्तर प्रदेश सरकार को  निर्देश भी दे दिए 

ऐसे दोहरे मापदंड अपना कर सर्वोच्च अदालत गलत परम्पराएं डाल रहा है जो न्यायोचित नहीं है इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि सुप्रीम कोर्ट को कुछ नियम कायदों से चलना चाहिए, धकापेल से नहीं 

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