आज कुर्सी की खातिर जो हिन्दुओं द्वारा सनातन परम्परा पर प्रहार किए जा रहे हैं, वह सनातन विरोधी नहीं बल्कि अगर उन्हें देश विरोधी कहा जाए तो कोई अतिशियोक्ति नहीं। कारण: वह प्राणी जिसे अपने गौरवशाली सनातन धर्म का विरोध करने में संकोच नहीं, उससे देशहित की कल्पना करना व्यर्थ है।
हिन्दू धर्म में कुछ ऐसी परंपराएं हैं जिनका महत्व तो बहुत है, लेकिन समय के साथ-साथ वह धूमिल पड़ती जा रही है। माथे पर किसी प्रकार का तिलक या टीका एक धार्मिक प्रक्रिया प्रतीत होते हुए भी विज्ञान और दर्शन का उत्कृष्ट समावेश है।प्राचीन काल में जब भी राजा महाराजा शुभ कार्यों के लिए जाते थे तो माथे पर तिलक लगवाकर जाते थे। कोई राजा महाराजा युद्ध के लिए भी जाते थे, तो विजय के लिए अपने ईष्ट को याद करते थे और माथे पर तिलक लगाकर जाते थे।
यूं तो माथे पर तिलक लगाने के लिए अलावा हिन्दू परंपराओं में गले, हृदय, दोनों बाजू, नाभि, पीठ, दोनों बगल आदि मिलाकर शरीर के कुल 12 स्थानों पर तिलक लगाने का विधान है।
वैसे शास्त्रों में विस्तार से मस्तिष्क पर तिलक लगाने के महत्व के बारे में बताया गया है। हालांकि, अब तो इस विधान को वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि मस्तक पर तिलक लगाने से शांति और ऊर्जा मिलती है। भारत में कई तरह के तिलक प्रचलित हैं व ये तिलक कई प्रकार के होते हैं। मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि।
सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव व अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं और वैष्णव परंपरा में तो चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए है।
हिन्दू धर्म में स्त्रियां लाल कुमकुम का तिलक लगाती हैं। लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है। तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है। तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है। व्यक्ति संकटों से बचता है। उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। ज्ञान तंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।
सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों में अलग-अलग तिलक लगाये जाते हैं।
शैव- शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है।
शाक्त- शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।
वैष्णव- वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें प्रमुख है लालश्री तिलक- इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।
विष्णुस्वामी तिलक- यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है।
रामानंद तिलक- विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है ।
श्यामश्री तिलक- इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं
इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।
गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।
खैर आकर्षण के लिए भी लगाए तिलक से आप अपने ग्रहों को मजबूत कर लाभान्वित हो सकते हैं। सूर्य हेतु लाल चन्दन का तिलक अनामिका उंगली से लगाएं। चन्द्रमा हेतु सफ़ेद चन्दन का तिलक कनिष्ठा उंगली से लगाएं। मंगल हेतु नारंगी सिन्दूर का तिलक अनामिका से लगाएं। बुध हेतु अष्टगंध का तिलक कनिष्ठा उंगली से लगाएं। बृहस्पति हेतु केसर का तिलक तर्जनी से लगाएं। शुक्र हेतु रोली और अक्षत अनामिका उंगली से लगाएं। शनि, राहु, केतु हेतु कंडे या धूप बत्ती की राख तीन उंगलियों से लगाएं।
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