सुभाष चन्द्र
आजकल हमास और इजराइल के बीच चल रहे युद्ध से भारतीय जनता को अपनी आंखें, दिल और दिमाग को खोल हमास समर्थकों से पूछे कि एक, लड़ाई किसी देश से नहीं बल्कि आतंकवाद के विरुद्ध है, फिर क्यों इसे मुस्लिम विरोधी बताकर भारतीय जनता को गुमराह कर रहे हो; दो, मुस्लिम देश फिलिस्तीन को हथियार और आर्थिक रूप से सहयोग जरूर कर रहे हैं, लेकिन किसी फिलिस्तीनी को अपने देश में शरण देने को तैयार नहीं, क्या उनमे उन मुस्लिमों के लिए दर्द नहीं? लेकिन कुर्सी की लालसा में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या, पाकिस्तानी और बांग्लादेशियों को शरण दे रहे हो? तीन, हमास अगर मुस्लिम हितों की लड़ाई लड़ रहा है, फिर क्यों स्कूल, मस्जिदों और हॉस्पिटल में अपने अड्डे बना रहा है? फिर आतंवादियों के अड्डों पर हो रहे हमलों में अकाल मौत मरने वाले बेगुनाहों के लिए इजराइल नहीं हमास जिम्मेदार है।
दूसरे, पाकिस्तान ने अपने मुल्क से 17 लाख अफगानिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने के लिए 31 अक्टूबर, 2023 तक की समय सीमा दी और उसके बाद उन्हें बाहर निकालना शुरू कर दिया, उनके घरों को बुलडोज़र से गिरा दिया गया। एक सुन्नी बहुल इस्लामिक मुल्क ने सुन्नी मुसलमानों को ही देश से निकाल कर फ़ेंक दिया यह कह कर कि उनके पास पाकिस्तान में रहने के दस्तावेज़ नहीं है।
हमारे देश में इसके विपरीत पहले महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों को भारत में रहने के लिए रोक लिया क्योंकि भविष्य में दूसरा पाकिस्तान बनाना था।
उसके बाद 1971 में बांग्लादेश देश बनने के बाद बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाने का काम इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार ने किया और नागरिकता कानून में section 6A जोड़ कर 1971 से पहले आए सभी बांग्लादेशियों को भारत का नागरिक बना दिया।और इस तरह ये बांग्लादेशी 5 करोड़ देश के हर हिस्से में बस गए और कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के वोटर बन गए।
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उसके बाद 2017 में भिखारी जैसे दिखने वाले रोहिंग्या मुसलमान घुसपैठियों के लिए सुप्रीम कोर्ट में लाखों की रोज फीस लेने वाले 6 वकील खड़े हो गए। उनके नाम थे :
-कपिल सिब्बल;
-प्रशांत भूषण;
-राजीव धवन;
-अश्विनी कुमार;
-कोलिन गोन्साल्वेज़; और
-जस्टिस RF Nariman का पिता Fali S Nariman
कपिल सिब्बल और अश्विनी कुमार कांग्रेस के दिग्गज नेता थे उस वक्त।
इन वकीलों ने रोहिंग्या घुसपैठियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई पर ऐसी रोक लगवाई कि उसके बाद सुनवाई ही नहीं हुई और आज रोहिंग्या भारत में मौज कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने देश की सुरक्षा को ताक पर रखते हुए मूकदर्शक बने रहना पसंद किया क्योंकि केंद्र सरकार ने 18 सितंबर, 2017 को हलफनामा दाखिल करके अदालत को बताया था कि रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं और कई रोहिंग्या घुसपैठियों के संबंध (Link) आतंकी संगठनों के साथ हैं। यह सब केंद्र सरकार ने ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर अदालत को बताया था।
बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट का केंद्र की बातों पर ध्यान न देना क्या यह साबित नहीं करता कि अदालत भी देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है। पिछले दिनों हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर कब्ज़ा हटाने को भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया था जबकि वहां बांग्लादेशी और रोहिंग्या ने ही बड़े पैमाने पर अतिक्रमण किया हुआ है।
अभी कुछ दिन पहले एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने 3 वकीलों (AORs) को Frivolous petition दायर करने के लिए फटकार मारते हुए कहा था कि आप लोगों का तो Bar Council का Licence रद्द कर देना चाहिए क्योंकि आप लोग फीस के लिए केवल Sign करने वाले प्राधिकारी बन गए हैं और गैर जिम्मेदाराना आचरण दिखाया है। कहीं किसी रिपोर्ट में वकीलों का नाम नहीं बताया गया।
क्या सुप्रीम कोर्ट भिखारी जैसे दिखाई देने वाले 2 रोहिंग्या घुसपैठियों के 6 वरिष्ठ वकीलों से पूछेंगे कि आप लोगों को उन 2 याचिकाकर्ताओं ने फीस कैसे और कितनी दी। यह हो नहीं सकता कि इन वकीलों ने फ्री में केस लड़ा हो। कहां से पैसा मिला, इसकी जांच जरूरी है?
रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने के लिए सरकार को पाकिस्तान की तरह कार्रवाई करनी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट या किसी भी अदालत को मुंह बंद रखना चाहिए क्योंकि देश के सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए अदालत भी जिम्मेदार मानी जानी चाहिए क्योंकि उसने सरकार की चेतावनी को नज़रअंदाज किया है।
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