तुलसी का सनातन एवं स्वास्थ्य महत्व

हिन्दू धर्म में माता तुलसी को मां लक्ष्मी का रूप मानकर घर के आंगन में पूजनीय स्थान दिया जाता है लेकिन इसके अलावा भी तुलसी के वैज्ञानिक व आयुर्वेद की दृष्टि से कई लाभ मिलते हैं। इस अनमोल पौधे के कुल 5 प्रकार होतेे हैं, जो स्वास्थ्य से लेकर वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

तुलसी के यह 5 प्रकार

1) श्याम तुलसी,
2) राम तुलसी,
3) श्वेत/विष्णु तुलसी,
4) वन तुलसी,
5) नींबू तुलसी
तुलसी के पांचों प्रकारों को मिलाकर इनका अर्क निकाला जाए, तो यह पूरे विश्व की सबसे प्रभावकारी और बेहतरीन दवा बन सकती है। एक एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल, एंटी-फ्लू, एंटी-बायोटिक, एंटी-इफ्लेमेन्ट्री व एंटी–डिजीज की तरह कार्य करने लगती है।

श्याम तुलसी 

श्यामा तुलसी (Shyama Tulsi) की पत्तियां श्याम रंग या फिर बैंगनी रंग की होती हैं। इसी वजह से इसे श्यामा तुलसी कहते हैं। श्यामा तुलसी को कृष्ण तुलसी (Krishna tulsi) के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस तुलसी का संबंध भगवान श्रीकृष्ण से है, क्योंकि इसकी पत्तियां श्रीकृष्ण के रंग के समान होती हैं।

राम तुलसी 

जिस तुलसी के पौधे की पत्तियां हरी होती हैं, उसे रामा या उज्ज्वल तुलसी के नाम से पुकारा जाता है। रामा तुलसी (Rama Tulsi) की पत्तियां हल्की मिठास भरी होती है। इस तुलसी की पत्तियों का इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। साथ ही इसे घर में लगाने से सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है।

श्वेत तुलसी / विष्णु तुलसी 

इस किस्म को विष्णु तुलसी के नाम से भी जाना जाता है। इसका प्रयोग बच्चों के कफ, खांसी, जुकाम, आदि में किया जाता है। इसकी सबसे प्रमुख पहचान यह है कि जब इसके पुष्प आते हैं तब वह सफेद रंग के होते हैं। बताया जाता है कि इसमें अपना विद्युत प्रवाह होता है। एक तड़ित चालक की तरह काम करती है। यानी जहां पर लगी होती है वहां आसपास वज्रपात के कारण कोई नुकसान नहीं होता।

वन तुलसी

इसे जंगली तुलसी और तुलसी बर्बरी भी कहते हैं। इस किस्म के पौधों की लम्बाई 60 से 90 सेंटीमीटर होती है। इसके पौधों में वर्ष भर फूल और फल लगे रहते हैं। फूल सुगंधित होने के साथ सफेद, गुलाबी या बैंगनी रंग के होते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इस पौधे को घर में लगाने से वर्जित किया गया है।

नींबू तुलसी

इस किस्म में तुलसी एवं लेमन ग्रास दोनों के गुण मौजूद होते हैं। इस किस्म की तुलसी की पत्तियां नींबू की तरह सुगंधित होती हैं एवं इसमें विटामिन ए प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है।

तुलसी जी की जड़ों में प्रतिदिन जल अर्पण करते रहना चाहिए केवल एकादशी को छोड़ कर। एकादशी, पूर्णमासी और ग्रहण के दिन तुलसी की पत्ती नहीं तोड़नी चाहिए। 

तुलसी जी की मंजरियों को तोड़कर तुलसी जी को पीड़ा मुक्त करते रहना, क्योंकि ये मंजरियाँ तुलसी जी को बीमार करके सुखा देती हैं। जब तक ये मंजरियां तुलसी जी के शीश पर रहती हैं तब तक तुलसी माता घोर कष्ट पाती हैं।

इन दो सेवाओं को ठाकुर जी की सेवा से कम नहीं माना गया है।  तुलसी दल तोड़ने से पहले तुलसी जी की आज्ञा ले लेनी चाहिए और तुलसी दल को कभी नाखूनों से नहीं तोड़ना चाहिए।

रविवार और द्वादशी के दिन तुलसी दल को नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि तुलसी जी ठाकुर जी की आज्ञा से इन्हीं दो दिनों में विश्राम और निद्रा लेती हैं। बाकी के दिनों में वो आठों पहर ठाकुर जी की सेवा में लगी रहती हैं।

तुलसी जी को एकादशी को जल नहीं देना चाहिये क्योंकि इस दिन तुलसी जी ठाकुर जी के लिये निर्जल व्रत रखती हैं। इसलिए ऐसा करने से महापाप लगता है ।      

!! जय तुलसी माता !!

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