सुभाष चन्द्र
अपने 24 जनवरी, 2024 के लेख में मैंने विस्तार से लिखा था कि किस तरह CJI चंद्रचूड़ लगता है एक षड़यंत्र के तहत गुजरात के हर उस केस में जस्टिस बीआर गवई को बेंच में बिठा रहे हैं जिनमें निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होते हैं। दुर्भाग्य से उस लेख को चोरी करके एक व्यक्ति ने अपना ही यूट्यूब पर वीडियो बना कर चला दिया।
जस्टिस बीआर गवई ही थे जिनकी बेंच ने ED के डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा को मनमाने तरीके से हटा कर ही दम लिया क्योंकि मिश्रा कांग्रेस और विपक्ष के नेताओं के लिए विशेष खतरा बने हुए थे। तीस्ता सीतलवाड़ के मामले में गुजरात हाई कोर्ट में सुनवाई को दरकिनार करते हुए जस्टिस गवई ने उसे नियमित जमानत दी थी। फिर हाई कोर्ट की अहमियत ही क्या रह गई जब आपने ही फैसले करने हैं।
कल चंडीगढ़ के मेयर के चुनाव के विषय में पंजाब & हरियाणा हाई कोर्ट में लंबित याचिका के बावजूद CJI चंद्रचूड़, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनवाई अपने हाथ में ले ली और CJI चंद्रचूड़ ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा कि पीठासीन अधिकारी वीडियो में मतपत्रों को विरूपित करते (Deface) करते दिखाई दे रहा है- यह लोकतंत्र की हत्या है, उस अधिकारी पर तो मुकदमा चलना चाहिए - Chandrachud virtually jumped to conclusion without complete hearing of the matter.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वे इस मामले के तथ्य सामने रखेंगे। लेकिन चंद्रचूड़ की बेंच कुछ सुनने को तैयार नहीं थी।
लेखक
सवाल यह उठता है कि क्या पीठासीन अधिकारी इतना बेवकूफ था कि वह कैमरे लगे होने के बावजूद मतपत्रों से छेड़छाड़ करता। यह संभव तो नहीं लगता लेकिन चंद्रचूड़ की आंखे तो वही देख रही थी जो उन्हें अभिषेक मनु सिंघवी दिखा रहा था।
ऐसे मामलों में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ को संयमित बयान देने चाहियें। उन्हें पता होना चाहिए कि केजरीवाल और उसकी पार्टी के लोग कोई दूध के धुले नहीं हैं। मई, 2023 में भी चंद्रचूड़ ने उछलकूद मचाते हुए कहा था कि “चुनी हुई सरकार” के पास अधिकारियों के ट्रांसफर की शक्तिया होनी चाहिए और आदेश होते ही केजरीवाल ने आतंकी तांडव दिखा दिया था। उसके बाद ही केंद्र सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा जिसे संसद ने मंजूरी दी थी जिसे केजरीवाल ने चंद्रचूड़ की अदालत में चुनौती दी हुई है।
चंद्रचूड़ को याद रहना चाहिए कि केजरीवाल के कई मंत्री और नेता शराब घोटाले में जेल में बंद हैं और वह खुद ED के समन से भागता फिर रहा है।
एक वक्त ऐसा भी आया था जब चंद्रचूड़ को ही कहना पड़ा था कि हम दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के रोज रोज के झगड़े निपटाने का ही काम नहीं कर सकते। चंद्रचूड़ को यह भी संज्ञान में रखना चाहिए कि केजरीवाल ने कई बार कहा है कि "मैं anarchy हूँ", ऐसे व्यक्ति से क्या किसी संतुलित बात/काम की अपेक्षा की जा सकती है? दिल्ली में यमुना नदी की कितने समय से सफाई नहीं हुई, जिस कारण दिल्लीवासियों को नियमित पानी नहीं मिल पा रहा, किसी न किसी विभाग का वेतन रोक दिया जाता है, क्या है ये सब, कौन पूछेगा केजरीवाल से?
केजरीवाल को अनावश्यक रूप से सहारा देना CJI चंद्रचूड़ के लिए उचित नहीं है। केजरीवाल के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहते हैं और अनेक मामले दर्शाते हैं कि चंद्रचूड़ के निशाने पर भी नरेंद्र मोदी ही रहते हैं। यह पक्षपात लोकतंत्र के लिए घातक साबित हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वह High Courts के कार्यों में दखल न दे जैसा उन्होंने अभी कोलकाता हाई कोर्ट के गंगोपाध्याय और सोमेन सेन के मामले में किया है। उनका मामला अपने हाथ में ले लिया, ठीक है लेकिन गंगोपाध्याय को सभी शिक्षा घोटालों के मामलों से हटाना उचित नहीं था। सोमेन सेन और गंगोपाध्याय के बीच के CBI जांच के आदेशों के बारे तुरंत फैसला करना चाहिए।
केजरीवाल की वजह से एक दिन चंद्रचूड़ कलंकित हो सकते हैं।


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