वाह Times of India इमराना का घाव दिखा, उसकी देश में आग लगाने की मानसिकता नहीं; अगर मुज़फ्फरनगर दंगे की सही रिपोर्टिंग की होती, तब घाव नहीं, दोषी दिखाई देती

                 जावेद को इमराना बेगम ने दिया था टाइम बम का ऑर्डर, हिन्दुओं से लेना चाहती थी बदला
मुजफ्फरनगर में बैठकर टाइम बोतल बम बनाने वाले जावेद की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को जिस इमराना की तलाश थी, वो इमराना उत्तर प्रदेश एसटीएफ द्वारा पकड़ ली गई है। शनिवार (17 फरवरी 2024) की शाम को पुलिस ने उसे उसके घर से गिरफ्तार किया और अब उससे पूछताछ जारी है। एसटीएफ के बाद दिल्ली की आईबी की टीम भी इमराना से पूछताछ करेगी।

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक की पड़ताल में सामने आया है कि इमराना 15 साल पहले तक भट्टी पर मजदूरी का काम करती थी आज उसके पास कई मकान और प्लाट हैं। साथ ही वो महंगी गाड़ियों में भी घूमती है।

पुलिस एक ओर पता लगा रही है कि उसके पास इतना पैसा कहाँ से आया। वहीं दूसरी ओर ये ज्ञात हुआ है कि उसने बम इसलिए बनवाए थे कि ताकि जब लोकसभा चुनाव से पहले सीएए लागू करने की घोषणा हो, तब वह उन बमों का इस्तेमाल कर सके। बताया जा रहा है कि इमराना ने ऐसा ऑर्डर दिल्ली के किसी शख्स के कहने पर दिया था। ये शख्स कौन है इसके बारे में आगे जानकारी आएगी।

उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ इमराना की गिरफ्तारी के बाद अब उसके नेटवर्क के बारे में सूचना जुटा रही है। पता लगाया जा रहा है कि इमराना के पीछे किन संगठनों का हाथ है, उनकी मंशा क्या है। इसके अलावा ये भी मालूम हुआ है कि इमराना और जावेद एक दूसरे के संपर्क में कैसे आए।

लोग उसे इमराना बाबा के नाम से भी जानते थे क्योंकि वो काला जादू वगैरह का काम भी करती थी। जावेद की गिरफ्तारी के बाद से ही एसटीएफ और पुलिस इमराना की तलाश कर रही थी। उसके बारे में पता चला है कि शामली जिले की रहने वाली है, लेकिन मुजफ्फरनगर के मुस्लिम बहुल खालापार इलाके में रहती थी। जावेद की गिरफ्तारी के बाद जब जाँच एजेंसी ने उसके घर रेड मारी थी, तो वो पहले ही फरार हो गई थी।

अब इमराना की बेटी रूकसार ने बताया कि उन्होंने अपनी अम्मी को पुलिस को सौंप दिया है। वहीं पुलिस ने कहा कि बताया कि इमराना से गहनता के साथ पूछताछ की जाएगी। इसके बाद ही कुछ कहा जा सकेगा। जावेद ने इसी इमराना के कहने पर टाइम बोतल बम तैयार किए थे। इन बमों को बनाने के लिए उसने गन पाउडर-999, लोहे की छोटी गोलियाँ, रुई, पीओपी आदि का इस्तेमाल किया। उसने डॉक्टरों से ग्लूकोज की बोतलें और साइकिल की दुकानों से आयरन की गोलियाँ और घड़ी की दुकानों से घड़ी की मशीनें खरीदी थीं।

भारत की मीडिया की एक विशेषता है, जब भी किसी आतंकी के बारे में कुछ खबर आती है तो उसके ‘मानवीय पक्ष’ को ज़रूर खँगाला जाता है। बड़े से बड़े आतंकवादी को व्हाइटवॉश करने की कला भारत की मीडिया के पास है। ‘The Quint’ के लिए अलकायदा का संस्थापक ओसामा बिन लादेन ‘एक अच्छा पिता और पति’ बन जाता है, तो वहीं बरखा दत्त के लिए कश्मीर के आतंकी बुरहान वानी ‘प्रधानाध्यापक का बेटा’ हो जाता है। हर आतंकी के इस पक्ष को बेचने की कला भारत की मीडिया के पास है।

जिस मुज़फ्फरनगर दंगे ने इमराना को घाव दिया, Times of India ने अगर उस दंगे की निष्पक्ष रिपोर्टिंग की होती, तब शायद ToI को पता लगता कि दंगा भी करो और निर्दोष बनते फिरो, खाला जी का बाड़ा नहीं। ये victim card का धंधा पुराना हो गया है, भारत ही नहीं अब विश्व भी, विशेषकर मुस्लिम देश, इन दंगाइयों की मानसिकता समझ चुका है। उस समय एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते देखिए(पृष्ठ) क्या प्रकाशित किया था। 

उत्तर प्रदेश में होते दंगों की होती जाँच पर मुख्यमंत्री योगी से मुज़फ्फरनगर दंगे की फाइल खोलने पर लेखों में लिखा। किसके इशारे पर हुआ था मुज़फ्फरनगर दंगा? कहाँ से आयी थी AK47, पिस्तौल, छुरे-चाकू, गरारियाँ? किसने धार्मिक स्थलों में असला जमा किया था और किसके कहने पर? तब किसी बीजेपी की नहीं बल्कि अखिलेश यादव की सरकार थी। लेकिन सरकार आज़म खान के इशारे पर चलती थी। मौका है इमराना केस के चलते योगी सरकार उस फाइल को खोल दे। आज़म खान की मुश्किलों तो बढ़ेंगी ही, लेकिन अखिलेश यादव भी बच नहीं पाएंगे। मुलायम सिंह परिवार अपनी सुरक्षित सीटों से जीत पायेगा, कहना मुश्किल है। 

उस दंगे में मुलायम सिंह ने किस मुस्लिम पुलिस अधिकारी की पीठ थप-थपाई थी और क्यों? इस बात का उल्लेख "मुज़फ्फरनगर दंगा-एक सच" चर्चा में मुस्लिम नेता शाहबुद्दीन गौरी ने अपने भाषण में किया था। जो शब्द उस मुस्लिम अधिकारी ने बोले थे, अगर किसी हिन्दू पुलिस कर्मी ने ही बोल दिए होते, Times of India जैसे कितने मीडिया उस हिन्दू पुलिस कर्मी को निलंबित करवा दिए होते। आज जितने भी मीडिया आज हिन्दुत्व के पक्ष में बोल रहे है, किसी ने उस दंगे की सच्चाई सामने लाने का साहस नहीं किया? आज तो बड़े आराम और मजे कह दिया जाता है गोदी-मीडिया, उस समय किसी ने नहीं कहा मुलायम/कांग्रेस मीडिया।    

वैसे ये ट्रेंड नया नहीं है। जैसा हमने फिल्मों में देखा है कि कैसे कोई पुलिस अधिकारी किसी बड़े आतंकी के पीछे लगा रहता है, आतंकी एक के बाद एक वारदातों को अंजाम देता चला जाता है, फिर उसके इतिहास को सामने लाया जाता है कि आखिर वो आतंकी कैसे बना, इसके लिए सरकार या हिन्दू समाज को दोषी ठहरा दिया जाता है और उन्हें पश्चाताप से भरने की कोशिश की जाती है, फिर वो पुलिस अधिकारी भी ये कहानी सुन कर रोता है – इस तरह आतंकी के व्हाइटवॉश की प्रक्रिया पूरी होती है।

ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश का है और इस बार किसी आतंकी के ‘दर्द’ को दिखाने का बीड़ा देश के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में से एक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI)’ ने उठाया है। हुआ यूँ कि मुजफ्फरनगर पुलिस ने इमराना बेगम नाम की एक 60 वर्षीय महिला को गिरफ्तार किया। गिरफ़्तारी का कारण – वो पूरे शहर को दहलाना चाहती थी और इसके लिए उसने जावेद नामक एक शख्स के पास कई टाइम बम भी रखे हुए थे। उसने बड़ी मात्रा में टाइम बम का ऑर्डर दिया था। आइए, बताते हैं कि मामला क्या है।

मुजफ्फरनगर: इमराना बेगम ने ऑर्डर किया टाइम बम

इमराना बेगम को रविवार (18 फरवरी, 2024) को गिरफ्तार किया गया था। इमराना बेगम शामली की रहने वाली है। उसने जावेद नामक शख्स को टाइम बम बनाने का टास्क दिया था। जावेद ने यूट्यूब पर वीडियो देख-देख कर टाइम बम बनाना सीखा और फिर उसने कई बम बना डाले। बम के साथ टाइमर भी उसने बनाया था। लेकिन, गुरुवार (15 फरवरी, 2024) को मजफ्फरनगर की काली नदी के पास से उत्तर प्रदेश STF (स्पेशल टास्क फ़ोर्स) को उसे दबोचने में कामयाबी मिली।
जावेद इमराना के किसी परिचित का बेटा था और इमराना को पता था कि वो विस्फोटक बना सकता है। जावेद पहले भी ये काम कर चुका था। इमराना का कहना है वो भविष्य में अगर कोई दंगा हो तो अपनी सुरक्षा के लिए ये सब कर रही थी। IED बनाने के लिए उसने जावेद को 10,000 रुपए एडवांस में दिए थे। डिलीवरी के समय 40,000 रुपए और भुगतान करने का वादा किया गया था। हालाँकि, डिलीवरी के दौरान ही वो पकड़ा गया।
इमराना बेगम को IPC की धारा 286 और विस्फोटक अधिनियम की धारा 4/5 के तहत जेल भेज दिया गया है। आगे की पूछताछ के लिए उसे पुलिस की हिरासत में लिया जाएगा। क्योंकि, टाइम बम बनाने के पीछे क्या मकसद था इस संबंध में उसने जो कुछ भी बताया है उसकी पुष्टि करनी आवश्यक है। जावेद और उसका बेटा जरीफ पटाखा बनाने का काम करते थे। उसने 10 बम का ऑर्डर दिया था, लेकिन 5 ही बन सके थे। एक दशक पहले भी इमराना ने बम बनाने का ऑर्डर दिया था।

TOI को दिखा इमराना का ‘घाव’
                                                      TOI को दिखा इमराना का ‘घाव’

अब इस घटना पर ‘टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI)’ की खबर का शीर्षक देखिए, ‘2013 के दंगों से आहत 60 वर्षीय महिला ने टाइम बम का ऑर्डर दिया, गिरफ्तार’। TOI ने अपने शीर्षक में ये बताना ज़रूरी समझा कि उक्त महिला ‘घाव से पीड़ित’ है और वो ‘घाव’ है 2013 के दंगों का। महिला का कहना है कि उन दंगों में उसका घर जला दिया गया था और इसीलिए वो अपनी सुरक्षा के लिए ये बम बनवा रही थी। जबकि मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी बताया गया है कि वो हिन्दुओं से बदला लेना चाहती थी।
जावेद के कुछ रिश्तेदार नेपाल में भी रहते हैं, ऐसे में आतंकनिरोधी दस्ता (ATS) भी इस मामले की जाँच कर रहा है। इसके तार कहाँ से जुड़ेंगे, अभी जाँच में सामने आएगा। लेकिन, मीडिया एक बार फिर से अपने धंधे की विशेषता दिखाने में लग गया है। कहने का तात्पर्य ये है – ‘हिन्दुओं ने महिला का घर जलाया, इसीलिए पीड़ित महिला अपनी सुरक्षा के लिए टाइम बम बनवा रही थी।’ क्या टाइम बम आत्मरक्षा का हथियार है? IED जैसे खतरनाक विस्फोटक का आत्मरक्षा के लिए इस्तेमाल किए जाने का कोई उदाहरण है अपने पास?
खासकर के इस खतरनाक विस्फोटक का इस्तेमाल कर के 10 टाइम बम बनाने का ऑर्डर देना, ये तो कहीं से भी आत्मरक्षा के लिए किया गया काम नहीं लगता। जाँच में चीजें सामने आएँगी, लेकिन अभी तो ऐसा ही लगता है कि इमराना बेगम हिन्दुओं से बदला लेना चाहती थी, खुन्नस पाले बैठी थी। हल्द्वानी में हमने देखा कि कैसे मुस्लिमों के छतों से पत्थर चले, पत्थरबाजों में बच्चों से लेकर महिलाएँ तक शामिल थीं। जाँच तो इसकी भी होनी चाहिए कि मुजफ्फरनगर दंगों में इमराना बेगम की क्या भूमिका थी, कहीं उसका घर लॉन्चपैड तो नहीं था?

मुजफ्फरनगर दंगों में क्या हुआ था

अगस्त-सितंबर 2013 में हुए मुजफ्फरनगर के दंगों से उत्तर प्रदेश में हालात ऐसे बिगड़े थे कि भारतीय सेना को तैनात करना पड़ा था। तब राज्य में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस घटना में अधिकतर जाट हिन्दू समाज के लोग ही पीड़ित थे। कवाल गाँव में मुस्लिमों द्वारा जाट लड़कियों से छेड़खानी के बाद ही ये मामला शुरू हुआ था। ममेरे भाइयों सचिन और गौरव की हत्या के साथ दंगे भड़के थे, इसमें हिन्दू समाज का क्या दोष था?
क्या आपको पता है कि जहाँ सचिन के शरीर पर पोस्टमॉर्टम के दौरान 17 और गौरव के शरीर पर 15 गहरे घाव मिले थे? उनकी हत्या निर्मम तरीके से की गई थी। गोली या धारदार हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया गया था, बल्कि लाठी-डंडों से पीटा गया था, सिर और मुँह को पत्थरों से कुचला गया था और सरिये से मार-मार कर मौत के घाट उतार दिया गया था। जाहिर है, फिर दो पक्ष दंगों में भिड़ते हैं तो क्षति हर तरफ से होती है। मुजफ्फरनगर हो, मेवात हो, या हल्द्वानी हो – हर जगह हमने इस्लामी भीड़ को समान पैटर्न पर काम करते देखा है।
90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ, उसके बाद उनमें से एक भी आतंकी क्यों नहीं बना? उनकी महिलाओं से बलात्कार हुआ, निर्मम हत्याएँ हुईं और पलायन के बाद वो अपने ही देश में शरणार्थी बन गए, लेकिन उनके पास से टाइम बम क्यों नहीं मिलते? मीडिया आखिर हर आतंकी, पत्थरबाज, बमबाज या अपराधी को व्हाइटवॉश करने के लिए कहानियाँ लेकर क्यों आता है? क्या इसका मकसद होता है कि लोगों में उसके प्रति सहानुभूति पैदा की जाए।

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