शहीद भगत सिंह और बाबा साहेब अंबेडकर जैसे देश भक्त दिवंगत नेताओं की फोटो के बीच में केजरीवाल की फोटो लगाने का मतलब यही निकाला जा सकता है कि जैसे उसकी पार्टी और परिवार ने उसे भी “दिवंगत” समझ लिया।
जो इस बात को भी साबित करता है कि केजरीवाल परिवार ही नहीं, पार्टी में जितने भी हिन्दू हैं, किसी को भी हिन्दू संस्कृति की क,ख ग तक नहीं मालूम। सनातन धर्म के अनुसार कभी किसी जीवित की दिवंगत के साथ फोटो नहीं लगाई जाती। क्या पत्नी सुनीता स्वयं अपना अनर्थ कर रही है यानि विधवा मान रही है? क्यों नहीं केजरीवाल परिवार के बुजुर्गों ने सुनीता को ज्ञान दिया? क्या वो सब ढोंगी हिन्दू हैं?
फिर ऐसे महान लोगों के बीच में केजरीवाल की फोटो लगाने का यह भी मतलब निकलता है कि यह व्यक्ति खुद को भगत सिंह और अंबेडकर जैसा समझ रहा है। जबकि केजरीवाल इन महान हुतात्माओं के पैरों की धूल भी नहीं।
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केजरीवाल ने उस दिन कहा था “आजकल केंद्र सरकार का नया रूल चल रहा है, पहले वो फैसला करते हैं किसको जेल में डालना है फिर उसके खिलाफ केस बनाया जाता है, मैंने सिसोदिया के खिलाफ आरोप देखे हैं और पाया है कि सब “fake” हैं।
केजरीवाल ने आगे कहा कि “उन्हें (केंद्र) जेल जाने से डर लगता होगा, हम नहीं डरते, हम भगत सिंह के “पुत्र” हैं जिसने देश के लिए जीवन कुर्बान कर दिया, हम वीर सावरकर के मार्ग पर नहीं चलते जिसने अंग्रेज़ो से माफ़ी मांगी”। यानि केजरीवाल ने स्वयं मान लिया है कि इसे भारतीय इतिहास का ज्ञान नहीं। इस पागल मुख्यमंत्री बने केजरीवाल से पूछो कि "अगर सावरकर ने माफ़ी मांगी होती तो 10 साल काले पानी में रहने का शौक नहीं था, सावरकर को। ऐसे मूर्खों को वोट देने वाले मतदाताओं को भी शर्म से डूब मरना चाहिए।
केजरीवाल, तुम और सारे आपिये मिलकर भी वीर सावरकर के चरणों की धूल के एक कण के एक करोड़वें अंश के बराबर भी नहीं हो। ऐ मूर्ख जिस सावरकर का तुम अपमान कर रहे हो वो अपने जीवन के 27 साल जेल में रहे और 11 साल तो “काला पानी” की सेलुलर जेल में रहे जहां अंग्रेजों ने उन्हें कोल्हू में बैल की जगह उपयोग कर तेल निकलवाया। तुम क्या मुकाबला करोगे सावरकर जैसी महान आत्मा से जब तुम्हारा 2 दिन के अंदर “शुगर लेवल” डगमगा गया वह भी घर का खाना खाते हुए। शर्म करो और डूब मरो सावरकर के लिए जहर उगलने से पहले।
तुम्हे यह भी आभास नहीं है कि शहीद भगत सिंह और वीर सावरकर एक दूसरे का पूरा सम्मान करते थे और सावरकर के जिस कथित माफीनामे का तुम ढोल पीटते फिरते हो, उसके विरुद्ध शहीदे आज़म ने एक शब्द भी नहीं कहा। वीर सावरकर के रत्नागिरी आवास पर हमेशा “भगवा” लहराता था परंतु 24 मार्च, 1931 को वहां “भगवा” की जगह “काला” ध्वज था 23 मार्च को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दिए जाने पर श्रद्धांजलि स्वरुप।
तुम भगत सिंह से भी क्या मुकाबला करोगे। वो देश के लिए शहीद हो गए जबकि तुमने तो सत्ता के 10 साल में देश को लूटने की सभी सीमाएं पार कर दी। तुम तो रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के दीवाने हो लेकिन भगत सिंह 1926 में एक लेख में लिखा था “Muslims lack a great deal of Indianness so they do not understand the importance of Indianness in all India and prefer the Arabic script and the Persian language. The importance of being one language of all India and that too Hindi they never understand”
शहीदे आज़म के पोते ने केजरीवाल की फोटो भगत सिंह के साथ लगाने पर ऐतराज किया है, उन्हें इसे शहीदे आज़म का अपमान कह कर भगत सिंह जी की मानहानि का केस दर्ज करना चाहिए और इसके लिए केजरीवाल को दंडित करने की मांग करनी चाहिए।
‘क्रांतिकारी केजरीवाल’ बन गए यू-टर्न के उस्ताद
केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाकर कहा था कि सरकार बनाने के लिए वो कांग्रेस को ना समर्थन देंगे ना कांग्रेस से समर्थन लेंगे। लेकिन सत्ता के लोभ में दिल्ली में कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाई। केजरीवाल कहा करते थे कि वो सरकारी बंगला, गाड़ी और लालबत्ती नहीं लेंगे, लेकिन मुख्यमंत्री बनने पर न सिर्फ खुद के लिए बल्कि अपने तमाम मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के लिए भी सरकारी एश-ओ-आराम हासिल किए। इसी तरह शीला दीक्षित के खिलाफ 370 पन्नों का सबूत का दावा करने वाले केजरीवाल ने उनके भ्रष्टाचार के मुद्दे को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। जन लोकपाल, जाति-धर्म की राजनीति न करने और भ्रष्टाचार का साथ नहीं देने जैसे कई मामलों पर केजरीवाल लगातार यू-टर्न लेते रहे।
‘मफलर मैन’ से ‘माफी मैन’ बन गए केजरीवाल
एक वक्त अरविंद केजरीवाल देश में ईमानदारी के उदाहरण के तौर पर स्थापित हो गए थे। अपनी हर बात में सबूतों का पिटारा साथ रखने का दावा करते थे। इसी क्रम में उन्होंने अपने विरोधी नेताओं पर तरह-तरह के आरोप भी लगाए। हालांकि उनकी कलई तब खुल गई, जब उनपर मानहानि करने वाले सभी नेताओं से उन्होंने एक-एक कर माफी मांगनी शुरू कर दी। सबसे पहले पंजाब के विक्रम सिंह मजीठिया के से माफी मांगी। इसके बाद तो कपिल सिब्बल, नितिन गडकरी और अरविंद केजरीवाल से भी माफी मांग ली। हालांकि यहां भी उन्होंने झूठ का ही सहारा लिया और कहा कि जनता का काम करने के लिए कोर्ट के चक्कर से बचना चाहते हैं। दरअसल जब यह साबित हो गया कि उनके पास किसी के विरुद्ध सबूत नहीं है, और उन्हें झूठे आरोप लगाने के चक्कर में जेल भी हो सकती है, तो उन्होंने यू टर्न ले लिया।
भ्रष्टाचारियों का साथ देने में गौरव महसूस कर रहे केजरीवाल
झूठ और मक्कारी केजरीवाल की रग-रग में बसी हुई है। भ्रष्टाचारियों का साथ नहीं देने का वादा भी वह नहीं निभा पाए। 2015 में चारा घोटाला के सजायाफ्ता लालू यादव से गलबहियां करते दिखे। वहीं अपने कई भ्रष्ट मंत्रियों को बचाने की वे पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। अब कांग्रेस की शरण में जाने की जुगत लगा रहे हैं। कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में मंच पर मौजूद तमाम भ्रष्टाचारी नेताओं के बीच खड़े होकर उन्हें गौरव का अनुभव हो रहा था। जहिर है राजनीति बदलने का वादा कर आए केजरीवाल राजनीति के लिए खुद एक ‘कलंक कथा’ साबित हुए हैं।
करप्शन में आकंठ डूब गई केजरीवाल की सरकार
सत्ता मिलते ही केजरीवाल ने ना सिर्फ जनता से किए अपने वादे को तोड़ा बल्कि खुद आकंठ भ्रष्टाचार में डूब गए। उन्होंने अपने सहयोगियों के भ्रष्टाचार से भी आंखें फेर लीं। पहले तो अपने रिश्तेदार सुरेन्द्र कुमार बंसल को अनैतिक रास्ते से भ्रष्टाचार में मदद पहुंचाई। इसके बाद सत्येंद्र कुमार जैन को भी बचाने की कोशिश की। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर भी विज्ञापन घोटाले के आरोप हैं, वहीं दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव रहे राजेंद्र कुमार भी भ्रष्टाचार के मामले में जांच के दायरे में हैं। इसी तरह दिल्ली में स्ट्रीट लाइट घोटाले की भी जांच चल रही है। इन सब मामलों में अरविंद केजरीवाल की भूमिका भी संदिग्ध रही है और आरोपियों को बचाने की उनकी कोशिश तो नैतिक गिरावट की पराकाष्ठा है।
अवलोकन करें:-
राजनीतिक गुरु अन्ना हजारे को केजरीवाल ने दिया धोखा
वर्ष 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान में जन लोकपाल के लिए अन्ना हजारे के आंदोलन में आगे रहने वाले अरविंद केजरीवाल के जेहन में शुरू से ही अपनी अलग पार्टी बनाने की बात थी। अन्ना आंदोलन के दौरान केजरीवाल ने कई बार कहा कि वह राजनीति करने नहीं आए हैं, उन्हें ना सीएम-पीएम बनना है और न ही संसद में जाना है। अन्ना भी राजनीति में जाने के विरोधी थे। बाद में केजरीवाल की महात्वाकांक्षा ने जोर पकड़ा और अन्ना का इस्तेमाल कर अपना असली मकसद पूरा करने के लिए 26 नवंबर 2016 को आम आदमी पार्टी का गठन कर लिया। अरविंद केजरीवाल ने अपने गुरु को अकेला छोड़ दिया।
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