अप्रैल 9 को केजरीवाल की ED द्वारा उनकी की गई गिरफ़्तारी को अवैध कहने वाली याचिका दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी और साफ़ कहा कि ED द्वारा गिरफ्तारी सबूतों और जांच के बाद की गई है जो गैर कानूनी नहीं है।
गिरफ़्तारी को चुनौती देने की सलाह अभिषेक मनु सिंघवी ने क्या सोच कर दी जबकि ऐसी याचिका बेमानी थी जब स्वयं दिल्ली हाई कोर्ट ही पहले ED से सबूत मांग कर देखने के बाद गिरफ़्तारी पर रोक लगाने से इंकार कर चुका था। उसी अदालत से सिंघवी कैसे उम्मीद कर सकते थे कि वह कोर्ट गिरफ़्तारी को अवैध कहेगा। लेकिन फिर भी गिरफ़्तारी को चुनौती दी और नतीजा वही हुआ जो कोई भी सोच सकता था।
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केजरीवाल कितना बड़ा बेपेंदी का लौटा है, इसके सार्वजनिक बयानों, जो सोशल मीडिया पर वायरल हैं, से समझा जा सकता है। अपने आपको और अपनी पार्टी को ईमानदार दिखाने के लिए दिया करता था, क्यों अब तिहाड़ से बाहर आने के तड़प रहा है? कोर्ट किसी को तिहाड़ कब भेजती केजरी को नहीं नहीं मालूम? केजरीवाल ने अपना विश्वास उस दिन ही खो दिया था जब इसने बच्चों की कसम खाकर कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बना ली थी। दूसरे, कांग्रेस की जिस तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जेल भेजने के लिए 370 सबूत लिए हर चुनावी रैली में दिखाया करता था, दीक्षित को तो जेल नहीं भेज पाया, लेकिन उसी कांग्रेस के अजय माकन की एक ही शिकायत ने केजरीवाल को ही जेल करवायी, बल्कि पूरी ही इसकी पार्टी को घोर संकट में डाल इसे किसी गहरे गंदे नाले में फेंकने की तैयारी कर दी है।
इसके पहले केजरीवाल से सिंघवी द्वारा 8 summons पर ED के सामने पेश न होकर सभी 9 summons की वैधता को हाई कोर्ट में चुनौती दिलवाने का क्या औचित्य था क्योंकि उससे तो साफ़ जाहिर हो गया कि केजरीवाल जानबूझकर summons की अनदेखी कर रहा था। फिर सिंघवी ने एक और औचित्यहीन तर्क दिया कि केजरीवाल पेश होगा लेकिन एक शर्त पर होगा कि उसकी गिरफ़्तारी नहीं होगी। दिल्ली हाई कोर्ट के जजों ने ED से केजरीवाल के खिलाफ सबूत मांगे जिन्हे देख कर जजों को खुद कहना पड़ा कि इसे अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया। हाई कोर्ट ने गिरफ़्तारी पर रोक न लगा कर एक तरह अनुमति दे दी कि ED गिरफ्तार कर सकती है।
अब गिरफ़्तारी को चुनौती देकर उस पर बहस करते हुए वही पुराना राग अलापा कि कोई पैसा नहीं मिला और बिना जांच और सबूतों के केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया है वह भी चुनाव के समय जिससे उसे बदनाम किया जा सके और पार्टी को ख़त्म कर दिया जाए। ऐसी बातें भला कानून की नज़र में कैसे सही मानी जा सकती हैं क्योंकि उनका गिरफ़्तारी के आधार से कोई लिंक नहीं है।
सिंघवी को शायद लग रहा था कि उनके अकेले के बस की बात नहीं है केस लड़ना और इसलिए बॉम्बे के वकील अमित देसाई को भी बुला लिया।
सिंघवी चुनाव का रोना रो रहे थे केजरीवाल के लिए जबकि उन्हें पता था कि यह भी एक कुतर्क है जो चलेगा नहीं क्योंकि सत्येंद्र जैन, सिसोदिया और संजय सिंह जब गिरफ्तार हुए थे तब तो कोई चुनाव नहीं थे। केजरीवाल को जब पहला summon अक्टूबर, 2023 में दिया गया था तब तो लोकसभा चुनाव नहीं थे। नवंबर में 3 राज्यों के चुनाव थे लेकिन उसके बाद भी केजरीवाल पेश नहीं हुआ। सिंघवी केजरीवाल की तरफ से कोई कानूनी पैरवी नहीं कर रहे थे बल्कि एक Political Theory पर ज्ञान पेल रहे थे जिसका कोई औचित्य नहीं था।
केजरीवाल और इसकी पार्टी को मालूम है कि शराब और पानी घोटाले से ज्यादा घोटाले तो सत्ता से बाहर होने पर कितने लोग जेल में निवास करने को विवश होंगे, कोई नहीं आएगा बचाने वाला। सिंघवी और कपिल जैसे पागल बनाकर इन सबको लूटते रहेंगे।
हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी का मामला लेकर कपिल सिब्बल सीधा सुप्रीम कोर्ट चला गया था जबकि उसे पता था पहले हाई कोर्ट जाने की जरूरत थी। जब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट जाने को कहा तो सिब्बल का बयान था कि अब हमें सीखना पड़ेगा किस मामले में हाई कोर्ट जाना होगा और किसके लिए सुप्रीम कोर्ट। अब 50 साल की प्रैक्टिस के बाद भी तुम्हे इतना नहीं पता तो तुम वकील केवल पैसा बनाने की मशीन हो।
तमिलनाडु के 5 DMs की ED के सामने पेश न होने पर सुप्रीम कोर्ट बहुत खफा हुआ और उनके सामने सिब्बल ने कुतर्क दिया कि जो information ED उनसे मांग रही है वह कह चुके हैं कि उनके पास नहीं है, फिर पेशी का क्या मतलब। कोर्ट ने कहा कि ED किसी को भी बुला सकती है और 25 अप्रैल को पेश हों वरना कार्रवाई होगी।
सिब्बल अपने घर के कानून चलाना चाहते हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि अगर DMs के पास सूचना नहीं है तो वे यह उन्हें ED के सामने बयान दर्ज करा कर कहना होता है क्योंकि ED के सामने दिया बयान एक हलफनामा होता है जिससे कोई मुकर नहीं सकता।
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