जो मनमोहन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, वो अगर मोदी कह देते तो क्या होता, विपक्ष विधवा विलाप कर रहा होता और सुप्रीम कोर्ट तांडव कर देता जो मनमोहन से अपने आदेश लागू नहीं करा सका; “गंभीर विषय है; ध्यान से पढ़िए”

सुभाष चन्द्र 

एक रिपोर्ट NDTV की उस समय की सामने आई है जो UPA सरकार के खाद्य सुरक्षा बिल लाने से पहले की है। उस समय सरकार के गोदामों में अनाज सड़ता था और सड़कों पर सड़े हुए  अनाज के ढेर लगे होते थे जिन्हे जानवर भी खाना पसंद नहीं करते थे आज आपको ऐसी ख़बरें देखने को नहीं मिलती गरीबों में अनाज मुफ्त बांटा जा रहा है और क्योंकि अनाज भंडारण क्षमता 405 लाख टन से बढ़ा कर 1450 लाख टन कर दी गई और अगले 5 साल में 2150 लाख टन हो जाएगी जिसके लिए 1 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे यह विश्व की सबसे विशाल खाद्य भंडारण योजना होगी

उस समय की NDTV के Editor पंकज पचौरी की रिपोर्ट में बताया गया था कि -

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चर्चित यूटूबर 
“देश की 46 % जनता यानी 50 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं और 1 करोड़ टन अनाज सरकार के गोदामों में सड़ रहा है लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद इसे गरीबों में बांटने को तैयार नहीं है प्रधानमंत्री मनमोहन ने सुप्रीम कोर्ट की नसीहत का जवाब दिया” 

सरकार 25 लाख टन अनाज राशन की दुकानों में भेजने को राजी है जबकि Food Commissioner की चेतावनी थी कि 1 करोड़ टन अनाज महीने भर में खाने लायक नहीं बचेगा

मनमोहन सिंह को लगता है कि एक PIL पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देकर ठीक नहीं किया। वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता ने कहा कि मनमोहन सिंह सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से सहमत नहीं है कि ये अनाज (गरीबों में) BPL के लोगों में फ्री बांट दो क्योंकि इससे Economic Problems हो जाएंगी

भाजपा अनाज की बर्बादी को लेकर सरकार को घेर रही थी और इसलिए सुषमा स्वराज ने पूछा था कि यदि अनाज बांट नहीं कर सकते तो खाद्य सुरक्षा बिल क्यों ला रहे हो क्योंकि उसमे तो आप जनता को भोजन का अधिकार दे रहे हो कि सरकार तुम्हें मुफ्त भोजन देगी, फिर उसे कैसे लागू करेंगे शरद पवार इस बिल को लाने के पक्ष में नहीं थे जबकि सोनिया गांधी इसे आगे लाने के लिए कोशिश में लगी थी और इसलिए पंकज पचौरी ने सवाल उठाया कि जो नसीहत मनमोहन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को दी हैं, वह क्या सोनिया गांधी को भी देंगे

अब सोचने का विषय है कि सुप्रीम कोर्ट को जो मनमोहन सिंह ने कहा, वह अगर किसी विषय पर प्रधानमंत्री मोदी कह देते तब क्या होता समूचा विपक्ष विधवा विलाप करते हुए मोदी को और जोर शोर से Dictator बता देता और जो सुप्रीम कोर्ट आज सरकार की हर नीति में और उसे लागू करने टांग अड़ाए रहता है, वह तांडव कर रहा होता 

आज सुप्रीम कोर्ट अपनी तानाशाही चलाने में पीछे नहीं रहता लेकिन मनमोहन सिंह सरकार से अपने इस छोटे से आदेश का पालन नहीं करा सका इसलिए मैं बार बार कहता हूं कि सुप्रीम कोर्ट नरेंद्र मोदी को समझे वरना उसने यदि अपनी चाल चलनी शुरू कर दी तो मुश्किल होगी 

मनमोहन सिंह के समय में अनाज के लिए याचिका सही मायने में PIL थी कोर्ट फिर भी कुछ नहीं कर सका जबकि केजरीवाल की गिरफ़्तारी को चुनौती देने की याचिका उसके निजी हित को साधने के लिए है लेकिन सुप्रीम कोर्ट उसे संविधान के अनुच्छेद 32 में जनहित याचिका  मानकर सुनवाई कर रहा है जबकि उसमे “जनहित” का तो कोई विषय है ही नहीं, इसे कहते हैं सही मायने में सुप्रीम कोर्ट की मनमानी और तानाशाही कि जैसे मर्जी कानून की व्याख्या “interpretation” कर लो

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