हैदराबाद : वाह श्रीराम जी कल तक हिन्दू देवी-देवताओं के लिए अभद्र बोलने वाले अकबरुद्दीन को बड़े भाई असदुद्दीन ओवैसी के साथ पहली बार मंदिर में माथा टेकने और पीत पटका गले में डालने को कर दिया मजबूर

वाह रे चुनाव तेरी बलिहारी! अपने असद्दुदीन ओवैसी इस बार ऐसे फंसे कि हैदराबाद से बाहर निकलना ही भूल गए। माधवी लता भारी पड़ेगी यह तो तय था। लेकिन इतनी भारी पड़ जाएंगी कि ओवैसी को मंदिर की चौखट पर जाकर माथा टेकना पड़ेगा, पुजारी द्वारा पहनाया गया पीत पटका गले में डालना पड़ेगा, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। हालाँकि ओवैसी ने माधवी द्वारा तमंचा पर तीर चढ़ाकर छोड़ने को नूपुर शर्मा की तरह विवादित बनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन जो ड्रामा किया था जनता के सामने। यहाँ भी ओवैसी की बैरिस्टरी फेल हो गयी।

कुछ महीने पहले संपन्न हुए विधान सभा चुनाव में बीजेपी को 7 सीटें ज्यादा मिली तो ओवैसी की पार्टी अपनी उतनी ही सीटें ले पायी। बीजेपी को 13.90% तो ओवैसी की पार्टी को 2.92 %वोट मिले। हैदराबाद संसदीय क्षेत्र में मुस्लिम आबादी है 60% और हिन्दू 40 प्रतिशत।

यह उन सभी सनातनी विरोधियों को आंख खोल कर देखना चाहिए। चुनाव परिणाम चाहे कुछ भी हो, लेकिन जो कल तक हिन्दू देवी-देवताओं को मंचों से अपमानित करता हो, आज मंदिर में जाकर माथा टेके, इसे श्रीराम की महिमा नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे। फिर भी राममंदिर का विरोध। फिर प्राण प्रतिष्ठा के दौरान लिखा था कि प्रभु श्रीराम का मंदिर केवल अयोध्या की नहीं बल्कि समस्त विश्व की दशा और दिशा बदलेगा। मुस्लिम देशों ने भी प्राण प्रतिष्ठा को लाइव दिखाया।


बीजेपी प्रत्याशी माधवी लता संगीत, कला और चिकित्सा जगत में एक बड़ा नाम हैं। मुस्लिम समुदाय में भी उनकी गहरी पैठ है। जाहिर है ओवैसी को वे इतनी जबरदस्त टक्कर दे रही हैं कि ओवैसी को राहुल से संपर्क कर कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी को रास्ते से हटाना पड़ेगा। कल तो हद ही हो गई, जब पंद्रह मिनट पुलिस हटा लो वाला विवादित चर्चित बयान देने वाले अपने भाई को साथ लेकर वे जीवन में पहली बार मंदिर जा पहुंचे। इस चुनाव में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो आश्चर्यचकित करता है। कल कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री और प्रवक्ता राधिका खेड़ा को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता छोड़नी पड़ी। उनका दोष इतना था कि वे अपने परिवार सहित अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन करने पहुंच गईं। लौटी तो छत्तीसगढ़ पार्टी कार्यालय में उनसे मारपीट की गई। राधिका का आरोप है कि उन्हें कमरे में बंद कर प्रताड़ित किया गया। अयोध्या जाने के लिए उनकी क्लास ली गई। तंग आकर राधिका ने पार्टी छोड़ दी। उनसे पहले गौरव वल्लभ और रोहन गुप्ता जैसे प्रवक्ता त्यागपत्र दे चुके हैं। प्रमोद कृष्णम जैसे प्रवक्ता भी इसी कारण गए। अरविंदर सिंह लवली तो अध्यक्ष पद छोड़कर बीजेपी में ही शामिल हो गए। अयोध्या न जाने का फैसला कितने कांग्रेसियों की विदाई करा गया, सबको पता है। यही कांग्रेस समेत सनातन विरोधियों को पतन की ओर धकेल दिया है। विश्व चर्चित चाणक्य ने उचित ही कहा था कि किसी विदेशी और उससे जन्मे बच्चों को सत्ता नहीं देनी चाहिए।
इस चुनाव में अब देखिए न राजनैतिक दलों में भगदड़ मची है। संजय निरुपम शिंदे शिवसेना से जा मिले हैं, राज ठाकरे बीजेपी से। ना ना करते प्यार का एक उदाहरण तो हाल ही में देश ने देखा। ना ना करते राहुल अमेठी के बजाय रायबरेली जा पहुंचे। लड़ सकने वाली न खुद लड़ीं और न ही लड़ने को तैयार पतिदेव को लड़ने दिया। बहुत कुछ नया हुआ है और हो रहा है इस चुनाव में। अब देखिए न राजनैतिक दलों में भगदड़ मची है। संजय निरुपम शिंदे शिवसेना से जा मिले हैं, राज ठाकरे बीजेपी से।
जो भी हो चुनाव पूरी तरह मोदी के इर्द गिर्द घूम रहा है। इसके जिम्मेदार सनातन -चाहे वह किसी भी धर्म/मजहब से हो -विरोधी हैं। जो नेता जनता और समय की गति न समझ पाए वह किसी दुकान पर नौकर के योग्य नहीं। वह तो दांव ओछा पड़ गया वरना कमलनाथ और नकुलनाथ भी बीजेपी की ड्योढ़ी पर पहुंच ही गए थे। बेचारे सचिन पायलट ही गुमनामी के अंधेरे भोग रहे हैं। लकीरें इतनी बड़ी खींची गई हैं कि मिलकर मैदान में उतरने के बावजूद कुछ लकीरें तो दिखाई भी नहीं पड़ रही। कुछ धुंधली लकीरें जरूर हैं जिन से होते हुए विपक्षी राजनीति की गाड़ी आगे बढ़ रही है। इस सब के बावजूद मौजूदा चुनाव बेहद उलझा हुआ है। इतनी गिरहें बंधी हुई हैं कि खोलने में वक्त लग रहा है।

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