गैर-मुस्लिमों(Ex-Muslims) पर शरिया लागू होगा या नहीं? अब सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला, याचिका में बोली केरल की महिला – हमें भारत के सेक्युलर कानून के तहत आने का मौका मिले

केरल की महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट लेगी निर्णय - गैर-मुस्लिमों पर शरिया लागू होगा या नहीं (फोटो साभार: BarAndBench/BingAI)
शाहबानो प्रकरण से लेकर तीन तलाक पर मुस्लिम कट्टरपंथी और मौलाना/मौलवी शरिया में दखल कर इस्लाम पर प्रहार बता आम मुसलमानों को भड़काते नज़र आए। और मुसलमान भी सरकार को मुस्लिम विरोधी मान सच्चाई से दूर रहे। शाहबानो मुद्दे पर तो राजीव गाँधी ने मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अन्याय को नज़रअंदाज़ कर कट्टरपंथियों के पैरों में सिर टिका कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही शून्य कर दिया। लेकिन मोदी सरकार नहीं। टीवी पर खूब परिचर्चाएं हुई, सारे चैनल अपनी TRP के चक्कर में सच्चाई को छुपाते नज़र आए। किसी भी चैनल ने Ex-Muslims को परिचर्चा में नहीं बुलाया, क्योकि इनको बुलाकर इनकी TRP नहीं बढ़ती। क्योकि Ex-Muslims के तर्कों के आगे कोई मौलाना/मौलवी टिक नहीं पता, शो बीच में छोड़कर भागते नज़र आते, जिससे जलेबी और रसगुल्ले की तरह मीठी-मीठी बातों से हिन्दू ही नहीं मुसलमानों को गुमराह करने वाले इन कट्टरपंथी मौलानाओं/मौलवियों की सच्चाई सामने आने पर कोई इन्हे नहीं पूछता।

  
भारत में Ex-Muslims की संख्या बराबर बढ़ रही है, जो कट्टरपंथियों के लिए सबसे बड़ा सिर दर्द बन रहे हैं। इन्होंने कट्टरपंथियों द्वारा गाज़ियों(मुग़ल) द्वारा चलाये इस्लाम का घोर विरोध करते नज़र आए। Ex-Muslims चर्चा में आए नूपुर शर्मा विवाद में, जो Jaipur Dialogue और News Nation के 'इस्लाम क्या कहता है' पर मौलानाओं और मौलवियों पर ऐसे तीखे प्रश्नों के तीर छोड़ते थे, कि वातानुकूलित कमरों में बैठे होने के बावजूद उनके पसीने छूट जाते थे। यदि वही प्रश्न किसी हिन्दू ने पूछ लिए होते नूपुर की तरह उसके पीछे भी 'सर तन से जुदा' गैंग पड़ गया होता। इस गैंग की बाढ़ आ गयी होती। ठीक से आयतें न पढ़ने पर भी  मौलानाओं/मौलवियों को इनके गुस्से का सामना करना पड़ता था। इन परिचर्चाओं में कई ऐसे विवादों से इन चैनलों को देखने वाले दर्शक-हिन्दू या मुस्लिम-रूबरू हुए उन्हें सुन हर मुसलमान तक हैरान रह गया। कई ऐसी कुरीतियां है जिन्हे हर मुसलमान इस्लाम के डर से नहीं बल्कि मौलानाओं/मौलवियों के फतवे के डर से मानने को मजबूर हैं। अनवर शेख की पुस्तकों में पढ़ने के बाद नूपुर शर्मा विवाद में हुई चर्चाओं में कुरीतियां ताजी हो गयीं। अनवर शेख ने खुलकर उन कुरीतियों पर लिखा, लेकिन किसी में शेख के विरुद्ध फतवा या किसी भी किताब को बैन करने की हिम्मत तक नहीं की। निजामुद्दीन, नई दिल्ली से प्रकाशित होने उर्दू साप्ताहिक ने उन पुस्तकों के विरुद्ध आवाज़ उठाने की कोशिश जरूर की, लेकिन नगाड़े की आवाज़ के आगे तूती की आवाज़ दबकर रह गयी यानि इस्लाम के किसी ठेकेदार ने नहीं की परवाह। लेकिन अनवर शेख की किताबें पड़ने का मौका जरूर मिल गया। तस्लीमा और रश्दी के विरुद्ध फतवा देने वाले अनवर के खिलाफ हिम्मत नहीं कर पाए।   

 

इन एक्स-मुस्लिम का ज्वलंत प्रश्न 

अल्लाह एक,

कुरान एक,

नबी एक।

फिर भी शिया, सुन्नी, अहमदिया, सूफी, मुजाहिद्दीन जैसे 13 फिरके एक दुसरे के खून के प्यासे। सबकी अलग मस्जिदें। साथ बैठकर नमाज नहीं पढ़ सकते। कब्रिस्तान अलग। मजहब के नाम पर एक-दूसरे का कत्ल करने को सदैव आमादा।

पूर्व मुस्लिमों(Ex Muslims) पर शरिया कानून लागू होना या नहीं? अब सुप्रीम कोर्ट इस बड़े मुद्दे पर सुनवाई करने वाला है। सवाल है कि क्या Ex Muslims 1937 के शरीयत कानून के तहत ही प्रशासित किए जाते रहेंगे या फिर उन पर भारत का धर्मनिरपेक्ष कानून लागू होगा? खासकर, संपत्ति और वसीयत के संबंध में। केरल की एक महिला द्वारा दायर रिट याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस भी जारी किया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस DY चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाले 3 सदस्यीय पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की।

साफिया पीएम ने ये याचिका दायर की है। ‘एक्स मुस्लिम्स ऑफ केरल’ संगठन की जनरल सेक्रेटरी सफिया ने सुप्रीम कोर्ट से ये आदेश पारित करने का निवेदन किया है कि इस्लाम मजहब छोड़ चुके जो लोग शरीयत की जगह भारत के सेक्युलर कानून के अंतर्गत आना चाहें, उन्हें इसकी अनुमति दी जाए। यानी, संपत्ति एवं वसीयत के मामले में उन्हें इंडियन सक्सेशन एक्ट, 1925 के अंतर्गत आया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इसे महत्वपूर्ण मसला बताते हुए अटॉर्नी जनरल से कहा कि वो एक कानूनी अधिकारी को नियुक्त करे, जो सुप्रीम कोर्ट की सहायता करे।

पहले तो सुप्रीम कोर्ट की पीठ इस मामले को सुनने से हिचक रही थी, साथ ही ये भी कहा कि जब तक अपनी वसीयत बना रहा शख्स ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लिकेशन एक्ट’, 1937 के सेक्शन-3 के तहत खुद घोषणा न की हो तब तक ये कानून लागू होगा। एडॉप्शन में भी शरिया ही लागू होगा। अगर घोषणा नहीं की गई तो फिर पर्सनल लॉ के तहत ही चीजों का फैसला होगा। पीठ में जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस JB पार्डीवाला भी शामिल थे।

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने साफिया के वकील प्रशांत पद्मनाभन से सहमति जताते हुए कहा, “यहाँ एक समस्या है। क्योंकि, अगर आप घोषणा नहीं करते हैं तो तब भी यहाँ एक शून्य है क्योंकि सेक्युलर लॉ अप्लाई होगा ही नहीं। जब हमने पढ़ना शुरू किया तो कहा कि ये भला किस तरह की याचिका है। अब जब आप इसके भीतर घुस चुके हैं, ये एक महत्वपूर्ण बिंदु है। हमलोग नोटिस जारी करेंगे।” याचिकाकर्ता का कहना है कि उसका जन्म इस्लाम में हुआ था, उसके अब्बा एक नॉन-प्रैक्टिसिंग मुस्लिम हैं।

याचिका के मुताबिक, उसके मुस्लिम अब्बा ने आधिकारिक रूप से मजहब नहीं छोड़ा है, ऐसे में वो अपनी बेटी के अधिकारों को सुरक्षित रखने में समस्या का सामना कर रहे हैं। वो चाहती है कि उस पर शरिया न लागू हो, लेकिन कानून में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है। यानी, एक शून्य है जिस पर न्यायपालिका ही कुछ कर सकती है। अगर वो नो-रिलिजन या नो-कास्ट सर्टिफिकेट ले ले, तब भी भारत के धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत विरासत और वसीयत का अधिकार उसे नहीं मिलेगा।

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