एक दिन में एक नहीं तीन मक्कारी भरे काम किए Justice (s) खन्ना और दत्ता ने और साबित कर दिया केजरीवाल हिंदुस्तान की किसी भी “फिरदौस” को खरीद सकता है;क्या चुनाव केजरीवाल के लिए है, हेमंत के लिए नहीं?

सुभाष चन्द्र

जस्टिस खन्ना और जस्टिस दत्ता के केजरीवाल को जमानत देने के फैसले ने साबित कर दिया केजरीवाल किसी को भी खरीद सकता है चाहे वह हिंदुस्तान की कोई “फिरदौस” ही क्यों न हो, सुप्रीम कोर्ट के एक चीफ जस्टिस ने वीएन खरे ने रिटायर होने के बाद कहा था कि “पैसा न हो तो न्याय के लिए अदालत की तरफ देखना भी गुनाह है"। आज सुप्रीम कोर्ट के बाहर लिख देना चाहिए कि “हम सब बिकाऊ हैं, खरीदने की हिम्मत होनी चाहिए”

लेखक 
चर्चित यूटूबर 
कल इन दोनों जजों के 2 और मक्कारी भरे काम नज़र आए जब कल रात सोने से पहले news portals को खंगाल रहा था। इसमें एक मामला था झारखंड के हेमंत सोरेन का और केजरीवाल का और दोनों मामले Parallel देखने चाहिए। केजरीवाल के साथ सोरेन पर चर्चा का मतलब यह नहीं है कि मैं उसके पक्ष में खड़ा हूं। दूसरा मामला था केजरीवाल गिरोह के लोगों के केस लड़ने वाले वकीलों को फीस के भुगतान का। 

आज देश सुप्रीम कोर्ट से जानना चाहता है कि जब केजरीवाल को जमानत मिल सकती है, हेमंत सोरेन को क्यों नहीं? अगर केजरीवाल का दिल्ली और पंजाब में प्रभाव है तो हेमंत का झाड़खंड और समीपवर्ती राज्यों में। क्या चुनाव केजरीवाल के लिए है, हेमंत के लिए नहीं? आरोप दोनों पर घोटाले के हैं। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ खामोश क्यों? इसका मतलब है जस्टिस वी एन खरे ने जो कहा था, उसे सुप्रीम कोर्ट ने ही सच साबित कर दिया। इसकी जाँच कौन करेगा? 

केजरीवाल ने कोई अंतरिम बेल की अर्जी नहीं लगाई, उसने कोर्ट में केवल अपनी गिरफ़्तारी को illegal कहा। दूसरी तरफ 29 अप्रैल को सोरेन ने illegal गिरफ़्तारी के सिवाय “अंतरिम जमानत” की भी अर्जी लगाई थी और खन्ना/दत्ता लगाई ED को उस दिन नोटिस जारी कर 6 मई तक जवाब मांगा था

उसके पहले ही 1 मई को खन्ना जी ने हल्ला ठोक दिया कि केजरीवाल को चुनाव में arrest क्यों किया और 3 मई को उन्हें एक भूत चढ़ गया और स्वतः ही केजरीवाल को Interim Bail का मामला उठा दिया। 7 मई को सुनवाई भी पूरी कर ली लेकिन Order नहीं दिया। 

उधर ED ने सोरेन पर 6 मई को जवाब तो दे दिया होगा लेकिन खन्ना जी की बेंच ने सोरेन की Interim Bail के सुनवाई की जरूरत नहीं समझी। 

अब 11 मई को खन्ना जी और दत्ता को केजरीवाल को येन केन प्रकारेण जेल से बाहर करना ही  था और कर दिया चाहे सोशल मीडिया पर जनता उन्हें कुछ भी कहे। उन्हें तो कुछ “ताकतों” का जैसे कर्ज उतरना था ऐसा लग रहा था

लेकिन 11 मई को ही हेमंत सोरेन के 2 मामले लगे थे। एक तो उसने अपील की थी कि हाई कोर्ट ने उसकी गिरफ़्तारी को illegal कहने की उसकी याचिका पर फैसला करने का आदेश दिया जाए और उसकी interim bail का मामला। लेकिन खन्ना ने arrest के बारे में कह दिया कि हाई कोर्ट 3 मई को फैसला दे चुका है तो आपकी याचिका “infructuas” हो गई जिसके खिलाफ आपने दूसरी बेंच में अपील की। और दूसरी बेंच ही interim bail का मामला भी देख लेगी 13 मई को

मजे की बात है 13 मई को झारखंड में पहले चरण का चुनाव है पर उसके लिए खन्ना जी ने न सुनवाई की और न order दिए और जो चुनाव दिल्ली में 15 दिन के बाद है, उसके लिए केजरीवाल को छोड़ दिया। 

इसके अलावा केजरीवाल सरकार ने LG के 2 आदेशों और गृह मंत्रालय के एक आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी जिसमें LG ने दिल्ली सरकार को अपनी पसंद के वकील नियुक्त करने और उनकी फीस तय करने से रोका था। इसका मतलब साफ़ है अभी वकीलों की न नियुक्ति  हुई और न उनकी फीस तय हुई लेकिन खन्ना/दत्ता ने कल 11 मई को LG को हुकुम दे दिया की सभी वकीलों  की बकाया फीस का भुगतान कर दिया जाए और इसे Prestige Issue न बनाया जाए

इस वकीलों पर फैसले से फिर से यकीन पक्का होता है कि मीलॉर्ड भी जनता के पैसे की लूट में भागीदार हो गए लगते हैं क्योंकि जब वकीलों की फीस तय ही नहीं हुई तो भुगतान क्यों? आखिर क्यों केजरीवाल पर इतने मेहरबान क्यों हैं मीलॉर्ड

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