अनावश्यक थी केजरीवाल की याचिका और उस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई; हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में था ट्रायल कोर्ट के आर्डर पर रोक लगाना

सुभाष चन्द्र

केजरीवाल की हाई कोर्ट द्वारा उनकी जमानत पर रोक लगाने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका भी बेमानी थी और उस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी अनावश्यक थी। लेकिन अभिषेक मनु सिंघवी का मीटर चल गया पैसा कमाने का सिंघवी की फीस के पैसे तो जनता की जेब से जाएंगे केजरीवाल के बाप का क्या जाता है?

केजरीवाल का मुख्यमंत्री से इस्तीफा न देने की असली वजह यही है कि मुख्यमंत्री रहते सारा खर्चा सरकारी होगा। लगता किसी अदालत में कोई काम नहीं, इसीलिए हाथों-हाथ केजरीवाल को प्रमुखता दी जा रही है। क्यों न हो, जब आतंकवादियों के लिए आधी रात को कोर्ट खुल सकती है तो ये पाखंडी केजरीवाल है। दूसरे, किसी भी कोर्ट ने केजरीवाल से न ये पूछा की अपने electronic devices का पासवर्ड क्यों नहीं बताया जा रहा? पहले पासवर्ड बताओं बाद में कोई सुनवाई होगी। जिस दिन पासवर्ड दे दिया, सारे घोटाले सामने आ जायेंगे और अगर जमानत के दिनों में format करवाया लिया हो तो थर्ड डिग्री कर पूछताछ होनी चाहिए।    

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स्पेशल जज न्याय बिंदु ने 20 जून को केजरीवाल को जमानत दे दी जिस पर अगले दिन 21 जून को stay लगा दिया, ED की याचिका पर फैसला होने तक के लिए कोई भी साधारण व्यक्ति जानता है कि ट्रायल कोर्ट ने आदेश पर हाईकोर्ट रोक लगा सकता है और  हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा सकता है

इसलिए मैंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में उस पर सुनवाई करना गैर जरूरी था जस्टिस मनोज मिश्र और जस्टिस SVN Bhati की पीठ ने कहा था कि मामला गंभीर है और यदि हम आदेश देते है तो मामले में पूर्व निर्णय सुनाने वाली बात होगी

आप सिंघवी की मक्कारी देखिए, उसमे आज सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ये बेल को रोकने के आदेश के हाई कोर्ट के आदेश “अभूतपूर्व” हैं, क्या केजरीवाल को याचिका पर हाई कोर्ट के फैसले तक के लिए अंतरिम रिहाई नहीं दी सकती? इस बात से पता चलता है कि सिंघवी कितना बड़ा मक्कार है कि सुप्रीम कोर्ट से पहले अंतरिम जमानत मांगी थी और अब “अंतरिम रिहाई” मांग रहा है

सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा बेल पर रोक लगाने के ऑर्डर 21 जून के हैं और आज तक यानी 24 जून तक का समय दिया था केजरीवाल को, इसलिए बेंच ने कहा कि हमें हाई कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए

जब जमानत के आदेश पर रोक लगाना हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में था तो उसके खिलाफ कोई अपील सुनवाई के लिए admit ही नहीं होनी चाहिए थी और न सुनवाई होनी चाहिए थी क्योंकि उसे चुनौती देने के लिए कोई Legal Ground था ही नहीं जब मर्जी सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री खुद ही याचिकाएं अस्वीकार कर देती है और कभी केजरीवाल की याचिका गोली की तरह चला देती है, खटाखट बेंच के सामने लगा देती है और फटाफट सुनवाई भी हो जाती है

अगर पिछले 10 साल का रिकॉर्ड देखा जाए तो केजरीवाल के दायर किये हुए मुकदमों की संख्या कई हजारों में होगी जिन पर जनता के पैसे की बर्बादी की जा रही है 

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