मुस्लिमों का बदला, जय फिलिस्तीन, कश्मीर में 90 वाला नरसंहार की धमकी… Muslim will be Muslim, जिस ‘मजहबी वफादारी’ से आगाह कर गए थे अंबेडकर वह खतरा टला नहीं

हिन्दुओं को मुस्लिम सियासत जिस ओर जा रही है, उसे गंभीरता से लेना पड़ेगा। तुम इस्लाम का सामना करने में असमर्थ हो यही अकाट्य सत्य है।
हिन्दू व्यक्तिवाद, जातिवाद, समाजवाद, राष्ट्रवाद में उलझा हुआ है और मुस्लिम कट्टरपंथी 1400 वर्षो से इस्लामिक संघर्ष अर्थात् जिहाद करते आ रहे है। लेकिन कोई हिन्दू संगठन मुस्लिमों में जातपात को exploit करने में पूर्णरूप से असफल है। जिस दिन हिन्दू संगठनों ने ऐसा शुरू कर दिया मुस्लिम कट्टरपंथी ही नहीं, आरक्षण और जातपात पर सियासत करने वाले हिन्दू भी पीछे हटते नज़र आएंगे। 
जमीन जिहाद:- काफिर की धरती पर जाकर उनसे शरण मांगना धीरे धीरे जमीन को अपने कब्जे में करना।
जनसंख्या बढ़ोत्तरी जिहाद:- 9 वर्ष से लेकर 50 वर्ष तक की मुस्लिम औरत और लड़की से बच्चे पैदा करवाने की भरपूर कोशिश करना।
लव जिहाद:- गैर मुसलमानो की बहन- बेटी को धीरे धीरे अपने प्यार के जाल में फसाना।
मतांतरण जिहाद:- गैर मुसलमानो की कमियां खोज कर उनसे इस्लाम कबूल करवाना।
व्यवसाय जिहाद:- हाथो के कारीगर और जमीन व्यवसाय पर मजबूती से पकड़ बनाना।
असूरवृति जिहाद:-  अपने समाज के भीतर खून खराब देखने की हिम्मत पैदा करना।
तबलीगी जिहाद:- गैर मुसलमानो को इस्लाम की दावत देना।
हाल के समय में कई चीजें ऐसी सामने आई हैं जो कि हिंदुओं के लिए काफी डराने वाली है। ये डर लगातार गहरा होता जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ एक मुस्लिम सांसद कश्मीर में हुए हिंदुओं के नरसंहार को खुलेआम खारिज करते हैं और धमकी देते हैं कि 370 हटा रहा तो वापस से पुराने हाल होंगे। दूसरे मुस्लिम नेता कहते हैं भाजपा को हराकर मुस्लिमों ने बीजेपी से बदला लिया है और तीसरे नेता संसद में खुलेआम जाकर ‘जय फिलीस्तीन’ के नारे बुलंद करता दिखते हैं। ऐसे लोगों के बीच देश के प्रधानमंत्री ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे के साथ देश को विकसित करने की सोच रहे हैं। सवाल है कि क्या सिर्फ प्रधानमंत्री के सोचने से ऐसा संभव हो पाएगा वो भी तब जब मुस्लिम सांसद और नेता इस प्रकार से खुलकर हिंदूविरोधी बयानबाजी करते हैं और बात सिर्फ मजहब की और मजहब के लोगों की करते हैं।

‘370 हटने से कश्मीरियों में गुस्सा, कभी भी भड़क सकते हैं’ : JKNC नेता रुहुल्लाह मेहदी

श्रीनगर से नवनिर्वाचित सांसद व जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के नेता रुहुल्लाह मेहदी ने खुलेआम भारत की सरकार के खिलाफ प्रोपगेंडा साइट द वायर पर बयान दिया। रुहुल्लाह मेहदी ने इस इंटरव्यू में कहा कि कश्मीरियों में आर्टिकल 370 हटाए जाने का गुस्सा है जो कि कभी फूट सकता है जैसा कि स्वतंत्रता के 40 साल बाद देखने को मिला था। आरफा खानुम शेरवानी को दिए इटरव्यू में रुहुल्ला मेहदी ने इस्लामी आतंक को धो पोंछने के लिए साथ इस मुद्दे पर बात की। साथ ही कहा कि मुस्लिमों को टारगेट करके मॉब लिंचिंग हो रही है, सिखों को खालिस्तानी कहा जा रहा है, ईसाइयों को धर्मांतरण का आरोप लगाकर सामाजिक कार्य करने से रोक रहे हैं।
दिलचस्प बात ये है कि अपने इंटरव्यू में मेहदी को हिंदुओ की आवाज उठानी जरूरी नहीं लगी। इसके अलावा रुहुल्लाह ने साफ-साफ कश्मीरी पंडितों के उस दर्द से खारिज कर दिया जिसे वो लोग पिछले 34 साल से सीने में दबाए हुए थे और कश्मीर फाइल्स में दिखाई गई हकीकत को देख रो पड़े। जेकेएनसी नेता ने तो कहा कि द कश्मीर फाइल्स में दिखाई गई चीजें सच नहीं हैं। मेहदी एक तरफ इस्लामी कट्टरपंथ को मानने से इनकार करते दिखे है तो दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों को हिंदुत्व से लड़ने के लिए मुस्लिमों के साथ खड़े होने को कहते दिखे।

मुस्लिमों ने वोट देकर भाजपा को दिया जवाब: मौलाना मदनी

इसी तरह जमीयत उलेमा ए हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने भी लोकसभा चुनावों के बाद ताजा बयान दिया है। चुनावों के नतीजों पर मौलाना मदनी ने कहा कि लोगों ने नफरत और सांप्रदायिकता की राजनीति को खारिज कर दिया और इसका सारा श्रेय मुस्लिमों द्वारा बुद्धिमानी से किए गए मतदान को जाता है। अगर मतदाताओं ने समझदारी से वोट नहीं डाले होते तो नतीजे अलग हो सकते थे। ये मौलाना मदनी वहीं है जिन्हें तालिबान एक आतंकी संगठन नहीं लगता बल्कि उन्हें वो स्वतंत्रता सेनानी जैसा मानते हैं। मदनी ने एक बार इंटरव्यू में तालिबान का पक्ष लेते हुए कहा था कि अगर सिर्फ गुलामी के खिलाफ लड़ना आतंकवाद है तो इस हिसाब से तो महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू और मौलाना हजरत शेखुद्दीन भी आतंकवादी थे।

‘जय फिलीस्तीन’ के नारे

इनके अलावा हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी को पिछले दिनों खुलेआम जय फिलिस्तीन के नारे लगाते सुना ही गया था। उन्होंने लोकसभा सदन में सांसद पद की शपथ उर्दू भाषा में ली थी। शपथ के बाद ओवैसी को “जय भीम-जय मीम” और “अल्लाहू अकबर” के नारों के साथ “जय फिलिस्तीन” कहते सुना गया था। जबकि देश का जो संविधान ओवैसी को सांसद बनने के लिए योग्य बनाता है उसी संविधान के अनुच्छेद 102, 103 में वह स्थितियाँ बताई गई हैं, जिनके अंतर्गत किसी संसद सदस्य को अयोग्य घोषित किया जा सकता है। अनुच्छेद 102 के भाग ‘घ’ में लिखा है कि ऐसे संसद सदस्य को अयोग्य घोषित किया जा सकता है जो भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी दूसरे राष्ट्र की नागरिकता ले ली है।

कैसे होगा सबका-साथ सबका विकास?

तीनों नेताओं के ऐसे बयानों से स्पष्ट है कि ऐसे मुस्लिम नेता समाज में लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देते हुए खुलेआम मजहब की राजनीति करते हैं और उनके समर्थक इसी आधार पर इन्हें अपना मसीहा मानते हैं जबकि दूसरी ओर प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी सरकार में आने के बाद से लगातार जो देश के हर वर्ग के लिए काम करने में लगे हैं मगर उससे इनके समर्थकों का कोई सरोकार नहीं। वो भूल बैठे है कि पीएम मोदी ने ही सरकार बनने के बाद तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं को राहत दिलवाई और इसके खिलाफ कानून बनाया। इसके अलावा घर-घर राशन बिजली-पानी बिन किसी भेदभाव के पहुँचाया… पीएम मोदी ने मुस्लिम समुदाय के जीवन स्तर को सुधारने के लिए जो प्रयास किए उसके कारण कई बार उनके धुर समर्थक तक उनके ऊपर ‘तृप्तिकरण’ का आरोप लगाते दिखे। बावजूद इसके उन्होंने जैसे देश के बाकी समुदायों के लिए काम किया, वैसा मुस्लिमों के हित में करते दिखे ताकि उन्हें अच्छी शिक्षा, स्कॉलरशिप और अन्य हर वो सुविधा मिले जो बाकी नागरिकों को मिलती है… लेकिन जब बात आई उन्हें समर्थन करने की तो मजहब परस्त लोगों को उनसे ज्यादा वो लोग विश्वसनीय लगे जो बातें ही सिर्फ अराजकता और हिजाब-बुर्का की करते हैं।

बाबासाहब अंबेडकर के क्या थे विचार

मालूम हो कि भले ही आज पीएम मोदी सरकार में इन नेताओं का और इनके समर्थकों का ऐसा चेहरा उभर कर सामने आ रहा है, लेकिन हकीकत तो यह है कि दशकों पहले डॉक्टर भीम राव अंबेडकर खुद भी इनकी ऐसी प्रवृति के बारे में सबको बता चुके हैं। अंबेडकर के विचारों का एक संग्रह में पढ़ने को मिलता है- “इस्लाम में जिस भाईचारे की बात की गई है, वो केवल मुस्लिमों का मुस्लिमों के साथ भाईचारा है। इस्लामिक बिरादरी जिस भाईचारे की बात करता है, वो उसके भीतर तक ही सीमित है। जो भी इस बिरादरी से बाहर का है, उसके लिए इस्लाम में कुछ नहीं है- सिवाय अपमान और दुश्मनी के। इस्लाम के अंदर एक अन्य खामी ये है कि ये सामाजिक स्वशासन की ऐसी प्रणाली है, जो स्थानीय स्वशासन को छाँट कर चलता है। एक मुस्लिम कभी भी अपने उस वतन के प्रति वफादार नहीं रहता, जहाँ उसका निवास-स्थान है, बल्कि उसकी आस्था उसके मज़हब से रहती है। मुस्लिम ‘जहाँ मेरे साथ सबकुछ अच्छा है, वो मेरा देश है’ वाली अवधारणा पर विश्वास करें, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता।”
इसके अलावा बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि इस्लाम कभी भी किसी भी अपने नुमाइंदे को यह स्वीकार नहीं करने देगा कि भारत उसकी मातृभमि है। बाबासाहब के अनुसार, इस्लाम कभी भी अपने नुमाइंदो को यह स्वीकार नहीं करने देगा कि हिन्दू उनके स्वजन हैं, उनके साथी हैं। बाबा साहब ने इस मामले पर विचार प्रकट करते हुए ये भी कहा था कि मुस्लिम उसी क्षेत्र को अपना देश मानेगा, जहाँ इस्लाम का राज चलता हो…आज के समय में बाबा साहब की मुस्लिमों को लेकर कही गई ये सारी बात सत्य साबित होती दिखती हैं। बाबा साहब ने जैसा कहा था कि मुस्लिम उसी क्षेत्र को अपना मानेंगे जहाँ इस्लाम का राज चले, ठीक वैसे ही मुस्लिम आज के समय में उसी नेता पर विश्वास जताते हैं जो सिर्फ इस्लाम की बात करे। उनके लिए विकास का अर्थ देश का विकास नहीं बल्कि मजहबी विकास है। वहीं शिक्षा का अर्थ दीनी तालीम का प्रसार है।

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