वर्ष 1985 में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने शाहबानो केस में CrPc के section 125 मुस्लिम महिलाओं को तलाक़ के बाद अपने शौहर से गुजारा भत्ता लेने का अधिकार दिया था। उस बेंच में जज थे - चीफ जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़, जस्टिस रंगनाथ मिश्रा, जस्टिस डी ए देसाई, जस्टिस ओ चिनप्पा रेड्डी और जस्टिस E S Vekkataramaiah। इस फैसले में मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के फैसले की पुष्टि की गई थी और मौहम्मद अहमद खान को अपनी पत्नी शाहबानो को गुजारा भत्ता देने के आदेश दिए गए थे। फैसले में कहा गया था मुस्लिम पर्सनल लॉ के रहते हुए भी तलाकशुदा औरत को CrPc के section 125 में गुजारा भाता लेने का अधिकार है।
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लेखक चर्चित YouTuber |
लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम संगठनों के दबाव में और मुस्लिम तुष्टिकरण की खातिर संसद में बिल पास करा कर वह आदेश रद्द कर दिया और मुस्लिम औरतें फिर अपनी पतियों की रहमोकरम पर सड़कों पर आ गई। लेकिन 30 साल बाद नरेंद्र मोदी ने उन्हें ट्रिपल तलाक़ से मुक्ति दिलाई और रात के अंधेरे में छोटी छोटी बात पर बच्चों के साथ घर से निकाले जाने से छुटकारा दिलाया लेकिन वे औरतें सब भूल गई और मोदी को 2024 के इलेक्शन में तबियत से उसे हटाने के लिए वोट दिया।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तलाकशुदा मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने के निर्णय से मुस्लिम कट्टरपंथियों में बड़ी जबरदस्त खलबली मच गयी है। उनके द्वारा इसे इस्लाम पर हमला बताया जा रहा है। जुलाई 11 को टीवी परिचर्चाओं में सहभागी बने मौलानाओं को पहली बार जलील होते देखा। सबसे बड़ी बात News18 पर एंकर लुबिका लियाकत द्वारा उस तस्लीम रहमानी को, जिसके कारण निर्दोष नूपुर शर्मा को 'सर तन से जुदा' गैंग की वजह से गुमनामी जिंदगी जीने को मजबूर होना पड़ा, मुंह काला करने को बोल दिया। नीचे देखिए वीडियो।
हो सकता है कि ये कट्टरपंथी जितना ज्यादा इस मुद्दे को उछलेंगे, उतना ही इस्लाम के लिए नुकसानदेह होने वाला है। इन परिचर्चाओं में एक बात मुखर हुई की निकाह एक contract है, लेकिन ये नहीं बता रहे कि contract for what? हलाला? आने वाले समय में यही contract for what गरमाने वाला है। दूसरे, इन परिचर्चाओं में एक बात और सामने आयी कि 'जब कोई पुरुष चोरी करता है, जेब काटता है, क़त्ल करता है आदि अपराध करने पर कोर्ट को क्यों जाते हैं, तब शरीयत कहाँ चली जाती है? औरतों के अधिकारों पर ही शरीयत क्यों जरुरी हो जाती है?
जुलाई 10 को भी सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस B V Nagarathna और जस्टिस Augustine George Masih की पीठ ने एक बार फिर section 125 में मुस्लिम महिला के गुजारा भत्ता पाने के अधिकार को सही कहा और यह भी कहा कि यदि किसी महिला की अर्जी Section 125 में लंबित है तो वह The Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Act, 2019 के अंतर्गत भी अपना अधिकार मांग सकती है।
इसी क़ानून में ट्रिपल तलाक़ देने वाले को 3 साल की सजा का प्रावधान किया गया था जिसके खिलाफ बड़े बड़े मौलाना लड़ते रहे हैं।
जुलाई 10 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक मुस्लिम द्वारा लड़ा गया था और हाई कोर्ट ने उसे अपनी तलाकशुदा पत्नी को 10 हजार रूपए महीने गुजारा भत्ता देने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है।
ऐसे में अब सवाल उठता है कि जो नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम महिलाओं के लिए किया, वह उनके ही हित में था लेकिन कुल मिला कर औरतों समेत 98% मुसलमानों ने मोदी को हटाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया और कांग्रेस के तलुए चाटने लगे जिसने शाहबानो केस से लेकर अभी तक मुस्लिम महिलाओं का साथ नहीं दिया। 2024 लोक सभा चुनाव में कुछेक मुस्लिम महिलाओं को बीजेपी को वोट देने के कारण तलाक का सामना करना पड़ा।
आज भी कांग्रेस जुलाई 10 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद से रद्द कराने के लिए हल्ला ठोकेगी। अब देखते हैं मुस्लिम संगठनों ने जिस तरह शाहबानो के फैसले के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, अब कितना उत्पात करते हैं।
वैसे तो जो आचरण मुस्लिम महिलाओं ने मोदी के लिए दिखाया है, अब मोदी की तरफ से उनके लिए कुछ भी करना फिर से धोखा खाना होगा क्योंकि ये महिलाएं और मुस्लिम पुरुष किसी हाल में मोदी का समर्थन नहीं करेंगे।
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