प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र : न्यायिक प्रक्रिया में सुधार के लिए सुझाव

सुभाष चन्द्र

आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी, 

आपने 15 अगस्त, 2024 के लाल किले से अपने संबोधन में न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाने की बात कही थी और यह भाजपा के 2024 लोकसभा चुनाव के “संकल्प पत्र” में भी था। 

इन सुधारों के लिए कुछ सुझाव दे रहा हूं यदि इन्हे अमल में लाया जाए तो देश का बहुत भला होगा और आपको लोगों का भरपूर समर्थन मिलेगा क्योंकि लोग आज न्यायपालिका की खासकर सुप्रीम कोर्ट की तानाशाही और पक्षपात के आचरण से क्रोध में हैं और सुप्रीम कोर्ट पर अंकुश लगाने के पक्षधर हैं

लेखक 
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अपने सुझाव नीचे दे रहा हूं -

1. सबसे पहले NJAC को बहाल किया जाए और Collegium ख़त्म किया जाए जिसका जिक्र संविधान में नहीं है और SC को कानून बनाने का कोई अधिकार भी नहीं था लेकिन फिर भी देश पर यह Collegium थोपा गया; कॉलेजियम ने राष्ट्रपति द्वारा “Consultation” को “Concurrence” में बदल कर संविधान संशोधन तक कर दिया जिसे केवल संसद कर सकती है वह भी दो तिहाई बहुमत से;

2.  सुप्रीम कोर्ट के 16 अक्टूबर, 2015 के NJAC, 2014 को रद्द करने के फैसले को सरकार को आज भी REJECT कर देना चाहिए क्योंकि वह फैसला संवैधानिक तौर पर गलत था। उसके 2 कारण थे :- 

a).  2nd और 3rd Judges’ केस के Collegium पर फैसले सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंचों ने दिए थे और इसलिए उससे बड़ी बेंच को ही NJAC, 2014 पर विचार करना चाहिए था लेकिन किया 5 जजों की बेंच ने, और 

b.  क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ और उसके Judges NJAC मामले में स्वयं “Stakeholder” और “Interested party” होने के नाते कोई फैसला करने का अधिकार नहीं रखते थे जो खुद एक पक्षकार हो, वो कैसे अपने ही खिलाफ किसी मामले में फैसला दे सकता है;

3. न्यायपालिका में जजों से संबंधित rules / कानून बनाने के लिए चीफ जस्टिस से कोई सलाह न ली जाए

4. सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज को चीफ जस्टिस नियुक्त करने का यदि कोई प्रावधान है तो फिर तो रिटायर होने वाले CJI को अपने उत्तराधिकारी के नाम का अनुमोदन करने की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए और अगर ऐसा प्रावधान नहीं है तो सबसे वरिष्ठ जज के नाम का प्रस्ताव आने पर किसे चीफ जस्टिस नियुक्त किया जाए यह विशेषाधिकार सरकार की Recommendation पर राष्ट्रपति को होना चाहिए;

5. Judicial Independence की आड़ में आज न्यायपालिका सरकार के हर फैसले में दखल देकर सरकार चलाने की कोशिश कर रही है जबकि उसकी कोई जवाबदेही नहीं है निहित स्वार्थ के चलते कुछ नामी वकील PIL दायर करते हैं और सुप्रीम कोर्ट दखल के लिए तैयार हो जाता है इसलिए PIL के लिए Public Interest की व्याख्या फिर से करने की जरूरत है;

6. ऐसा कहा जाता है हाई कोर्ट के जज को सुनवाई पूरा होने के बाद 6 महीने में फैसला सुना देना आवश्यक होता है लेकिन कई बार जज ऐसा नहीं करते और कभी कभी रिटायर भी हो जाते हैं इसे अनुशासनहीनता माना जाना चाहिए और ऐसे जज की कम से कम 6 महीने की पेंशन जब्त कर देनी चाहिए;

7. जब तक NJAC बहाल नहीं होता तब तक जजों की हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए collegium नाम की सिफारिश करने के साथ नियुक्त होने वालों की Assets & Liability statement साथ भेजे अन्यथा किसी recommendation पर कोई कार्रवाई न की जाए

8. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपनी Assets & Liability statement website पर भी डालें और सरकार को भी भेजें इन statements में जजों के परिवार के सभी सदस्यों के बारे में और विदेश में संपत्ति की भी सूचना होनी चाहिए और उनकी Scrutiny करने का अधिकार सरकार को होगा;

9. जजों को खुद की और परिवार के सदस्यों की विदेश यात्राओं के खर्च के details यात्रा के बाद सरकार को देने चाहिए, और किसी अन्य व्यक्ति ने वहां या टिकट आदि पर खर्च किया है तो उसका भी ब्योरा देना अनिवार्य होना चाहिए;

क्रमशः 

1 comment:

Himkar Prasad singh said...

ब्रिटिश हां कांग्रेस पार्टी के समय की जितने अनर्गल कानून और नियम हैं सभी को बदलाव किया जाएगा