उत्तर प्रदेश : PDA के नाम पर जनता से धोखा; बेटा-बेटी-भतीजा-बीवी… उपचुनाव में परिवार के भीतर सिमटा समाजवादी पार्टी का PDA; क्या समाजवादी पार्टी ही PDA है?

                                   समाजवादी पार्टी के 6 में से 5 टिकट राजनीतिक परिवारों में ही गए
समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में कुल 6 नामों की घोषणा की गई है। सपा ने इन 6 में से 5 सीटों पर उम्मीदवार उतारने में परिवार से आगे नहीं देखा है। हालाँकि, उसने इसे नाम PDA(पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का नाम दिया है।

उत्तर प्रदेश में आगामी दिनों में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। जल्द ही इनकी तारीख घोषित की जाएगी। समाजवादी पार्टी ने इनमें मैनपुरी की करहल, कानपुर की सीसामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, अयोध्या की मिल्कीपुर, अम्बेडकर नगर की कटेहरी और मिर्जापुर की मंझवा सीट से उम्मीदवारों की घोषणा की है।

मैनपुरी की करहल सीट से समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव के भतीजे तेजप्रताप यादव को टिकट दिया है। करहल सीट अखिलेश यादव के सांसद बनने के कारण खाली हुई है। वहीं कानपुर की सीसामऊ सीट सपा के इरफ़ान सोलंकी को सजा होने के कारण खाली हुई थी। इस सीट से सपा ने इरफ़ान की पत्नी नसीम सोलंकी को टिकट दिया है।

इसके अलावा अयोध्या की मिल्कीपुर से अजीत प्रसाद को टिकट दिया गया है। मिल्कीपुर की सीट यहाँ के विधायक रहे अवधेश प्रसाद के सांसद बनने के कारण खाली हुई है। यहाँ से भी सपा ने अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत को इस सीट से चुना है। अम्बेडकर नगर की कटेहरी सीट से शोभावती वर्मा को उतारा गया है, वह सांसद लालजी वर्मा की पत्नी हैं।

मिर्जापुर की मंझवा सीट से उतारी गई ज्योति बिंद पूर्व सांसद रमेश बिंद की बेटी हैं। फूलपुर सीट पर मुज्ज्त्फा सिद्दीकी को टिकट मिला है जो कि पूर्व विधायक हैं। समाजवादी पार्टी ने अभी गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, मुरादाबाद की कुन्दरकी और अलीगढ़ की खैर सीट पर पत्ते नहीं खोले हैं।

समाजवादी पार्टी ने इस टिकट बँटवारे को PDA का नाम दिया है लेकिन ज्यादातर टिकट उसी परिवार के भीतर दिए गए हैं जिनके कारण सीट खाली हुई है। हालाँकि, पार्टी ने दावा किया है कि उसने सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करने की कोशिश की है।

समाजवादी पार्टी के इस टिकट बँटवारे के बाद कांग्रेस ने निराशा जाहिर की है। कांग्रेस ने कहा है कि इस टिकट बँटवारे में उनसे कोई राय नहीं ली गई जबकि दोनों पार्टियों ने मिल कर लोकसभा चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने इस चुनाव में भी गठबंधन की उम्मीद जताई है।

इस बीच कांग्रेस खुद भी दबाव में है। हरियाणा विधानसभा में AAP और समाजवादी पार्टी को तवज्जो ना देना अब उसके लिए गले की फांस बन रहा है। इन पार्टियों का कहना है कि कांग्रेस  ने अगर उन्हें महत्व दिया होता तो उसकी शायद हार ना होती।

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