केजरीवाल का गिरोह “आम आदमी पार्टी” और उसके नेता थूक और पेशाब मिला खाना खिलाने वालों के मोहपाश में बंधे हैं। केजरीवाल की पार्टी मुख्यतः मुसलमानों की वोटों पर निर्भर है और उन्हें हिंदुओं की कोई परवाह नहीं है। कैलाश गहलोत भी पार्टी के जन्म से लेकर अभी तक इसी रंग ढंग में पला बढ़ा है। उसका सेकुलरिज्म का भूत इतनी आसानी से नहीं उतर सकता और यदि उसे भाजपा में लिया गया तो उसका वो भूत रह रह कर उठता रहेगा।
ऐसा अजित पवार और अशोक चव्हाण ने भी किया। उन्होंने ने भी कांग्रेस में 40-40 साल तक रह कर “थूक मूत” का खाना खाया और इसलिए योगी के नारे “बटोगे तो कटोगे” पर बिफर रहे हैं क्योंकि वे दोनों मुसलमानों के प्रिय रहे हैं। अजित पवार तो भाजपा के साथ गठबंधन में है लेकिन अशोक चव्हाण तो भाजपा में ही है। ऐसे “सेकुलर कीड़ों” को साथ लेना भाजपा के लिए नुकसान दे सकता है और इसलिए कैलाश गहलोत को भी दूर रखा जाए।
लेखक चर्चित YouTuber |
भाजपा को एक बात समझ लेनी चाहिए कि भाजपा कैलाश गहलोत के बिना भी बढ़िया प्रदर्शन करके सरकार बना सकती है लेकिन गहलोत “आप” से निकल कर भाजपा का साथ न मिलने पर वीरान हो सकता है। भाजपा को Rehabilitation Center नहीं बना देना चाहिए पार्टी को।
भाजपा बेशक “आप” के बिखरने से खुश हो सकती है लेकिन ऐसे बगावती लोगों को पार्टी में नहीं लेना चाहिए।
गहलोत ने “आप” छोड़ने के कारण बताए हैं कि -
-दिल्ली सरकार विकास पर ध्यान देने की बजाय केंद्र के साथ झगड़े में समय बर्बाद कर रही है;
-शीशमहल जैसे कई शर्मनाक विवाद सामने आए;
-यमुना की बदहाली के लिए “आप” जिम्मेदार है; यमुना नदी पहले से ज्यादा प्रदूषित हो गई है;
-जनता की बजाय अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए लड़ रहे हैं “आप” नेता।
ये ऐसे मुद्दे हैं जो गहलोत शुरू से देख रहे थे लेकिन नींद से आज जागे हैं जिसका कारण हो सकता है कि सामने दीवारों पर “आप” की हार लिखी देख रहे हैं और “आप” को डूबता जहाज समझ कर कूद कर बाहर आ गए। गहलोत ने या किसी भी “आप” नेता ने इन विषयों पर कभी कोई आवाज़ नहीं उठाई।
“आप” के गठन के बाद केजरीवाल के ज्यादा भी नहीं तो 25 लोग पार्टी छोड़ चुके हैं और उनमे कई तो संस्थापक सदस्य थे लेकिन गहलोत सब कुछ देखते रहे। अब शायद अपने को बचाने के लिए बाहर आ गए।
“आप’ वाले कह रहे हैं कि गहलोत अपने पर चल रहे ED/CBI और Income Tax के cases की वजह से पार्टी छोड़ गए क्योंकि अब भाजपा में जाने के बाद वो “बेदाग” हो जाएंगे। ये एक घिसा पिटा आरोप है और यदि ऐसा ही है तो फिर सभी मुकदमा झेल रहे “आप” नेताओं को भाजपा में आ जाना चाहिए। गहलोत पर तो कुछ केस 2018 और 2019 से चल रहे हैं, फिर आज क्यों निकले?
केजरीवाल ने कुछ दिन पहले अमानतुल्लाह को जमानत मिलने के बाद कहा था कि हमारे सभी लोग जेल से बाहर आ गए और ईमानदार साबित हुए। कितना बड़ा फ्रॉड खेलता है, जमानत मिलने को ऐसे बता रहा है जैसे “बरी” हो गए।
लेकिन कैलाश गहलोत का “ईमानदारी” का सर्टिफिकेट तो कल उसके पार्टी छोड़ने के बाद केजरीवाल ने “रद्द” कर दिया और अब वह “ईमानदार” नहीं रहा। मतलब यदि “आप” कहती है कि भाजपा में जाकर गहलोत “बेदाग़” हो जाएगा तो इसका विपरीत भी सही है कि जब तक कोई “आप” में रहेगा, तब तक ही “ईमानदार” होगा, पार्टी छोड़ने के बाद “बेईमान” कहलाएगा।
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