राजीव गाँधी ने भारत-पाकिस्तान में सुलह के लिए अमेरिका से माँगी थी मदद, राष्ट्रपति रीगन को लिखा था पत्र: भाजपा MP निशिकांत दुबे ने 1987 का पत्र दिखा पूछे सवाल

    राजीव गांधी-रोनाल्ड रीगन, तस्वीरें इंस्टाग्राम पर Rememberingrajiv और यूट्यूब पर रीगन लाइब्रेरी से ली गई हैं
2014 में मोदी सरकार बनने से पहले कांग्रेस पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा हमला करने पर डोसियर-डोसियर खेलती थी। अमेरिका के आगे रोती थी की पाकिस्तान ने हमें मारा लेकिन मोदी सरकार सीधे पाकिस्तान की छाती पर बैठ मारती है। और आज वही पाकिस्तान अमेरिका के आगे रो रहा है "बचा लो मोदी से।" मोदी सरकार से पहले तक जो पब्लिक पाकिस्तान से डरी-डरी रहती थी लेकिन आज वही पाकिस्तान उसकी भाषा में जवाब मिलने पर डरा हुआ है।      

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने बुधवार (28 मई 2025) को कॉन्ग्रेस पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया है कि 1987 में भारत-पाकिस्तान के बीच शांति समझौता करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने अमेरिका से मदद माँगी थी। निशिकांत दुबे ने यह दावा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन द्वारा राजीव गांधी को लिखे एक पुराने पत्र के आधार पर किया है, जिसे अब सार्वजनिक कर दिया गया है।

निशिकांत दुबे ने दिखाया 1987 पत्र

निशिकांत दुबे का कहना है कि 1972 के शिमला समझौते के तहत यह तय हुआ था कि भारत और पाकिस्तान के बीच कोई भी विवाद सिर्फ दोनों देशों के बीच बातचीत से सुलझाया जाएगा, इसमें कोई तीसरा देश शामिल नहीं होगा। ऐसे में राजीव गाँधी का अमेरिकी मदद माँगना इस समझौते का उल्लँघन है।
दुबे ने 25 मार्च, 1987 को अमेरिकी राजदूत द्वारा राजीव गाँधी को भेजे गए एक कथित पत्र का हवाला दिया है। निशिकांत दुबे ने बताया कि इस पत्र में गाँधी ने सीमा पार से होने वाली नशीले पदार्थों की तस्करी पर भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत में अमेरिकी विशेषज्ञों की मदद माँगी थी ऐसा लिखा है। रीगन ने कहा था कि अगर भारत और पाकिस्तान की सरकारें मदद माँगती हैं तो उन्हें खुशी होगी।
हालाँकि, रीगन के इस पत्र में सीधे तौर पर 1987 के भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में अमेरिका की दखलअंदाजी का कोई संकेत नहीं मिलता है। पत्र में सिर्फ भविष्य के तनाव को कम करने के लिए पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के बीच प्रभावी तरीकों के बारे में कुछ जानकारी देने की बात कही गई है।
यह नया दावा ऐसे समय में आया है जब हाल ही में पहलगाम आतंकवादी हमले और भारत के जवाबी ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के बाद भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव बढ़ा हुआ है, और तीसरे पक्ष की भूमिका को लेकर राजनीतिक बहस जारी है।

इंदिरा गाँधी पर सवाल

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने मंगलवार (27 मई 2025) को एक अमेरिकी खुफिया दस्तावेज़ शेयर किया। निशिकांत दुबे ने बताया कि यह दस्तावेज़ 1971 के बांग्लादेश युद्ध से जुड़ा है, जिसमें इंदिरा गाँधी ने संयुक्त राष्ट्र के युद्धविराम के प्रस्ताव को मान लिया था।
दुबे ने पूछा कि क्या भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) को वापस लेने और करतारपुर गुरुद्वारा जैसी जगहों को सुरक्षित करने के बजाय बांग्लादेश बनाने को ज़्यादा अहमियत दी। निशिकांत दुबे ने ‘X’ (पहले ट्विटर) पर लिखा कि इंदिरा गाँधी ने अमेरिकी दबाव में आकर 1971 का युद्ध रोक दिया था, जबकि उस समय के रक्षा मंत्री जगजीवन राम और सेना प्रमुख सैम मानेकशॉ इसके खिलाफ थे।

कॉन्ग्रेस का पलटवार

कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर पर निशाना साधा है। जयराम रमेश ने कहा कि जब अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत में अमेरिका की मदद और किसी ‘तटस्थ जगह’ पर बात करने की बात कही, तो जयशंकर चुप क्यों रहे।

हालाँकि, भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति के उन दावों को खारिज कर दिया है, जिनमें कहा गया था कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने में मदद की। भारत ने अपनी पुरानी नीति को दोहराते हुए साफ किया है कि जम्मू-कश्मीर से जुड़ा कोई भी मुद्दा भारत और पाकिस्तान मिलकर ही सुलझाएँगे, इसमें किसी तीसरे देश की दखलअंदाजी नहीं होगी।
निशिकांत दुबे के इस दावे के बाद भारत द्वारा पूर्व में लिए गए इस फैसलों पर राजनीतिक बहस और तेज़ हो गई है।

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