जस्टिस यशवंत वर्मा (बाएँ), वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (दाएँ), (फोटो साभार : The Times Of India & NDTV)
सुप्रीम कोर्ट की एक 3 जजों की कमेटी ने जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की सिफारिश पेश की है। इसके बाद जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होने की संभावना है। इसी मामले में भ्रष्टाचार के आरोप में फँसे जस्टिस यशवंत वर्मा का सपोर्ट वकील कपिल सिब्बल ने किया है। कपिल सिब्बल ने कहा कि जस्टिस वर्मा अब तक के सबसे बेस्ट जजों में से एक है।
64 पेज रिपोर्ट की मुख्य बातें
सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की कमेटी ने जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की है। यह सिफारिश 64 पेज की एक रिपोर्ट में की गई है, जिसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा गया है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि जले हुए नोट जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के स्टोररूम में ही मिले थे।
स्टोररूम तक सिर्फ जस्टिस वर्मा और उनके परिवार की ही पहुँच थी, किसी बाहरी व्यक्ति की नहीं थी। जाँच में सामने आया है कि आग बुझाने के दौरान फायरफाइटर्स ने ‘आधे जले हुए नोट’ देखे थे। एक गवाह ने तो यहाँ तक कहा कि उसने जिंदगी में पहली बार इतना ज्यादा कैश का पहाड़ देखा था। कमेटी ने माना है कि इतने सारे नोट बिना जस्टिस वर्मा या उनके परिवार की मर्जी के वहाँ नहीं रखे जा सकते थे।
कमेटी ने जस्टिस वर्मा की बेटी दिया वर्मा और उनके निजी सचिव राजिंदर कार्की की भूमिका की भी जाँच की है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने फायरफाइटर्स को कैश की जानकारी किसी को भी बताने को मना किया था। इन सभी बातों के आधार पर कमेटी ने कहा है कि जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।
हालाँकि, जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि उन्हें या उनके परिवार को इस कैश के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। जस्टिस वर्मा ने यह भी कहा था कि स्टोररूम में कोई भी आ-जा सकता था।
जून 2025 महीने की शुरुआत में खबर आई थी कि जस्टिस वर्मा को हटाने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो सकती है। यह भारत के इतिहास में किसी सिटिंग जज को जबरन हटाने का पहला मामला होगा।
जाँच में क्या सामने आया?
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा केस में एक जाँच कमेटी बनाई थी। मामले में 55 गवाहों से पूछताछ की गई थी। इसमें जस्टिस वर्मा की बेटी दिया वर्मा भी शामिल थीं। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कई गवाहों, वीडियो और तस्वीरों से यह साबित होता है कि जस्टिस वर्मा के दिल्ली वाले घर के स्टोररूम में बड़ी मात्रा में कैश खासकर 500 रुपए के नोट मिले थे, जिनमें से कुछ आधे जले हुए थे।
सबसे हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी घटना के बावजूद ना तो जस्टिस वर्मा और ना ही उनके परिवार ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी और ना ही किसी बड़े ज्यूडिशियल ऑफिसर को इसकी जानकारी दी थी। कमेटी ने इसे विचित्र व्यवहार बताया था।
कमेटी ने यह साफ किया कि जस्टिस वर्मा को जले हुए कैश की जानकारी ना होने का दावा करना एक अविश्वसनीय है। कमेटी ने सवाल किया, “अगर कोई साजिश थी, तो जस्टिस वर्मा ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस या भारत के चीफ जस्टिस को सूचित क्यों नहीं किया?”
फायर और पुलिस कर्मियों ने भी बताया कि उन्होंने आग बुझाने के बाद स्टोररूम में 500 रुपये के नोटों का ‘बड़ा पहाड़’ देखा था। हालाँकि, घर के नौकरों ने कैश देखने से मना किया, पर कमेटी ने सरकारी अधिकारियों के बयानों को सच माना।
जाँच में यह भी सामने आया कि जिस स्टोररूम में आग लगी थी, उसका कंट्रोल केवल और केवल जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के पास था। इसके अलावा घटना के बाद कथित तौर पर जला हुआ कैश ‘गायब’ हो गया और कमरा साफ कर दिया गया।
कमेटी ने कहा है कि जस्टिस वर्मा के निजी सचिव राजिंदर सिंह कार्की ने फायर ऑफिसर को कहा था, कि वे अपनी रिपोर्ट में कैश का जिक्र न करे। फायर सर्विस के ऑफिसर ने यह भी दावा किया था कि उन्हें इस मामले को आगे न बढ़ाने के लिए कहा गया था, क्योंकि इसमें ‘ऊपर के लोग शामिल थे।’
मार्च 2025 में, दिल्ली में जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई थी। आग बुझाने के दौरान फायरफाइटर्स को स्टोररूम में जले हुए 500 रुपए के नोटों का एक बड़ा पहाड़ मिला था। इस घटना के बाद तत्कालीन CJI ने जस्टिस वर्मा पर आरोप लगाए थे।
फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जाँच के लिए एक कमेटी बनाई थी। जस्टिस वर्मा को इस घटना के कुछ ही दिनों बाद दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्राँसफर कर दिया गया था। ऐसा करने पर कुछ वकीलों और लीगल वर्कर्स ने इसका विरोध किया था।
जस्टिस वर्मा पर क्या-क्या कार्रवाई हो चुकी है?
जस्टिस यशवंत वर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक 3 सदस्यीय जाँच कमेटी का गठन किया है। कमेटी ने 55 गवाहों से पूछताछ की और जस्टिस वर्मा का बयान दर्ज किया है। कमेटी ने अपनी 64 पेज की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सौंपी थी, जिसमें जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की गई थी।
जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्राँसफर कर दिया गया है, लेकिन उन्हें कोई ज्यूडिशियल काम नहीं सौंपा गया है। जस्टिस वर्मा ने अभी तक ना तो इस्तीफा दिया है और ना ही वॉलंटरी रिटायरमेंट लिया है।
अब संसद में उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होने की संभावना जताई जा रही है, जो भारत में किसी सिटिंग जज को हटाने का पहला मामला होगा।
जस्टिस वर्मा ने जाँच को ‘फंडामेंटल रूप से गलत’ बताया है, लेकिन कमेटी ने उनके बचाव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ‘करेंसी नोट कई लोगों ने देखे और वास्तविक समय में रिकॉर्ड किए गए। यह असंभव है कि उन्हें फँसाने के लिए लगाया गया हो” कमेटी ने सबूत हटाने या घटनास्थल को साफ करने में उनकी बेटी और निजी सचिव की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं।
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