दिल्ली : एक्टिविस्ट ‘दिखने’ की चाहत में टूटी झुग्गियों में पहुँचे राहुल गाँधी, SC के आदेश पर हुई डिमोलिशन ड्राइव से की पॉलिटिकल माइलेज लेने की कोशिश: फिर भी रहे खाली ‘हाथ’


जब से सियासत में अरविन्द केजरीवाल का पदापर्ण हुआ है, लाख केजरीवाल की सभी आलोचना करते रहे, लेकिन उसकी नीतियां केजरीवाल का हर विरोधी अपना रहा है। फ्री की रेवड़ियां और ऐसी बयानबाज़ी करो कि मीडिया में छाए रहो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो विकास के नाम पर वोट मांगने की हैसियत रखते है, वह भी फ्री की रेवड़ियां बांट रहे हैं। केजरीवाल ने जनता को इतना मुफ्तखोर बना दिया कि, जैसे कुत्ते को हड्डी दिखाओ तुम्हारे आगे दुम हिलाता रहेगा, जब तक कोई रेवड़ी नहीं देगा मुफ्तखोर उस पार्टी को वोट ही नहीं देंगे। बीजेपी अपने विपक्ष पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाती हैं, लेकिन खुद कितना तुष्टिकरण कर रही है सब खामोश है। दिल्ली में जितने भी अतिक्रमण हटाए जा रहे हैं 90% हिन्दू क्षेत्रों में। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कितना अतिक्रमण है आँखों पर बहुत मोटी पट्टी बांधे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर, राहुल गाँधी LoP होते हुए भी ऐसी बयानबाज़ी और हरकतें कर रहे कि मीडिया भी काम पर लग जाती है। 
साभार सोशल मीडिया 

जहां तक योगी-मोदी को टक्कर देने की बात है कांग्रेस को गाँधी परिवार का त्याग कर स्वयं निर्णय लेने वाला कद्दावर नेता चाहिए। वरना जब तक गाँधी परिवार का बोलबाला रहेगा बीजेपी को सत्ता से कोई नहीं हटा सकता।  

कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी शुक्रवार (25 जुलाई 2025) को दिल्ली के अशोक विहार और वजीरपुर के जेलर वाला बाग की झुग्गियों में पहुँच गए। ये वही जगह है, जहाँ पिछले महीने डीडीए (दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी) ने झुग्गियों पर बुलडोजर चलाया था। राहुल गाँधी ने वहाँ मौजूद लोगों से मुलाकात की, उनकी बात सुनी और आश्वासन दिया कि कांग्रेस उनकी लड़ाई को कोर्ट तक ले जाएगी और संसद में भी यह मुद्दा उठाएगी।

हालाँकि सवाल यह है कि क्या यह दौरा वाकई लोगों की मदद के लिए था या फिर यह सिर्फ पॉलिटिक्स का एक और मौका था, जिसे राहुल गाँधी ने भुनाने की कोशिश की?

पूरा मामला 

जेलर वाला बाग में डीडीए ने 16 जून 2025 को एक बड़ा डिमोलिशन ड्राइव चलाया था। इस कार्रवाई में करीब 500 से ज्यादा झुग्गियों को तोड़ा गया, जिसके बाद कई परिवार बेघर हो गए। डीडीए का कहना है कि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई, क्योंकि इन झुग्गियों ने डीडीए की जमीन और रेलवे पटरी के आसपास अवैध कब्जा किया था। डीडीए ने पहले लोगों को नोटिस भी जारी किए थे, लेकिन कई लोगों ने जमीन खाली करने में इंटरेस्ट नहीं दिखाया।

लेकिन कहानी का दूसरा पहलू यह है कि सरकार ने इन झुग्गीवासियों के लिए पुनर्वास की योजना बनाई थी। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अशोक विहार फेज-2 में स्वाभिमान अपार्टमेंट बनाए गए हैं, जहाँ 1675 ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) फ्लैट्स तैयार किए गए हैं।

इनमें से 1078 पात्र परिवारों को फ्लैट्स अलॉट हो चुके हैं। प्रत्येक फ्लैट की लागत 25 लाख रुपये है, लेकिन पात्र लोगों को सिर्फ 1.42 लाख रुपये और 30,000 रुपये रखरखाव के लिए देने हैं। बाकी लागत सरकार वहन कर रही है। डीडीए का कहना है कि यह योजना ‘जहाँ झुग्गी, वहीं मकान’ के तहत चल रही है, जिसे 2015 में तत्कालीन दिल्ली सरकार ने मंजूरी दी थी।

राहुल गाँधी का दौरा झुग्गी वासियों की मदद या सियासत?

राहुल गाँधी का यह दौरा तब हुआ, जब संसद का मानसून सत्र चल रहा था। अचानक जेलर वाला बाग पहुँचकर उन्होंने वहाँ के लोगों से बात की और उनकी समस्याएँ सुनीं। उन्होंने लोगों से पूछा कि यह इलाका कितने एकड़ में है और डीडीए ने कितने एकड़ में बुलडोजर चलाया। जवाब में एक व्यक्ति ने कहा कि 100 एकड़। इस पर राहुल गाँधी का जवाब था, “भइया, सौ एकड़ तो मैं पैदल चला हूं।” इस बातचीत का वीडियो कांग्रेस ने अपने ‘X’ अकाउंट पर शेयर किया, जिसमें लिखा गया कि राहुल गाँधी ने प्रभावित परिवारों का दर्द बाँटा और उनकी शिकायतें सुनीं।

लेकिन सोशल मीडिया पर इस वीडियो को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ आईं। कुछ यूजर्स ने राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस पर तंज कसा। एक यूजर पीतांबरा दत्त शर्मा ने लिखा, “इनमें से किसी ने जगह को मोल खरीदा है क्या? जो लोग सरकार से मोल प्लॉट खरीद कर टैक्स देकर मकान बनाते हैं, वो तो मूर्ख ही हुए न?”

एक अन्य यूजर, मुकेश अग्रवाल ने सवाल उठाया कि क्या राहुल गाँधी कभी पाकिस्तान से आए विस्थापितों की झुग्गियों में गए? राजेश जैन नाम के यूजर ने तो कांग्रेस पर ही आरोप लगाया कि वह रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को दोबारा बसाने की कोशिश कर रही है।

झुग्गियों को ढहाने के मामले की क्या है सच्चाई?

राहुल गाँधी और कांग्रेस का दावा है कि डीडीए की कार्रवाई से लोग बेघर हो गए और उन्हें फ्लैट्स में पर्याप्त सुविधाएँ नहीं मिल रही हैं। कुछ लोगों का कहना है कि फ्लैट्स में साफ पानी, सफाई और बुनियादी सुविधाओं की कमी है। वहीं, कुछ ने यह भी आरोप लगाया कि हाई कोर्ट के स्टे ऑर्डर के बावजूद उनके घर तोड़े गए।

लेकिन डीडीए पक्ष इससे अलग है। डीडीए का कहना है कि जिन लोगों को फ्लैट्स अलॉट किए गए हैं, उन्हें सस्ती कीमत पर पक्के मकान दिए जा रहे हैं। जो लोग पात्र नहीं थे, उनके पास 2015 से पहले का वैध राशन कार्ड या मतदाता सूची में नाम नहीं था। ऐसे लोगों को अपीलीय प्राधिकरण में अपील करने का मौका दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई इस कार्रवाई को लेकर बीजेपी ने साफ कहा कि दिल्ली सरकार झुग्गीवासियों को पक्के मकान देकर अपना वादा पूरा कर रही है। यह योजना न सिर्फ कानूनी है, बल्कि लोगों को बेहतर जीवन देने का प्रयास भी है। हालाँकि राहुल गाँधी और कांग्रेस इसे बीजेपी की नाकामी बता रहे हैं और इसे एक प्रोपेगेंडा के तौर पर पेश कर रहे हैं कि बीजेपी लोगों को बेघर कर रही है।

हालाँकि अशोक विहार में डिमोलिशन ड्राइव के समय ऑपइंडिया की टीम भी मौके पर पहुँची थी। ऑपइंडिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि ये सब कुछ बीजेपी और दिल्ली सरकार को बदनाम करने की कोशिश है, जबकि सच्चाई ये है कि रेखा गुप्ता की सरकार अपने वादों को पूरा कर रही है। रेखा गुप्ता की बीजेपी सरकार झुग्गी में रहने वालों को पक्का मकान देने का वादा पूरा कर रही है।

राहुल गाँधी की पॉलिटिक्स का पुराना पैटर्न

राहुल गाँधी का यह कोई पहला मौका नहीं है, जब वह किसी मुद्दे को लेकर चर्चा में आए हों। चाहे वह किसान आंदोलन हो, बेरोजगारी का मुद्दा हो या कोई और सामाजिक मसला, राहुल गाँधी अक्सर ऐसे मौकों पर लोगों के बीच पहुँचते हैं और बड़े-बड़े वादे करते हैं। लेकिन क्या इन वादों का कोई ठोस नतीजा निकलता है? यह सवाल बार-बार उठता है।

उदाहरण के लिए, 2020 में जब दिल्ली में दंगे हुए थे, तब भी राहुल गाँधी ने प्रभावित इलाकों का दौरा किया था और सरकार पर निशाना साधा था। लेकिन उनके इस दौरे का कोई खास असर नहीं हुआ।

इसी तरह साल 2023 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी, जब वहाँ 1000 से ज्यादा झुग्गियों को तोड़ा गया था। उस वक्त राहुल गाँधी ने इस मुद्दे पर कोई बयान नहीं दिया। सोशल मीडिया यूजर्स ने इस बार भी यही सवाल उठाया कि जब कांग्रेस की सरकार थी, तब राहुल गाँधी को गरीबों का दर्द क्यों नहीं दिखा? यह सवाल उनके इरादों पर संदेह पैदा करता है।

राहुल गाँधी की छवि एक ऐसे नेता की रही है, जो मुद्दों को उठाता तो है, लेकिन उसका कोई ठोस समाधान पेश नहीं करता। उनकी रैलियों और बयानों में अक्सर भावनात्मक बातें होती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत से उनका कनेक्शन कम ही दिखता है। जेलर वाला बाग के मामले में भी यही लगता है कि राहुल गाँधी ने इसे एक पॉलिटिकल मौके के तौर पर देखा, न कि वाकई लोगों की मदद करने के इरादे से।

लोगों को गुमराह करने की कोशिश?

राहुल गाँधी और कांग्रेस का यह दावा कि बीजेपी लोगों को बेघर कर रही है, कई मायनों में भ्रामक लगता है। डीडीए की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई थी, और यह पूरी तरह कानूनी थी। जिन लोगों को फ्लैट्स अलॉट किए गए हैं, उन्हें सस्ती कीमत पर पक्के मकान मिल रहे हैं। जो लोग पात्र नहीं थे, उनके लिए अपील का रास्ता खुला है। ऐसे में यह कहना कि बीजेपी लोगों को बेघर कर रही है, हकीकत से परे है।
कांग्रेस का यह प्रोपेगेंडा लोगों में भ्रम फैलाने की कोशिश लगता है। राहुल गाँधी ने अपने दौरे में लोगों से मुलाकात तो की, लेकिन क्या वह इस मामले में कोई ठोस समाधान लेकर आए? नहीं। उनके आश्वासनों में कोर्ट और संसद में मुद्दा उठाने की बात तो थी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कि इससे लोगों को तुरंत राहत कैसे मिलेगी। यह सब सिर्फ पॉलिटिकल पॉइंट्स स्कोर करने की कोशिश नजर आती है।
सोशल मीडिया पर भी लोग इस बात को समझ रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, “कांग्रेस को गरीबों का दर्द सिर्फ कैमरे के सामने दिखता है।” यह टिप्पणी राहुल गाँधी की मंशा पर सवाल उठाती है। अगर वह वाकई लोगों की मदद करना चाहते, तो शायद वह डीडीए और सरकार से बातचीत करके कोई रास्ता निकालने की कोशिश करते। लेकिन इसके बजाय, उन्होंने इसे सिर्फ एक पॉलिटिकल इवेंट बना दिया।

एकतरफा नरेटिव गढ़ने की कोशिश हुई ध्वस्त

बीजेपी और डीडीए का कहना है कि यह पूरी कार्रवाई पारदर्शी और कानूनी थी। ‘जहाँ झुग्गी, वहीं मकान’ योजना के तहत सरकार ने झुग्गीवासियों को पक्के मकान देने का वादा किया था, जिसे वह पूरा कर रही है। 1675 फ्लैट्स में से 1078 पहले ही अलॉट हो चुके हैं, और बाकी जल्द ही अलॉट किए जाएँगे। यह योजना न सिर्फ लोगों को बेहतर जीवन दे रही है, बल्कि दिल्ली को और व्यवस्थित बनाने की दिशा में भी एक कदम है।
हाँ, यह सच है कि कुछ लोगों को अभी तक फ्लैट्स नहीं मिले, और कुछ ने फ्लैट्स की सुविधाओं पर सवाल उठाए हैं। लेकिन डीडीए का कहना है कि इन समस्याओं को जल्द ही हल किया जाएगा। डीडीए का यह भी तर्क है कि अवैध कब्जों को हटाना जरूरी था, क्योंकि यह शहर की सुरक्षा और विकास के लिए जरूरी है।

पॉलिटिकल माइलेज लेने की कोशिश या लोगों का भला?

राहुल गाँधी का जेलर वाला बाग दौरा और उनकी बातें सुनने में तो भावनात्मक लगती हैं, लेकिन गहराई से देखें तो यह सिर्फ पॉलिटिक्स की चमक नजर आती है। बीजेपी और डीडीए अपनी योजना के तहत लोगों को पक्के मकान दे रहे हैं, और यह पूरी प्रक्रिया कानूनी है। ऐसे में राहुल गाँधी का इसे प्रोपेगेंडा बनाकर बीजेपी को घेरने की कोशिश लोगों को गुमराह करने जैसा लगता है।
कांग्रेस और राहुल गाँधी को अगर वाकई लोगों की चिंता है, तो उन्हें सरकार के साथ मिलकर समस्याओं का समाधान ढूँढना चाहिए। सिर्फ कैमरे के सामने जाकर आँसू बहाने और बड़े-बड़े वादे करने से कुछ नहीं होगा। दिल्ली के लोग अब समझने लगे हैं कि कौन उनकी मदद कर रहा है और कौन सिर्फ पॉलिटिक्स की रोटियाँ सेंक रहा है। राहुल गाँधी और कांग्रेस को एक बार फिर से शायद निराशा ही ‘हाथ’ लगने वाली है।

No comments: