आज मुस्लिम वोटों के भूखे सनातन विरोधी नेताओं और उनकी पार्टियों ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के पैरों में अपनी पगड़ी रख दिल्ली के इतिहास को ही बदलकर अपने पूर्वजों को तो कलंकित किया है साथ में देश के वास्तविक इतिहास के साथ भी भयंकर मजाक किया है। हमें पढ़ा दिया कि दिल्ली मुग़ल आक्रांताओं ने बसाई थी। इतना बड़ा सफ़ेद झूठ बगैरत इतिहासकारों ने परोस दिया। इन बगैरतों से पूछो सनातन पहले आया या इस्लाम?
कुछ वर्ष पहले ZEENews पर सुबह धर्म पर शो आता था। उसमे महरौली स्थित योगमाया मंदिर के इतिहास को वर्णित करते बताया था कि 7-मंज़िल का सूरज ध्वज(जिसे आज क़ुतुब मीनार बताया जाता है) के निर्माण करते खुदाई में योगमाया माता का मन्दिर निकलकर आया। पृथ्वीराज चौहान ने सर्वप्रथम माता के मंदिर का जीर्णोद्वार कर मन्दिर से दूर सूरजध्वज का निर्माण किया। जब एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते स्तम्भ(नीचे देखिए) भी लिखता था। देश गलत इतिहास लिखकर पढ़वाने वाले इतिहासकारों को कब मोदी सरकार ब्लैकलिस्ट करेगी?
सफ़ेद झूठ
फिर लाल किला को बता दिया कि इसे शाहजहां ने बनवाया, इन महामूर्खों से पूछो कि इसे हिन्दू सम्राट अनन्तपाल तोमर ने यमुना नदी के बीच बनवाया था। शाहजहां के फ़रिश्ते भी यमुना के बीचोबीच बनवाने तो दूर सोंच भी नहीं सकते थे। देखो इन दगाबाज़ इतिहासकारों ने कितना बड़ा सच छुपाया। ये ऊपर पृष्ठ में जो फोटो देख रहे हैं है इसमें फारस, जिसे आज ईरान कहते हैं, का राजदूत शाहजहां के दिल्ली सत्ता हथियाने के बाद लाल किला में मिलता है। जवाब दो "लाल किला क्या शाहजहां माँ के पेट से लेकर आया था?" ये ब्रिटिश काल में यमुना को लाल किले के पीछे मोड़ा गया था। दूसरे, पुराना किला जो पांडव युग से है हमें पढ़ा दिया शेरशाह सूरी ने बनवा था। अगर इसको शेरशाह ने बनवाया था फिर यहाँ भैरव बाबा का मन्दिर कहाँ से आ गया?
भारत के इतिहास पर देखिए इस वीडियो को:-
नवरात्रों में जहाँ ये मंदिर एक महाआरती स्थल बन जाता है। वहीं, रोजमर्रा में भी श्रद्धालुओं की लंबी कतारें गवाह हैं कि मंदिर में केवल देवी की मूर्ति नहीं बल्कि माँ कालिका का जीवंत रूप विराजमान है। कहा जाता है कि सच्चे मन से पुकारने वाले भक्तों की आवाज माता जरूर सुनती हैं। दिल्लीवासी हर शुभ कार्य से पहले माँ के दरबार में माथा टेकने आते हैं।
मंदिर रोज़ाना खुलता है। सुबह 4 बजे से लेकर रात 11 बजे तक भक्त दर्शन के लिए पहुँच सकते हैं। सुबह की मंगला आरती और शाम की संध्या आरती यहाँ की खास हैं। इस दौरान देवी को विशेष श्रृंगार में सजाया जाता है और मंदिर का वातावरण दिव्य संगीत से भर जाता है।
मंदिर का इतिहास
मंदिर की संरचना
मंदिर की बाहरी संरचना एक पिरामिड के आकार के टॉवर द्वारा संरक्षित है। केंद्र के कमरे में 12 पक्ष हैं, जिसके अपने प्रवेश द्वार हैं। हर पक्ष की लंबाई 24 फीट है। सभी दरवाज़े गलियारे की ओर ले जाते हैं। इनमें से हर गैलरी आठ फीट और नौ इंच चौड़ी है। इसमें तीन बाहरी द्वार भी हैं।
मंदिर के बीचोबीच संगमरमर का चबूतरा है, जिसपर पत्थर को तराश कर माँ की काली की मूर्ति रखी गई है। इसी मूर्ति पर एक शिलालेख है जिसपर देवी का नाम हिंदी में खोदा गया है। कालकाजी की प्रतिमा संगमरमर की रेलिंग से सुरक्षित हैं। इन सलाखों और चबूतरे पर नस्तलक शैली में सुलेख भी अंकित है।
नवरात्रों पर माँ का खास शृंगार
नवरात्रों के दौरान यह मंदिर एक उत्सव का रूप ले लेता है। नौ दिनों तक यहाँ मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। माता के जयकारों से गूंजता वातावरण, रंग-बिरंगे झूले, भक्ति संगीत और पूजा-पाठ का माहौल हर किसी के हृदय को छू जाता है। मंदिर के बाहर का चौक इन दिनों जीवन से भर उठता है। दुकानों में प्रसाद, खिलौने, चूड़ियाँ और धार्मिक वस्तुएँ बिकती हैं। हर कोना माँ की भक्ति में डूबा नजर आता है।
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