दिल्ली : कालिका मंदिर का 3000 वर्ष पुराना है इतिहास : जब माँ कौशकी ने किया असुरों का संहार, माँ काली ने दैत्यों का खून पिया…

आज मुस्लिम वोटों के भूखे सनातन विरोधी नेताओं और उनकी पार्टियों ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के पैरों में अपनी पगड़ी रख दिल्ली के इतिहास को ही बदलकर अपने पूर्वजों को तो कलंकित किया है साथ में देश के वास्तविक इतिहास के साथ भी भयंकर मजाक किया है। हमें पढ़ा दिया कि दिल्ली मुग़ल आक्रांताओं ने बसाई थी। इतना बड़ा सफ़ेद झूठ बगैरत इतिहासकारों ने परोस दिया। इन बगैरतों से पूछो सनातन पहले आया या इस्लाम?

कुछ वर्ष पहले ZEENews पर सुबह धर्म पर शो आता था। उसमे महरौली स्थित योगमाया मंदिर के इतिहास को वर्णित करते बताया था कि 7-मंज़िल का सूरज ध्वज(जिसे आज क़ुतुब मीनार बताया जाता है) के निर्माण करते खुदाई में योगमाया माता का मन्दिर निकलकर आया। पृथ्वीराज चौहान ने सर्वप्रथम माता के मंदिर का जीर्णोद्वार कर मन्दिर से दूर सूरजध्वज का निर्माण किया। जब एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते स्तम्भ(नीचे देखिए) भी लिखता था। देश गलत इतिहास लिखकर पढ़वाने वाले इतिहासकारों को कब मोदी सरकार ब्लैकलिस्ट करेगी?   

सफ़ेद झूठ 

फिर लाल किला को बता दिया कि इसे शाहजहां ने बनवाया, इन महामूर्खों से पूछो कि इसे हिन्दू सम्राट अनन्तपाल तोमर ने यमुना नदी के बीच बनवाया था। शाहजहां के फ़रिश्ते भी यमुना के बीचोबीच बनवाने तो दूर सोंच भी नहीं सकते थे। देखो इन दगाबाज़ इतिहासकारों ने कितना बड़ा सच छुपाया। ये ऊपर पृष्ठ में जो फोटो देख रहे हैं है इसमें फारस, जिसे आज ईरान कहते हैं, का राजदूत शाहजहां के दिल्ली सत्ता हथियाने के बाद लाल किला में मिलता है। जवाब दो "लाल किला क्या शाहजहां माँ के पेट से लेकर आया था?" ये ब्रिटिश काल में यमुना को लाल किले के पीछे मोड़ा गया था। दूसरे, पुराना किला जो पांडव युग से है हमें पढ़ा दिया शेरशाह सूरी ने बनवा था। अगर इसको शेरशाह ने बनवाया था फिर यहाँ भैरव बाबा का मन्दिर कहाँ से आ गया? 

भारत के इतिहास पर देखिए इस वीडियो को:- 

      

इतना ही नहीं जब कश्मीरी गेट से बल्लबगढ़ जाने वाली मेट्रो की खुदाई में जामा मस्जिद के पास मिले मंदिर को Archeological Survey of India को सौंपने की बजाए फिरकापरस्त मेट्रो प्रशासन ने फिरकापरस्त तत्कालीन शीला सरकार को सौंप दी और शीला ने तत्कालीन वहां के विधायक शोएब इक़बाल के हवाले कर दी, क्यों? और शोएब ने दिनरात एक कर मस्जिद की शक्ल दे दी। जो आजतक विवादित है। क्या किसी नदी के किनारे मस्जिद देखी? नदी के किनारे मन्दिर होते हैं। 
खैर, दिल्ली, जो पांडव युग में इंद्रप्रस्थ के नाम से चर्चित थी, में कई धार्मिक स्थल ऐसे है जो सनातन को अतिप्राचीन होने के प्रमाण देते हैं। निगमबोध घाट के निकट मरखट वाले हनुमान मन्दिर का भी इतिहास है। यहां श्रीराम के परमभक्त श्री हनुमान की मूर्ति किसी ने स्थापित नहीं थी, अपने आप प्रकट हुई थी।     
 
अब आते है करोड़ों सनातन प्रेमियों की पूज्यनीय माता कालका मन्दिर पर। देश की राजधानी दि्ल्ली की धड़कती रफ्तार के बीच एक ऐसा स्थान है जहाँ आत्मा को नई ऊर्जा मिलती है। यह जगह है श्री कालकाजी मंदिर। देवी काली को समर्पित ये मंदिर दिल्ली के दक्षिणी भाग में स्थित है। यहाँ देवी काली को ‘कालिका’ के नाम से पूजा जाता है। माँ कालिका को शक्ति और समय की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। मंदिर का नाम भी ‘कालकाजी’ इसी कारण पड़ा है।

नवरात्रों में जहाँ ये मंदिर एक महाआरती स्थल बन जाता है। वहीं, रोजमर्रा में भी श्रद्धालुओं की लंबी कतारें गवाह हैं कि मंदिर में केवल देवी की मूर्ति नहीं बल्कि माँ कालिका का जीवंत रूप विराजमान है। कहा जाता है कि सच्चे मन से पुकारने वाले भक्तों की आवाज माता जरूर सुनती हैं। दिल्लीवासी हर शुभ कार्य से पहले माँ के दरबार में माथा टेकने आते हैं।

मंदिर रोज़ाना खुलता है। सुबह 4 बजे से लेकर रात 11 बजे तक भक्त दर्शन के लिए पहुँच सकते हैं। सुबह की मंगला आरती और शाम की संध्या आरती यहाँ की खास हैं। इस दौरान देवी को विशेष श्रृंगार में सजाया जाता है और मंदिर का वातावरण दिव्य संगीत से भर जाता है।

                 मंदिर का इतिहास

कालकाजी मंदिर को कालकाजी तीर्थस्थल भी कहा जाता है। मंदिर का इतिहास तीन हजार वर्षों से भी पुराना माना जाता है। यानी महाभारत काल से भी पहले की स्थापना है। मान्यता है कि यहीं पर माँ ने असुरों का संहार कर धरती से बुराई को मिटाया था। उसी क्षण से यह स्थान देवी के विशेष रूप का प्रतीक बन गया।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कालका देवी की उत्पत्ति मंदिर के वर्तमान स्थान दिल्ली के पूर्वी कैलाश के अरावली हिल्स में हुई। सतयुग के दौरान कई देवता सदियों पहले श्री कालका जी मंदिर के आसपास के क्षेत्र में रहते थे। लाखों साल पहले दो असुरों ने मंदिर स्थल के पास रहने वाले देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया। परेशान देवताओं ने देवी पार्वती से मदद माँगी और पार्वती के मुख से देवी कौशकी प्रकट हुईं। उन्होंने इन विशाल जीवों पर हमला किया और मारने में कामयब रहीं।
इस दौरान इन जीवों का खून धरती पर गिर गया, जिससे हज़ारों ऐसे और असुर पैदा हो गए। इतने सारे अपवित्र जीवों से एक साथ लड़ना कौशकी देवी के लिए बड़ा काम था। इसका साथ देने के लिए माँँ पार्वती ने अपना अलग अवतार लिया, जो देवी काली थीं।
देवी काली ने कौशकी देवी द्वारा मारे गए दैत्यों से गिरे खून को चूस लिया। दोनों देवियों ने मिलकर दैत्यों के खतरे को पूरी तरह से मिटा दिया। इसके बाद से देवी काल को क्षेत्र के दिव्य प्राणियों की प्रमुख माना जाने लगा। यही देखते हुए देवी ने अनिश्चित काल तक वहीं रहने का फैसला किया।

मंदिर की संरचना

मंदिर की वास्तुकला हिंदू मंदिरों की पारंपरिक शैली में बनी है। माना जाता है कि इसका सबसे पुराना हिस्सा मराठों द्वारा 1764 ई. के आसपास स्थापित किया गया था। कालका जी मंदिर पर संगमरमर की नक्काशी शानदार है। नींव ईंट की है, लेकिन ब्लॉकों को प्लास्टर किया गया है और फिर अधिक भव्यता के लिए संगमरमर से ढका गया है।

मंदिर की बाहरी संरचना एक पिरामिड के आकार के टॉवर द्वारा संरक्षित है। केंद्र के कमरे में 12 पक्ष हैं, जिसके अपने प्रवेश द्वार हैं। हर पक्ष की लंबाई 24 फीट है। सभी दरवाज़े गलियारे की ओर ले जाते हैं। इनमें से हर गैलरी आठ फीट और नौ इंच चौड़ी है। इसमें तीन बाहरी द्वार भी हैं।

मंदिर के बीचोबीच संगमरमर का चबूतरा है, जिसपर पत्थर को तराश कर माँ की काली की मूर्ति रखी गई है। इसी मूर्ति पर एक शिलालेख है जिसपर देवी का नाम हिंदी में खोदा गया है। कालकाजी की प्रतिमा संगमरमर की रेलिंग से सुरक्षित हैं। इन सलाखों और चबूतरे पर नस्तलक शैली में सुलेख भी अंकित है।

                                नवरात्रों पर माँ का खास शृंगार

नवरात्रों के दौरान यह मंदिर एक उत्सव का रूप ले लेता है। नौ दिनों तक यहाँ मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। माता के जयकारों से गूंजता वातावरण, रंग-बिरंगे झूले, भक्ति संगीत और पूजा-पाठ का माहौल हर किसी के हृदय को छू जाता है। मंदिर के बाहर का चौक इन दिनों जीवन से भर उठता है। दुकानों में प्रसाद, खिलौने, चूड़ियाँ और धार्मिक वस्तुएँ बिकती हैं। हर कोना माँ की भक्ति में डूबा नजर आता है।

कैसे पहुँचे कालकाजी मंदिर?

दिल्ली मेट्रो की वायलेट और मैजेंटा लाइन पर ‘कालकाजी मंदिर’ नाम का स्टेशन स्थित है, जो मंदिर से मात्र पाँच सौ मीटर की दूरी पर है। स्टेशन से मंदिर तक पैदल कुछ ही मिनटों में पहुँचा जा सकता है या फिर स्थानीय ऑटो से भी जाया जा सकता है। इसके अलावा, दिल्ली की डीटीसी बसें, टैक्सियाँ और निजी वाहन से भी यहाँ पहुँचना बहुत सुगम है।

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