राहुल गाँधी (फोटो साभार: PTI) (बाकी तस्वीरों का साभार: The Washington Post, New York Times और Al Jazeera)
राहुल गाँधी विदेशों में जाकर जो भारत के लोकतान्त्रिक मूल्यों को बचाने के लिए रोना रोता है उसका परिणाम सामने आने शुरू हो गए हैं। ये भारत का दुर्भाग्य है कि राहुल जैसा LoP और भारत विरोधी ताकतों के हाथ खिलौना बना INDI गठबंधन। जो नेता और पार्टियां भारत विरोधियों के इशारे पर नाचेंगी देश का किसी भी कीमत पर भला नहीं कर सकते। समय आ गया है जनता को कांग्रेस और INDI गठबंधन को चुनावों में या तो धूल चटाएं या गुलाम बनने, जिस तरह मुग़ल और ब्रिटिश सरकारों ने हमें गुलाम बनाया हुआ था उसी तरह गुलाम बनने के लिए तैयार रहना चाहिए। कांग्रेस और INDI गठबंधन की गुलाम मीडिया खामोश, क्यों?
कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने चुनाव आयोग पर धांधली के बेबुनियाद आरोप लगाए हैं। इसमें विपक्ष के साथ-साथ विदेशी मीडिया भी उन्हें समर्थन दे रहा है। द वाशिंगटन पोस्ट, द न्यूयॉर्क टाइम्स, अल जजीरा सहित कई विदेशी मीडिया संस्थानों ने गुमराह करने वाले लेख प्रकाशित किए हैं ताकि ‘वोट चोरी’ के राहुल गाँधी के प्रोपेगेंडा को हवा दिया जा सके।
INDI गठबंधन के नेताओं ने 11 अगस्त 2025 को संसद से लेकर चुनाव आयोग मुख्यालय तक विरोध मार्च निकालकर हंगामा काटा। हालाँकि इस मार्च के लिए प्रशासनिक अनुमति नहीं ली गई थी। लिहाजा विपक्षी नेताओं को पुलिस ने हिरासत में लिया। धक्का मुक्की की स्थिति पैदा हो गई।
इस दौरान विपक्षी नेताओं ने यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि बल प्रयोग से उनकी आवाज दबाई जा रही है। तृणमूल कांग्रेस की सांसद सांसद महुआ मोइत्रा और समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव जैसे कुछ नेता पुलिस बैरिकेड्स पर भी चढ़ गए थे।
इस घटना को द न्यूयॉर्क टाइम्स ने ‘चुनावी अनियमितताओं का विरोध करने पर भारतीय सांसदों को हिरासत में लिया’ शीर्षक के साथ प्रकाशित किया ताकि विपक्ष के बेबुनियाद आरोपों को बल मिल सके।
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ वेब पोर्टल का स्क्रीनशॉटइसी तरह वाशिंगटन पोस्ट ने बिहार में चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया को शातिर तरीके से ‘विवादास्पद मतदाता सूची पुनरीक्षण’ बताया है।
‘वॉशिन्गटन पोस्ट’ वेब पोर्टल का स्क्रीनशॉटअल जजीरा ने भी विरोध मार्च की रिपोर्टिंग में INDI गठबंधन के नेताओं के आरोपों को प्रमुखता दी है।
इनके सुर में सुर मिलाते हुए ऑस्ट्रेलियाई ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (ABC) ने भी बिहार में मतदाता सूची संशोधन को “विवादास्पद” बताया।
ABC वेब पोर्टल का स्क्रीनशॉटगौरतलब है कि राहुल गाँधी ने 7 अगस्त 2025 को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें चुनाव आयोग पर बीजेपी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया। कांग्रेस पार्टी की चुनावी हार के लिए चुनाव आयोग और सत्ताधारी बीजेपी को दोषी ठहराया। बिना किसी प्रमाण 2024 के लोकसभा चुनावों को ‘फिक्स’ बता दिया।
राहुल गाँधी की रायबरेली में ‘फर्जी मतदाता’
इस दौरान राहुल गाँधी ने कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र का जिक्र किया। कहा कि उनकी पार्टी ने यहाँ एक ‘आंतरिक सर्वेक्षण’ कर 1,00,250 मतों की ‘वोट चोरी’ पकड़ी है। उनका कहना था कि कर्नाटक को कांग्रेस में 16 सीट मिलने की उम्मीद थी। लेकिन वह 9 सीट ही जीत पाई और ऐसा ‘वोट चोरी’ से ही संभव है।
उनका कहना था कि उनकी पार्टी ने इस अप्रत्याशित हार का विश्लेषण करने के बाद पाया कि ‘वोट चोरी’ हुई थी। राहुल गाँधी ने सत्ता में आने पर चुनाव आयोग के अधिकारियों को ‘परिणाम’ भुगतने की धमकी भी दी।
राहुल गाँधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में मतदाता सूचियों में ‘मकान नंबर 0’ जैसी विसंगतियों का हवाला देते हुए, चुनाव आयोग पर फर्जी मतदाता बनाने का आरोप लगाया। लेकिन बाद में कुछ मीडिया रिपोर्टों से पता चला कि राहुल गाँधी के खुद के निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली में भी बड़े पैमाने पर मतदाता सूची में इस तरह की विसंगति है।
एक तरफ ‘फर्जी वोटरों’ का रोना, दूसरी तरफ SIR का विरोध
कांग्रेस पार्टी समेत पूरा INDI गठबंधन बिहार में SIR का विरोध कर रहा है। इस पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जा चुके हैं। हालाँकि शीर्ष अदालत ने मतदाता सूची संशोधन को नियमित प्रक्रिया और चुनाव आयोग का अधिकार बताते हुए रोक से इनकार कर दिया था।
दिलचस्प तथ्य यह भी है कि चुनाव आयोग राहुल गाँधी से उनके आरोपों पर शपथ देने को कह चुका है ताकि जाँच शुरू की जा सके। लेकिन कॉन्ग्रेस नेता ने यह कहते शपथ पत्र देने से इनकार कर दिया कि एक नेता होने के कारण उनके कहे को ही शपथ के तौर पर लिया जाना चाहिए। इससे उनके आरोपों की ‘गंभीरता’ का अंदाजा लगाया जा सकता है।
अवलोकन करें:-
यही कारण है कि एक तरफ राहुल गाँधी मतदाता सूची में फर्जी लोगों का नाम जोड़ने का आरोप लगाते हैं, दूसरी तरफ मतदाता सूची से फर्जी, अयोग्य और मृत लोगों के नाम हटाए जाने का विरोध भी करते हैं। उल्लेखनीय है कि बिहार में चुनाव आयोग की मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया ने भारी विसंगतियाँ पकड़ी है।
आयोग ने पाया है कि सूची में 18 लाख मृत लोगों के नाम दर्ज थे। 7 लाख नाम डुप्लीकेट थे। इसके अलावा 26 लाख लोग ऐसे थे जो दूसरे जगहों पर जा चुके हैं।
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