मुस्लिम औरतों ने दी चुनौती : ‘तलाक-ए-हसन’ की वैधता की SC के पास पहुँची जाँच, उसे इस्लाम में माना जाता है सबसे ‘माकूल’

                                                                                                                    साभार: SCI/Chatgpt
‘तलाक-ए-हसन’ इस्लाम में तलाक देने की वो प्रक्रिया है, जिसमें शौहर अपनी बीवी को तीन महीने में हर महीने में एक बार ‘तलाक’ कहने से निकाह तोड़ सकता है। लेकिन यह ‘तीन तलाक’ से अलग है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में असंवैधानिक घोषित करते हुए तीन साल की सजा का प्रावधान दिया था। अब यही सुप्रीम कोर्ट ‘तलाक-ए-हसन’ की वैधता की जाँच कर रही है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, यह जाँच सुप्रीम कोर्ट में ‘तलाक-ए-हसन’ मामले में दाखिल की गई 9 याचिकाओं पर विचार करते हुए शुरू की गई है। मामले में तीन राष्ट्रीय आयोगों से जवाब माँगा गया है, जिसमें मानवाधिकार आयोग (NHRC), राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने आयोगों को इस्लाम की प्रमाणिक पुस्तकों और मजहबी किताबों समेत अन्य किसी भी सामग्री से तर्क प्रस्तुत करने की अनुमति भी दी है। कोर्ट ने मामले में सुनवाई को 19 नवंबर तक टालते हुए आयोगों को 4 महीने का समय दिया है।

गाजियाबाद की पत्रकार बेनजीर हिना ने दी थी चुनौती

सुप्रीम कोर्ट में ‘तलाक-ए-हसन’ से संबंधित सभी दायर याचिकाओं में मुख्य याचिका गाजियाबाद की पत्रकार बेनजीर हिना की है, जिनके शौहर ने इस प्रक्रिया के तहत उन्हें तलाक दे दिया था। साल 2022 में पहले महीने में तलाक के बाद ही बेनजीर ने कोर्ट का रुख किया था।

कोर्ट में याचिका दायर कर हिना ने इस प्रक्रिया को ‘भेदभावपूर्ण’ बताया था। उन्होंने कहा था कि यह एकतरफा तलाक की प्रक्रिया ‘महिलाओं की गरिमा पर घोर आघात’ है। ये औरतों के अधिकार को कमजोर करती है। उन्होंने कोर्ट से माँग की कि यह संविधान के अनुच्छेद 14,15, 21 और 25 का उल्लंघन है, इसीलिए ‘असंवैधानिक’ घोषित किया जाए।

तब सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते इस्लाम में ‘तलाक-ए-हसन’ के जरिए तलाक की प्रक्रिया को तीन तलाक से अलग बताया था और कहा था कि महिलाओं के पास भी ‘खुला’ का विकल्प है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में ‘तलाक-ए-हसन’ मामले में दायर याचिकाओं में एक याचिका क्रिकेटर मोहम्मदी शमी की बीवी हसीन जहाँ की भी है।

इस्लाम में तलाक-ए-हसन कितना वैध?

शरिया लॉ में तलाक-ए-हसन को तलाक-उल-सुन्नत का रूप माना गया है। तलाक-उल-सुन्नत के दो रूप हैं, जिनमें अन्य रूप तलाक-ए-अहसन है। तलाक-उल-सुन्नत का अर्थ है ‘सुन्नत के मुताबिक’ तलाक, जिसमें समय दिया जाता है। इस तरीके को पैगंबर मुहम्मद ने भी कबूल किया है।

तलाक-ए-हसन में शौहर तीन महीने में हर महीने एक बार ‘तलाक’ कहकर निकाह खत्म कर सकता है। इस्लाम में इस प्रक्रिया को सबसे माकूल और काबिले गौर तरीका माना जाता है। इस प्रक्रिया में मियाँ और बीवी को सुलह का समय दिया जाता है।

इस पर नोएडा के मौलवी मुफ्ती मुबारक कहते हैं कि तलाक-ए-हसन या तीन तलाक इस्लाम और कुरान में जायज नहीं है, केवल दो तलाक कहना ही मान्य है। तलाक-ए-हसन पर बोलते हुए कहते हैं कि इसमें पहले महीने में तलाक बोलने के बाद भी मियाँ-बीवी को दोबारा एकसाथ रहने का मौका मिलता है। लेकिन दूसरे महीने में ऐसा नहीं है, तब मियाँ-बीवी को दोबारा निकाह करना होगा।

वहीं, तीसरे महीने के तीसरे तलाक के बाद हलाला लागू हो जाएगा। इसके तहत औरत को नए शख्स के साथ निकाह कर संबंध बनाने होंगे, फिर उसे तलाक देकर अपने पहले शौहर से निकाह किया जा सकता है।

तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया

तलाक-ए-हसन में शौहर तभी ‘तलाक’ कह सकता है, जब बीवी तुहर (मासिक धर्म से मुक्त) में नहीं होती है। अगर औरत तुहर में नहीं है, तो पहले महीने पर ‘तलाक’ कहकर प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसके बाद एक महीने तक औरत इद्दत (एक अवधि तक किसी भी मर्द से निकाह या शारीरिक संबंध नहीं बना सकती) में रहती है।

एक महीने के इंतजार पर शौहर अगला ‘तलाक’ भी तभी दे सकता है, जब औरत हैज (मासिक धर्म) में नहीं है। इस एक महीने के बीच अगर सुलह हो जाती है तो ‘तलाक’ की प्रक्रिया रुक जाती है। अगर ऐसा नहीं होता तो तीसरे महीने के हैज में तलाक को दोहराया जाता है। तीसरी बार ‘तलाक’ कहने पर तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया पूरी होने के साथ निकाह खत्म हो जाता है।

शौहर के तलाक देते ही औरत अब ‘इद्दत’ शुरू कर देती है। शरिया लॉ में तलाक के बाद औरत को तीन महीने तक ‘इद्दत’ पूरी करनी होगी। हालाँकि, औरत अगर गर्भवती है तो इस ‘इद्दत’ को पूरा नहीं माना जाता है। ये बच्चा पैदा होने के बाद ही लागू होगी।

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