हिंदुओं पर हमले को लेकर आरफा खानम शरेवानी की चुप्पी
प्रिय आरफा खानम शेरवानी,
यह देखकर अच्छा लगता है कि आप ‘तीन सरल शब्दों – आई लव मोहम्मद’ के सम्मान के लिए इतनी गंभीरता दिखा रही हैं। यह निश्चित रूप से धार्मिक पहचान का एक भाव है। यह बात भी सही है कि हर भारतीय नागरिक को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है लेकिन जब आप यह कहती हैं कि भारतीय नागरिकों को अपनी धार्मिक पहचान जताने का अधिकार है, तो क्या इसमें हिंदू भी शामिल होते हैं आरफा खानम शेरवानी? और अगर आप मानती हैं कि हिंदुओं को भी अपनी धार्मिक पहचान जताने का अधिकार है, तो फिर आप तब चुप क्यों रहती हैं जब आपके ही समुदाय के लोग हिंदुओं को ‘आई लव महादेव’ कहने पर निशाना बनाते हैं?
सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो को देख बताओ कि क्या ‘I Love Muhammad’ के पीछे कोई षड़यंत्र है?
गुजरात के गांधीनगर जिले के दहेगाम तालुका के बहीयाल गाँव में 24 सितंबर 2025 की रात हिंदुओं पर गरबा उत्सव के दौरान हमला हुआ। हिंसा की शुरुआत एक हिंदू युवक की सोशल मीडिया पोस्ट से हुई, जिसमें उसने लिखा था- ‘आई लव महादेव’। आपकी ही कौम के लोगों को यह पोस्ट नागवार गुजरी और वे युवक की दुकान पर पहुँच गए। इसके चलते उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। उसके न होने पर दुकान में तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई। CCTV फुटेज में साफ दिखा कि कई मुस्लिम युवक दुकान में घुसकर नुकसान पहुँचा रहे थे।
यह झगड़ा जल्दी ही बड़े पैमाने पर हिंसा में बदल गया। पत्थर फेंके गए, लाठियाँ और रॉड चलाई गईं और गरबा कार्यक्रम में हिंदुओं के वाहन जला दिए गए। 8 से ज्यादा गाड़ियाँ तोड़ी-फोड़ी गईं और एक दुकान पूरी तरह जला दी गई। इसके बाद हालात काबू करने पहुँची पुलिस पर भी हमला किया गया जिसमें दो पुलिस वाहन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए। एक वीडियो में साफ दिखा कि मुस्लिम युवक पत्थर बरसा रहे थे और उसी बीच एक हिंदू माँ अपने बेटे को ढूँढते हुए रो रही थी। यह तस्वीर उस भीड़ के खौफ को दिखाने के लिए काफी है।
स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक, उस वक्त बाहर बैठे एक दुकानदार ने बताया कि करीब 5,000 लोगों की भीड़ रात में गाँव पर टूट पड़ी और उसकी दुकान को जानबूझकर निशाना बनाया। उसने बताया कि उसके गाँव में केवल 80 हिंदू परिवार रहते हैं और चारों तरफ मुसलमानों की आबादी है। भीड़ पत्थरों और हथियारों के साथ पहुँची और उसकी दुकान को तहस-नहस कर दिया जबकि मुस्लिम दुकानों को छुआ तक नहीं। उसने यह भी बताया कि हमलावरों में नाबालिग लड़के भी शामिल थे।
यह घटना साफ तौर पर हिंदू समाज को निशाना बनाने के लिए की गई थी। एक हिंदू युवक की भगवान शिव के प्रति आस्था दिखाने की बात ही हिंसा का बहाना बन गई। यह कोई झड़प नहीं थी बल्कि हिंदुओं और उनकी भक्ति से असहिष्णुता को लेकर सांप्रदायिक हमला था।
तो बताइए, शेरवानी, अगर तीन साधारण शब्द कभी भी खतरनाक नहीं माने जाने चाहिए तो फिर हिंदुओं को ‘आई लव महादेव’ कहने पर हिंसक सजा क्यों दी गई? उस समय आपका आक्रोश कहाँ चला गया था?
जरा सोचिए आरफा खानम शेरवानी जी, अगर वह हिंदू युवक भागा ही नहीं होता तो? क्या आपको लगता है कि आपके ही धर्म के वो लोग, जो उसकी दुकान तोड़ रहे थे और हिंसा कर रहे थे, उस हिंदू लड़के को नुकसान नहीं पहुँचाते? और अगर सच में वे उसे चोट पहुँचा देते, तो क्या आप यह कहतीं कि यह उनका हक है क्योंकि मुसलमानों को इतना आहत महसूस होने का विशेष अधिकार है कि वे गैर-मुसलमानों की स्वतंत्रता छीन लें?
क्या आपको सच में लगता है कि हिंदू सिर्फ अपनी भक्ति जताए तो वह आपके धर्म का अपमान है? क्या सिर्फ हिंदुओं का होना ही आपके समाज के लिए हिंसा करने का कारण बन जाता है? बताइए आरफा, क्या आप मानती हैं कि केवल मुसलमानों को ही अपनी धार्मिक पहचान जताने का अधिकार है जबकि अक्सर यह धार्मिक पहचान दूसरों के धर्म को कुचलने पर आधारित होती है।
आप बहुत परेशान नजर आती हैं जब मुसलमानों को ‘आई लव मोहम्मद’ कहने पर अपराधी बताया जाता है। लेकिन ज़रा देखिए कि यही तीन ‘भोले-भाले’ शब्द आपके ही समुदाय के कुछ लोगों ने देशभर में कैसी तबाही मचाने के लिए इस्तेमाल किए हैं। ये शांति और मोहब्बत के नारे नहीं रहे। इन्हें मजहबी उन्मादियों ने जंग का नारा बना दिया है। हमने कई बार देखा है कि भीड़ इन नारों को ‘सर तन से जुदा’, पत्थरबाजी, आगजनी, तोड़फोड़ और यहाँ तक कि पुलिस पर सीधे हमले के लिए इस्तेमाल करती है।
जरा इस पोस्टर को ही देख लीजिए।
‘I Love Muhammad’ का पोस्टरमैं 100% सहमत हूँ कि आपका ‘I Love Muhammad’ वाला पोस्टर लगाने का हक है क्योंकि यह आपके धर्म की अभिव्यक्ति है और इसे सम्मान किया जाना चाहिए। पर एक हिंदू होने के नाते, जिसकी कम्युनिटी और उसके लोग परेशानी में हैं, मैं आपसे पूछती हूँ आपकी कम्युनिटी को यह बात जोड़ने की जरूरत क्यों महसूस होती है कि ‘अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो हम ऐसे बुजदिल भी पहली सफ में खड़े मिलेंगे’?
आरफा, आपकी कम्युनिटी कौन सी जंग लड़ रही है? यह जंग किसके खिलाफ है? आपकी कम्युनिटी जीतकर क्या करेगी? क्या आप जानती हैं कि किसने भी इस काल्पनिक ‘जंग’ की बात की थी? PFI ने। आप जानती हैं उन्होंने क्या लिखा? उन्होंने एक दस्तावेज में बताया कि जो आने वाली जंग होगी, उसके मतलब हिंदुओं का सफाया है जिसमें हिंदुओं की लिस्ट बनाना और उन्हें मार देना शामिल है। भारत को एक इस्लामी मुल्क बनाने की बात की गई, जहाँ गैर-मुसलमानों की खासकर हिंदुओं की कोई जगह न रहे। आरफा, क्या आप PFI और अपने कुछ साथियों से कहेंगी कि ‘अपनी रणनीति बदल लो, अपनी विचारधारा नहीं’ जैसा कि आपने शाहीन बाग के जिहादियों से कहा था, ताकि आप अपना सेक्युलर लबादा ओढ़े दिखें।
उत्तरी प्रदेश, उतराखंड और गुजरात समेत कई राज्यों में हिंसा भड़की है। शहरों में मार्च के दौरान पुलिस पर हमला हुआ और उन पर पत्थर फेंके गए और लोग जोर-जोर से ‘सर तन से जुदा’ जैसे नारे लगा रहे थे। एक मौलवी ने तो बरेली में एक इंस्पेक्टर को जान से मारने की धमकी भी दी थी।
यह नारा इबादत का ही प्रतीक हो सकता है और मुस्लिम समुदाय को अपने धर्म को खुलकर जताने का अधिकार होना चाहिए। समस्या यह है कि कुछ इस्लामी कट्टरपंथी मजहब को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं, वे इसे अलगाववादी और श्रेष्ठतावादी सोच के लिए प्रयोग करते हैं। इसका नतीजा अक्सर यही होता है कि हिंदुओं पर हमला होता है, उन्हें सताया जाता है, दबाया जाता है और कभी-कभी तो उनका कत्लेआम भी कर दिया जाता है।
हिंदुओं ने कहा- ‘आई लव महादेव’। मुसलमानों ने उसका जवाब पत्थरबाजी, आगजनी और चुन-चुनकर हिंदू दुकानों पर हमले से दिया। मुसलमानों ने कहा- ‘आई लव मोहम्मद’ लेकिन इसके साथ दंगे हुए, सिर काटने की धमकियाँ दी गईं और पुलिस से हिंसक झड़पें की गईं। तो क्या आपको नहीं लगता कि भारतीय राज्य या हिंदुओं पर सवाल उठाने के बजाय आपको उन लोगों से सवाल करना चाहिए जिन्होंने उसी मजहब का नाम कलंकित कर दिया है जिसे आप बड़े प्यार से मानती हैं?
सितंबर 2024 में आपने ‘लव जिहाद, थूक जिहाद और लैंड जिहाद’ जैसे दर्ज मामलों को ‘फर्जी प्रोपेगेंडा’ कहकर खारिज कर दिया और उन हिंदू पीड़ितों की गवाही जानबूझकर नजरअंदाज कर दी जो इससे पीड़ित थे। फिर जनवरी 2025 में आपने ‘द वायर’ की उस रिपोर्टिंग का बचाव किया जिसमें हमीरपुर में जबरन धर्मांतरण के आरोप में पकड़े गए मुस्लिमों को बचाने की कोशिश की गई थी। आपने पुलिस पर सवाल खड़े किए लेकिन उन हिंदू परिवारों की पीड़ा को नहीं माना जिन्हें जबरदस्ती धर्म बदलने के लिए मजबूर किया या। ये तो सिर्फ कुछ उदाहरण हैं, इस सूची का कोई अंत नहीं है।
असल में आरफा, आप कभी उन मुस्लिमों जैसी नहीं बन पाएँगी जो डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे थे। आप कभी अरिफ मोहम्मद खान जैसे लोगों की इज्जत नहीं करेंगी। आप कभी उन मुसलमानों के लिए खड़ी नहीं होंगी जो पहले भारत को रखते हैं और दिल से हिंदुओं को अपना भाई समझते हैं। आरफा आप केवल तब बोलेंगी जब कट्टर इस्लामी भीड़ हिंदुओं पर हमला करेगी। आरफा आप जिहादियों की वैचारिक रीढ़ हैं
(साभार: https://www.opindia.com/2025/09/open-letter-arfa-khanum-sherwani-i-love-muhammad-harmless-chant-then-why-is-it-leading-to-muslim-violence/#google_vignette)
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