‘विधायक हो तो क्या, अलग से नहीं होगा ट्रायल’: नूहँ हिंसा केस में कांग्रेस MLA मामन खान को सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा, HC के फैसले पर लगाई रोक

                                                        कांग्रेस विधायक मामन खान
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में यह साफ कर दिया है कि किसी राजनेता को सिर्फ उसके पद के आधार पर कोई विशेष सुविधा नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें हरियाणा कांग्रेस विधायक मामन खान के लिए अलग से ट्रायल चलाने की बात कहीं गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायक होना अलग ट्रायल का आधार नहीं हो सकता। कानून की नजर में सभी बराबर हैं।

नूहँ हिंसा मामले में हुआ था अलग ट्रायल का आदेश

यह मामला 2023 की नूहँ हिंसा से जुड़ा है, जिसमें छह लोगों की मौत हुई थी। इस हिंसा को भड़काने के आरोप में विधायक मामन खान और अन्य लोगों पर केस दर्ज किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने विधायक खान के लिए अलग से सुनवाई का आदेश दिया, जिसे पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया था।

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि सिर्फ राजनीतिक पद के आधार पर किसी को अलग से ट्रायल की अनुमति देना संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए समानता के सिद्धांत के खिलाफ है।

क्यों नहीं हो सकता अलग ट्रायल?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कुछ अहम बातें बताईं हैं। कोर्ट ने कहा कि सभी आरोपित कानून के सामने बराबर हैं। विधायक होना अलग ट्रायल का आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में विधायक खान और अन्य आरोपितों के खिलाफ सबूत एक जैसे हैं। अलग-अलग ट्रायल चलाने से गवाहों को बार-बार बुलाना पड़ेगा, जिससे बेवजह देरी होगी और विरोधाभासी फैसले आने का खतरा भी रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भले ही विधायकों से जुड़े मामलों का जल्द निपटारा होना चाहिए, लेकिन यह निष्पक्ष सुनवाई की कीमत पर नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी आरोपित को केवल राजनीतिक पद के कारण अलग ट्रायल की अनुमति देना सही नहीं है। इस फैसले के बाद, विधायक मामन खान का मामला दोबारा ट्रायल कोर्ट को भेज दिया गया है, जहाँ विधायक का ट्रायल अब बाकी आरोपितों के साथ ही होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने तय किए जॉइंट ट्रायल के प्रिंसिपल

सुप्रीम कोर्ट ने इसी फैसले में कुछ जॉइंट ट्रायल के प्रिंसिपल भी तय किए है। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि आमतौर पर हर आरोपित का ट्रायल अलग-अलग होता है, लेकिन अगर अपराध एक ही घटना का हिस्सा हों, तो जॉइंट ट्रायल हो सकता है। यह फैसला जज की बुद्धिमानी पर निर्भर करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि जॉइंट या अलग ट्रायल का फैसला शुरुआत में ही किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि फैसला लेते समय यह देखना जरूरी है कि क्या जॉइंट ट्रायल से किसी आरोपित को कोई नुकसान हो सकता है या इससे सुनवाई में देरी होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि एक ट्रायल में जिन सबूतों का इस्तेमाल किया गया है, वहीं सबूत दूसरे ट्रायल में इस्तेमाल नहीं हो सकते हैं। इसलिए, अलग-अलग ट्रायल से कानूनी प्रक्रिया में दिक्कतें आ सकती हैं।

कोर्ट ने कहा कि कोई भी फैसला सिर्फ इसलिए रद्द नहीं किया जाएगा कि जॉइंट या अलग ट्रायल संभव था। कोर्ट तभी दखल देगा जब आरोपित असलियत में कोई नुकसान हुआ हो।

No comments: