सेलिब्रिटी के लिए अलग नियम नहीं हो सकते: गुजरात हाई कोर्ट ने यूसुफ पठान के सरकारी जमीन पर कब्जे को बताया ‘अवैध’, वडोदरा में TMC सांसद के प्लॉट हड़पने का मामला

                      गुजरात हाई कोर्ट ने यूसुफ पठान की याचिका खारिज कर दी (फोटोः आजतक/भास्कर)
गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में पूर्व क्रिकेटर और टीएमसी सांसद यूसुफ पठान की जमीन विवाद से जुड़ी याचिका खारिज कर दी। जस्टिस मौना भट्ट की सिंगल बेंच ने पठान को सरकारी जमीन पर अतिक्रमणकारी घोषित किया।

दरअसल, वडोदरा नगर निगम ने यूसुफ पठान को सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करने के आरोप में नोटिस भेजा था। इसके बाद पठान ने नगर निगम के नोटिस और राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

ऑपइंडिया के पास मौजूद आदेश की कॉपी में कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि यूसुफ पठान द्वारा सरकारी जमीन पर कब्जा करना अवैध और जबरदस्ती है और इसे किसी भी हालत में वैध नहीं माना जा सकता।

मामले का इतिहास

यह मामला 2012 से शुरू हुआ। यूसुफ पठान ने अपने बंगले के पास 978 वर्ग मीटर का प्लॉट नंबर 90 को 99 साल की लीज पर लेने के लिए वडोदरा नगर निगम में आवेदन दिया। नगर आयुक्त और निगम की स्थायी समिति ने इसे मंजूरी दी। 8 जून 2012 को निगम की आम सभा ने भी प्रस्ताव मंजूर कर लिया।

चूँकि यह जमीन बिना सार्वजनिक नीलामी के दी जानी थी, इसलिए इसे राज्य सरकार के पास भेजा गया। सरकार ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके बावजूद यूसुफ पठान ने जमीन पर कब्जा कर लिया।

वीएमसी ने तुरंत कार्रवाई नहीं की लेकिन 2024 में विवाद फिर चर्चा में आया और निगम ने पठान को नोटिस भेजकर जमीन खाली करने को कहा। इसके बाद यूसुफ पठान ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

यूसुफ पठान के क्या हैं तर्क?

पठान के वकील ने कहा कि नगर निगम एक स्वतंत्र निकाय है और अधिनियम 1949 के तहत निगम आयुक्त को जमीन पट्टे पर देने का अधिकार है। राज्य सरकार की मंजूरी लेना आवश्यक नहीं है। उन्होंने संविधान के 74वें संशोधन का हवाला देते हुए कहा कि नगर निगम जैसे स्थानीय निकायों में राज्य का हस्तक्षेप उचित नहीं है।
यूसुफ पठान ने यह भी कहा कि वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर और सांसद हैं, जमीन का मौजूदा बाजार मूल्य चुकाने को तैयार हैं और निगम ने 12 साल तक कोई आपत्ति नहीं जताई, इसलिए उनका कब्जा वैध मानना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि विवादित जमीन उनके बंगले के पास है, इसलिए सुरक्षा का मामला भी है।

सरकार और निगम का तर्क

नगर निगम और सरकार के वकील ने कहा कि किसी को भी सरकारी या निगम की जमीन पर कब्जा करने का अधिकार नहीं है। जमीन बिना नीलामी के दी जानी थी, इसलिए राज्य सरकार की मंजूरी जरूरी थी। पठान ने चारदीवारी बनाकर कब्जा कर लिया जबकि कोई औपचारिक आदेश नहीं था।
सरकार ने यह भी कहा कि पठान ने निगम को एक भी रुपया नहीं दिया और सुरक्षा का कोई सबूत भी नहीं पेश किया। निगम ने अदालत से कहा कि अगर पठान सचमुच जमीन चाहते हैं, तो उन्हें सार्वजनिक नीलामी में हिस्सा लेना चाहिए, जैसा हर नागरिक करता है।

हाई कोर्ट का फैसला

जस्टिस मौना भट्ट ने कहा कि 9 जून 2014 को राज्य सरकार ने जमीन का प्रस्ताव खारिज कर दिया था। इसके बाद यूसुफ पठान का कोई कानूनी अधिकार नहीं बचा। कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक कब्जा बनाए रखने से किसी को भी जमीन पर अधिकार नहीं मिल जाता।
कोर्ट ने पठान के बाजार मूल्य चुकाने की दलील भी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि यूसुफ पठान जैसी हस्तियाँ और सांसद समाज के आदर्श होते हैं और उनसे आम नागरिकों से अधिक कानून का पालन करने की उम्मीद होती है। कानून तोड़ने के बाद भी विशेष सुविधाएँ मिलें, तो समाज को गलत संदेश जाएगा।
अदालत ने यह भी कहा कि निगम की लापरवाही यूसुफ पठान को लाभ नहीं पहुँचा सकती। अंतिम आदेश में याचिका खारिज कर दी गई और कहा गया कि जमीन पर अवैध कब्जा तुरंत हटाना चाहिए। नगर निगम को आदेश दिया गया कि कानून के अनुसार सख्त कार्रवाई की जाए। यूसुफ पठान का कब्जा अवैध था और इसे कोई भी विशेष दलील वैध नहीं बना सकती। कोर्ट ने साफ कहा कि प्रसिद्धि या पद से कानून पर अलग नियम नहीं हो सकते हैं।

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