चीन से मोदी ने दुनिया को दिखाई भारत की ताकत, नई ‘ट्रॉइका’ से TRUMP हैरान, वर्ल्ड मीडिया में मोदी का गौरवगान


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक दशक से ज्यादा के कार्यकाल में भारत की विदेश नीति में कमाल का बड़ा बदलाव आया है। भारत अब फॉलोअर नहीं रहा, बल्कि एजेंडा-सेटर की भूमिका निभा रहा है। ट्रंप टैरिफ और अमरीकी वर्चस्व के दौर में चीन में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत और पीएम मोदी का जलवा साफ नजर आया। चीन से दुनियाभर को भारत की ताकत दिखाकर पीएम मोदी छा गए। एक ओर उनके प्रभाव से ही एससीओ ने पाकिस्तान को घेरते हुए पहलगाम हमले की निंदा की। वहीं, पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात में दो पुराने दोस्तों की निजी केमिस्ट्री ने दुनिया को बड़ा संदेश दिया। एससीओ के मंच से इतर मोदी-पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तिकड़ी ने अमरीका को भी नए शक्ति संतुलन के संकेत दिए। पीएम मोदी ने साफ कर दिया कि अमेरिकी दबाव के आगे भारत नहीं झुकेगा। इसके बाद ही 25 प्रतिशत अतिरिक्त पेनल्टी टैरिफ लगाने वाले अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप को भी सफाई देने को मजबूर होना पड़ा। दरअसल, पीएम मोदी की विदेश नीति में रूस, यूरोप, खाड़ी देशों और अफ्रीका- सबके साथ रिश्तों को संतुलित करना, ग्लोबल साउथ की आवाज बनना और इंडिया फर्स्ट की सोच को व्यवहार में उतारना शामिल है।

एससीओ: आपदा में भी अवसर तलाशने की मोदी डॉक्ट्रिन

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की शानदार मुलाकात ने एक नया संदेश दिया है- सीमा विवाद को पीछे छोड़, सहयोग के रास्ते खोलना। यह वही रणनीति है, जो आपदा में भी अवसर तलाशने की मोदी डॉक्ट्रिन की पहचान है। उन्होंने कोरोनाकाल में दुनियाभर को वैक्सीन देकर मोदी डॉक्ट्रिन को साबित किया है। अब इसका अगला पड़ाव रूस-इंडिया-चीन (आरआईसी) ट्रॉइका ही है। आंकड़े भी इस बात की साफ गवाही देते हैं। इन तीनों देशों में मिलकर 3 अरब लोग यानी दुनिया की 37 फीसदी आबादी रहती है। इनकी संयुक्त जीडीपी 22.4 फीसदी (नॉमिनल) और 34.2 फीसदी (पीपीपी) है। यह जी-7 के लिए सीधी चुनौती है। दुनिया का कुल 20 फीसदी भूभाग इन तीन देशों में है। इनके पास 46 लाख सक्रिय सैनिक हैं, यानी नाटो से भी बहुत ज्यादा हैं।

भारत की कूटनीतिक जीत, ट्रंप टैरिफ को करारा जवाब मिला

आरआईसी देशों की अलग-अलग ताकत इन्हें दुनिया से अलग बनाती है। एक ओर रूस के पास जहां तेल-गैस के अकूत भंडार हैं, तो वहीं चीन का 90 फीसदी रेयर-अर्थ तत्वों पर नियंत्रण है। भारत की मैन्युफैक्चरिंग, स्किल यूथ पावर और इकोनॉमी तेजी से विकसित हो रही है। खाद्य सुरक्षा की बात करें तो आरआईसी के पास खाद्यान्नों का भरपूर उत्पादन है। हिंद महासागर, दक्षिण चीन समुद्र और आर्कटिक रूट इनके नियंत्रण में हैं। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में रूस और चीन स्थायी सदस्य हैं, वहीं भारत विकासशील देशों का दुनिया में सबसे बड़ा प्रतिनिधि बनकर उभरा है। यानी यह गठबंधन आर्थिक, सैन्य और तकनीकी- हर स्तर पर अपराजेय सिद्ध हो सकता है। इसके अलावा हाल ही में अलास्का में ट्रंप और पुतिन की बैठक बेनतीजा रही थी। लेकिन एससीओ की बैठक में पीएम मोदी ने यूक्रेन में युद्ध की समाप्ति का मुद्दा उठाया और रूसी राष्ट्रपति से भारत के प्रयासों का समर्थन भी प्राप्त किया। इस बैठक के बाद नए समीकरण बनेंगे। यह भारत की कूटनीतिक जीत है। दरअसल, अमेरिका का क्वाड अपनी प्रासंगिकता खो रहा है। भारत-रूस और चीन का एससीओ संगठन अब एक नई और जबरदस्त ताकत के रूप में उभरा है।

 मोदी बोले-कठिनाई में रूस-भारत साथ, पुतिन ने कहा हम दोस्त

तियानजिन में पीएम मोदी, रूसी राष्ट्रपति पुतिन और शी जिनपिंग के बीच गजब केमिस्ट्री दिखी। एससीओ शिखर सम्मेलन के बाद पुतिन की पहल पर मोदी उनकी कार में बैठकर द्विपक्षीय वार्ता करने होटल रवाना हुए। पुतिन ने मोदी का 10 मिनट तक इंतजार किया। मोदी और पुतिन की यह तस्वीर रूसी मीडिया में छाई रही। कार में करीब पौन घंटे चर्चा के बाद औपचारिक बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन युद्ध खत्म करने के प्रयासों की सराहना की और शांति को मानवता की पुकार बताया। उन्होंने कहा कि हर मुश्किल वक्त में भारत और रूस साथ खड़े रहे हैं। दुनिया की स्थिरता के लिए दोनों देश अहम हैं। पुतिन ने मोदी को प्रिय दोस्त कहकर संबोधित किया। मोदी ने पुतिन को भारत दौरे का न्योता देते हुए कहा कि 140 करोड़ भारतीय स्वागत को उत्सुक हैं। पुतिन दिसंबर में भारत आएंगे।
हाथी और ड्रैगन को साथ-साथ आने की जरूरत- जिनपिंग
तियानजिन में 25वां शंघाई सहयोग संगठन समिट में प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की द्विपक्षीय मुलाकात ने सबका ध्यान खींचा, जो 2020 की गलवान झड़प के बाद रिश्तों को सामान्य करने की दिशा में अहम कदम है। मीटिंग में सीमा विवाद, डायरेक्ट फ्लाइट,मानसरोवर यात्रा और आपसी संबंध बढ़ाने पर बातचीत हुई। जिनपिंग ने कहा कि भारत-चीन प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि साझेदार हैं। हाथी और ड्रैगन को साथ-साथ आने की दरकार है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दोनों देश बेहतर द्विपक्षीय संबंधों की ओर बढ़ेंगे। खासकर यह वर्ष द्विपक्षीय संबंधों के 75वें वर्ष का प्रतीक है। वे अपने सहयोग को सुरक्षा से लेकर आर्थिक संबंधों और लोगों के बीच आपसी आदान-प्रदान तक बढ़ाएँगे। पीएम मोदी ने भी इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों को द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए और सीमा संबंधी मुद्दों का द्विपक्षीय संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।
नई ट्रॉइका से हैरान ट्रंप को भी सफाई देने को मजबूर होना पड़ा
भारत-रूस-चीन की नई ट्रॉइका और पीएम मोदी के जलवे से हैरान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को पिछले पांवों पर ला दिया। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप को भी सफाई देने को मजबूर होना पड़ा। सोशल मीडिया पोस्ट में ट्रंप ने व्यापार घाटे का रोना रोते हुए कहा कि भारत ने अमरीकी आयात पर जीरो टैक्स का ऑफर दिया था, लेकिन देर हो चुकी थी। हालांकि, भारत सरकार ने ऐसे दावे की कोई पुष्टि नहीं की। अमरीका के पूर्व एनएसए जैक सुलिवन ने ट्रंप के भारत विरोधी रुख की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने पाकिस्तान से कारोबारी सौदों के लिए भारत के साथ रिश्तों की बलि चढ़ा दी। इससे अमरीका की साख गिरी है।
ट्रंप ने भारत-अमेरिका की तीन दशक की दोस्ती पर पानी फेर दिया
बता दें कि तीन दशक तक अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने भारत से दोस्ती मजबूत करने के लिए लगातार प्रयास किए। आधुनिक भारत-अमेरिका रिश्तों की बुनियाद रखने वाले बिल क्लिंटन ने दोनों देशों को स्वाभाविक सहयोगी कहा था। जॉर्ज बुश ने दोनों को मानवीय स्वतंत्रता के लिए खड़े रहने वाले भाई बताया था। बराक ओबामा और जो बाइडन मानते थे कि यह सदी की चुनौतियों से निपटने के संबंध हैं। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सिक्योरिटी बनाए रखने के लिए भारत अहम पार्टनर है। लोकतांत्रिक भारत नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बेहतर बना सकता है। भारत ने शीत युद्ध के दौर के अविश्वास को छोड़कर अमेरिका से नजदीकी कायम की है। लेकिन ट्रंप ने कुछ माह के भीतर इस सब पर पानी फेर दिया है। ट्रंप ने मई में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य टकराव को खत्म करने का श्रेय लिया था। इससे भारत नाराज होना स्वाभाविक था। वह मानता है, पाकिस्तान से विवाद पूरी तरह दोनों देशों के बीच का मामला है।
डोनाल्ड ट्रंप की अस्थिर मनोदशा से कोई देश सुरक्षित नहीं
इतना ही नहीं ट्रंप ने पाक के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में खाने पर बुलाया। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को मृत घोषित किया। भारत से अमेरिका जाने वाले माल पर 50% टैरिफ लगा दिया। ट्रंप के इस व्यवहार के व्यापक नतीजे सामने आए। ट्रंप के दोगले व्यवहार ने  भारत के राजनीतिक दलों को एकजुट कर दिया। दरअसल, अब यह भी साफ हो गया है कि राष्ट्रपति ट्रंप की अस्थिर मनोदशा के चलते कोई देश सुरक्षित नहीं है। वो दूसरे देशों पर मनमाना टैरिफ लगाने को उतारू है। हालांकि ट्रंप टैरिफ को अमेरिकी अदालतों में चुनौती मिल चुकी है। भारत लंबी अवधि में टैरिफ के आघात से निपट लेगा। विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था, विशाल घरेलू बाजार और दुनियाभर से मजबूत व्यापारिक रिश्तों के बूते भारत मुकाबला कर सकता है। देर-सबेर अमेरिका द्वारा संबंध सुधारने के प्रयास होंगे।
तियानजिन में आयोजित शिखर सम्मेलन के बाद घोषणापत्र में अमेरिका की टैरिफ नीति की निंदा की गई है। इन दस प्वाइंट में समझिए मोदी-पुतिन-जिनपिंग ट्रॉइका का भावी असर…
1. इसमें सदस्य देशों के बीच आपसी मुद्रा में कारोबार को बढ़ावा देने की रणनीति, अमेरिकी हमलों की कड़ी निंदा और आपसी वित्तीय व आर्थिक सहयोग को मजबूत करने के लिए अलग से व्यवस्था करने की बात की गई है।
2. कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस आयोजन को नई वैश्विक व्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है। घोषणापत्र में कहा गया है- ‘सदस्य देश एकतरफा जबरन उपायों, विशेष रूप से आर्थिक प्रकृति के उपायों का विरोध करते हैं जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून के अन्य नियमों, विश्व व्यापार संगठन के नियमों और सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।
3. ये उपाय अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के हितों, जिसमें खाद्य-ऊर्जा सुरक्षा शामिल है, को नुकसान पहुंचाते हैं, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को कमजोर करते हैं और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में बाधा डालते हैं।
4. सदस्य देशों ने एससीओ के भीतर व्यापार सुविधा पर एक समझौता विकसित करने की पहल पर जोर दिया। एससीओ सदस्य देश अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे में सुधार का समर्थन करते हैं, जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, जैसे कि अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (आइबीआरडी) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के शासी निकायों में विकासशील देशों की प्रतिनिधित्व और भूमिका को बढ़ाना है।
5. एससीओ सदस्य देशों द्वारा आपसी लेन-देन में राष्ट्रीय मुद्राओं की हिस्सेदारी को धीरे-धीरे बढ़ाने के रोडमैप को तेजी से लागू करने के महत्व पर बल दिया।
वर्ल्ड मीडियाः मोदी को सहारा, ट्रंप को जिम्मेदार ठहराया 
  • The New York Times हाथ मिलाते मोदी, शी और पुतिन ने एकता दिखाई। यह अमेरिका की वैश्विक नेतृत्व भूमिका के विकल्प का संदेश देने की कोशिश है।
  • REUTERS एससीओ में मोदी, जिनपिंग, पुतिन की मुलाकात छाई रही। फोकस ‘ग्लोबल साउथ’ पर और अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती का संदेश।
  • ALJAZEERA जिनपिंग ने क्षेत्रीय नेताओं से ‘शीत युद्ध मानसिकता’ के विरोध की अपील की। एससीओ को पश्चिमी नेतृत्व वाले ढांचे के विकल्प के रूप पेश किया।
  • CNN जिनपिंग, मोदी, पुतिन की बातचीत और सहजता दिखाती है। वैश्विक तनाव और सुरक्षा मुद्दों के बीच यह सहजता वैश्विक मंच पर सकारात्मक संदेश है।
  • AP एससीओ अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती और भारत-चीन के बहुध्रुवीय विश्व के विचार को मजबूत कर सकता है।
  • Washington Post एसीओ अमेरिका के खिलाफ भारत-रूस-चीन की नई कूटनीतिक मुहिम। ट्रंप ने भारत-अमेरिका के लगातार मजबूत होते रिश्तों को बर्बाद किया।
  • TIME ट्रंप टैरिफ के कारण भारत-चीन इतने ज्यादा करीब आए। मोदी-पुतिन और जिनपिंग की करीबी से नया वैश्विक नेतृत्व तैयार।

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