नेपाल में 2 साल 8 महीने की आर्यतारा शाक्य बनीं नई 'जीवित देवी' (फोटो साभार: HimalayanTimes)
नेपाल के काठमांडू में दो साल आठ महीने की आर्यतारा शाक्य को नेपाल की नई कुमारी यानि नई ‘जीवित देवी’ के रूप में चुना गया। मंगलवार (30 सितंबर 2025) को आर्यतारा को उनके घर से तलेजु भवानी मंदिर में ले जाया गया। इस दौरान बच्ची के माता-पिता भावुक हो गए क्योंकि अब देवी घर से दूर मंदिर में विराजमान रहेंगी।
नेपाळला नवीन 'कुमारी' देवी मिळाली आहे. मंगळवारी (दि. 30 सप्टेंबर) 2 वर्षांच्या चिमुकलीची नवीन कुमारी देवी म्हणून निवड करण्यात आली. प्राचीन विधींनुसार झालेल्या एका समारंभात आर्यतारा शाक्य हिचा नेपाळची जिवंत देवी म्हणून अभिषेक करण्यात आला.#nepallivinggoddess #nepal pic.twitter.com/ULum4F6CtN
— SakalMedia (@SakalMediaNews) October 1, 2025
आर्यतारा ने पूर्ववर्ती कुमारी, तृष्णा शाक्य का स्थान लिया। परंपरा के अनुसार, मौजूदा कुमारी जैसे ही किशोरावस्था में प्रवेश करती है तो उन्हें सामान्य मनुष्य माना जाने लगता है। देवी चुने जाने वाले दिन आर्यतारा को उनके पिता गोद में उठाकर कुमारी घर लेकर आए। इस दौरान भव्य समारोह आयोजित किया गया। जहाँ हजारों लोग कुमारी की एक झलक पाने के लिए कतार में खड़े रहे।
अष्टमी तिथि को हुए इस समारोह में आर्यतारा कुमारी की औपचारिक पूजा की गई। कुमारी को आशीर्वाद के साथ घर से विदा कर काठमांडू के ऐतिहासिक कुमारी घर में स्थायी रूप से बैठाया गया। यह परिवार के लिए सम्मान की बात मानी जाती है क्योंकि कुमारी का परिवार समाज में प्रतिष्ठित हो जाता है।
कौन है ‘जीवित देवी’?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई कुमारी का पूरा नाम आर्यतारा शाक्य है, जिनकी उम्र केवल दो साल आठ महीने है। वे शाक्य वंश के नेवार समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। ये वही समुदाय है, जो कुमारी परंपरा से जुड़ा माना जाता है। आर्यतारा के पिता का नाम अनंत शाक्य, माता का नाम प्रतिष्ठा शाक्य है। उनकी एक बहन भी है, जिसका नाम पारमिता शाक्य है।
कैसे चुनी जाती हैं ‘जीवित देवी’?
नेपाल की इस परंपरा में कुमारी का सार्वजनिक रूप से चयन किया जाता है। इनमें नेवार समुदाय के शाक्य वंश की बालिकाओं का ही चयन होता है और यहा भी जरूरी है कि वे काठमांडू की मूल निवासी हो।
कुमारी बनने के लिए बालिकाओं में 32 गुण होने जरूरी हैं। इनमें 12 मानदंडों पर परीक्षा सफल करनी होती है। इनमें शारीरीक मानदंड में सुंदरता पर खास ध्यान दिया जाता है, जैसे चेहरा, दाँत, आँखें और त्वचा पर किसी प्रकार के दाग-धब्बे नहीं होने चाहिए या बच्ची के शरीर पर कोई घाव का निशान न हो।
आध्यात्मिक और व्यवहार संबंधी मानदंड पूरा करने के लिए बच्ची में निडर, शांत स्वभाव, दैवीय गुण होने जरूरी हैं। पारंपरिक अनुष्ठानों और ज्योतिष परीक्षणों के जरिए भी योग्य लड़की चुनी जाती है। आमतौर पर 2 से 4 साल की आयु की बच्ची का ही चयन कुमारी के रूप में किया जाता है। कुमारी बनने के बाद मासिक धर्म तक पहुँचने पर वह ‘देवी’ का रूप त्याग देती हैं और सामान्य जीवन में लौट आती हैं।
कुमारी चुने जाने के लिए ये मानदंड सदियों से चले आ रहे हैं। हालाँकि, आधुनिक समय में कुछ बदलाव और चर्चाएँ रही हैं, जिसमें कुमारी चुने जाने पर निजी शिक्षा लेने, टीवी देखने और कुछ आधुनिक सुविधाएँ पाने का अधिकार मिला है।
‘जीवित देवी’ बनने की परीक्षा
बच्ची को ‘जीवित देवी’ बनने के लिए कठिन परीक्षा से गुजरना होता है। इससे बच्ची की देवी के रूप में साहस और अन्य गुणों को परखा जाता है। परीक्षा के दौरान बच्ची को बलि दिए गए भैंसो और रक्त में नाचते हुए नकाबपोश पुरुषों को दिखाया जाता है। इस दौरान अगर डर का कोई भी लक्षण बच्ची में दिखता है तो उसे अयोग्य माना जाता है। चूँकि बच्ची को तलेजु का अवतार माना जाएगा इसीलिए बच्ची का साहसी होना महत्वपूर्ण है।
कुमारी चुने जाने के बाद बच्ची को माता-पिता का घर छोड़ना होता है। देवी का रूप बने रहने तक बच्ची को मंदिर में स्थायी रूप से विराजित किया जाता है, यहाँ खास कुमारी घर की व्यवस्था की जाती है। जहाँ देवी आम लोगों को दर्शन देती हैं। कुमारी के परिवार को बेटी से मिलने की अनुमति नहीं होती है। केवल साल में 13 बार सार्वजनिक आयोजनों में जाने के वक्त माता-पिता उनसे मिल सकते हैं।
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