RSS एक अद्भुत संगठन है जो जनता से demography change पर चिंता करते तीन बच्चे पैदा करने की बात जरूर करता है लेकिन संघ प्रचारक कुंवारे रहते हैं, क्यों? यही स्थिति साधु-संत समाज की है। संघ और साधु-संत समाज को गहन अध्ययन/मंथन करने की जरुरत है। हिन्दू-हिन्दू कहने से कुछ नहीं होता। इन सबको स्वयं भी धरातल पर आकर काम करना चाहिए। जिसका Love jehad जैसी कुरीतियों पर भी फर्क पड़ेगा।
खैर, मुझे गर्व है मैं RSS जैसे संगठन से बचपन से जुड़ा रहा। आज संघ की स्थापना को 100 वर्ष पूरे हो गए और विश्व में आपको कोई ऐसा संगठन, कोई राजनीतिक दल ऐसा नहीं मिलेगा जो टुकड़ों में नहीं बंटा हो, इतना ही नहीं इन 100 वर्षों में भारत समेत अनेक देश भी विखंडित हो गए लेकिन संघ “अखंड” रहा है और देश को परमवैभव की तरफ ले जाने को अग्रसर है।
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लेखक चर्चित YouTuber |
मीडिया ने हमेशा RSS की छवि को एक हिंदूवादी संगठन के रूप में दर्शाया है जबकि सही मायने में संघ एक “राष्ट्रवादी” संगठन है। कहीं कोई प्राकृतिक आपदा आन पड़े तो संघ के कार्यकर्त्ता सेवार्थ सबसे पहले पहुँच जाते है। पीड़ितों को बचाते हुए वे यह नहीं देखते कि कौन किस जाति या धर्म विशेष का है जैसा वायनाड में हुआ था हुए भूस्खलन की आपदा के समय वहां का प्रतिनिधि कई दिन नदारत था लेकिन संघ के स्वयंसेवक जनसेवा में जुटे थे।
संघ कैसे चलता है बिना किसी सरकारी मदद से, यह वे ही जानते हैं, संघ प्रमुख के किसी बयान में किसी अन्य समुदाय के विरुद्ध एक शब्द सुनने को नहीं मिलेगा लेकिन फिर भी विपक्ष संघ को नफ़रत फ़ैलाने वाला संगठन कहता है जबकि उनके दलों के कार्यकर्त्ता किसी प्राकृतिक आपदा में दूर दूर तक दिखाई नहीं देते। 100 वर्ष पूरे होने पर संघ चाहता तो बड़े धूमधाम से शताब्दी के दिन को मनाता लेकिन वो ऐसी धूमधाम से किसी विशेष दिन को मनाने वाले “सैफई” में मिल सकते हैं वह भी सरकारी पैसे से।
संघ भारतीय संस्कृति को आधार मानकर आगे बढ़ रहा है लेकिन उसी संस्कृति को नेहरू जड़ से मिटाना चाहता था क्योंकि कांग्रेस का भारतीय/हिंदू संस्कृति से कोई लगाव था ही नहीं और इसलिए नेहरू, इंदिरा और नरसिम्हा राव के समय में संघ पर 3 बार बैन लगाया गया लेकिन वह अदालत में टिक नहीं पाया। गांधी हत्या के आरोप में नेहरू ने संघ पर सबसे पहले बैन लगाया।
मुझे याद है कई दशक पहले एक बार बाल शाखा में एक प्रचारक बौद्धिक कार्यक्रम के लिए आए थे, उनका नाम शायद सुरेश वाजपेयी था। उन्होंने बाल स्वयंसेवकों को चर्चा का विषय दिया कि संघ को अपने उद्देश्य पूर्ति के लिए क्या करना चाहिए। सबने अपने अपने विचार रखे लेकिन मैंने कहा था कि संघ के हाथ में राजनीतिक शक्ति होनी चाहिए।
राजनीतिक शक्ति की बात उन्होंने टाल दी और कहा संघ राजनीतिक शक्ति के बिना ही अपना कार्य करना चाहता है। लेकिन आप देखिए मेरी बात गलत नहीं निकली। आज संघ से निकले स्वयंसेवकों के हाथ में राजनीतिक शक्ति है जिसका लाभ बेशक संघ सीधे तौर पर नहीं ले रहा लेकिन संघ के देश को परम वैभव की तरफ ले जाने में वह राजनीतिक शक्ति हाथ में लिए लोग ही लगे हैं और पिछले 11 वर्ष में देश को संघ से ही निकले एक स्वयंसेवक ने कहां से कहां पहुंचा दिया।
संघ के लिए और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है। आज इतना ही, बाकी फिर लिखूंगा।
“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्। महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते”
भारत माता की जय!!
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