हिमाचल का तीन महादेवियों का मंदिर, जिसका मुख्य द्वार हमेशा के लिए हो गया बंद: जानें क्यों 400 वर्ष पुराने टारना माता धाम में सामने से नहीं होते हैं दर्शन

             टारना माता मंदिर: जहाँ सामने से नहीं, साइड से होते हैं माता के दर्शन (फोटो साभार: jaidevi.in)
शारदीय नवरात्र हो या चैत्र नवरात्र भक्त मंदिरों में माता के दर्शन करने को लालायित रहते हैं। व्रत रखते हैं। हर मंदिर का अपना अलग महत्व है। जिसे तुष्टिकरण के चलते पाखंडी हिन्दुओं ने कई मंदिरों की महानता को उजागर नहीं होने दिया। ऐसे मंदिरों की एक लम्बी सूची है। 
शारदीय नवरात्रि के समापन में हम आपको हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर (जिसे ‘छोटी काशी’ भी कहते हैं) के एक अनोखे मंदिर के बारे में बता रहे हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहाँ माता रानी के दर्शन सामने से नहीं होते हैं, बल्कि साइड से किए जाते हैं। मंदिर का सामने वाला दरवाजा हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। भक्तों को केवल बगल के दरवाजे से ही दर्शन करने की अनुमति है।

मंदिर निर्माण और दर्शन का तरीका

इस मंदिर का नाम टारना माता मंदिर है, जिसे 16वीं शताब्दी में राजा श्याम सेन ने बनवाया था। मान्यता है कि राजा को एक दिन टारना की पहाड़ी पर तीन कन्याएँ दिखाई दी थीं, लेकिन पास जाने पर वहाँ कोई नहीं मिला। इसके बाद राजा को स्वप्न में माता रानी ने दर्शन दिए और मंदिर बनाने का आदेश दिया।

उस जगह पर जब खुदाई की गई तो वहाँ तीन पिंडी स्वरूपा मूर्तियाँ प्राप्त हुईं, ये मूर्तियाँ थी महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी की। शुरुआत में मंदिर का दरवाजा पिंडियों के ठीक सामने था। लेकिन, जब लोग सामने से दर्शन करते थे, तो कई श्रद्धालु माता के तेज (शक्ति) के कारण बेहोश हो जाते थे।

इसके बाद माता रानी ने राजा को फिर से स्वप्न में दर्शन देकर अपने तेज के बारे में बताया और कहा कि अब सामने का दरवाजा बंद कर बगल से नया दरवाजा बनवाया जाए। तभी से आज तक माता के दर्शन केवल बगल के दरवाजे से ही होते हैं।

                                                  बगल से होते है दर्शन

मंदिर के पुजारी हर्ष शर्मा ने बताया कि तभी से उत्तर दिशा वाले दरवाजे से दर्शन किए जाते हैं और पश्चिमी दिशा वाले दरवाजे को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। खास बात यह है कि माता के शेर की प्रतिमा आज भी बंद दरवाजे के सामने ही है।

‘श्यामाकाली’ नाम की कहानी

कुछ लोगों का मानना है कि राजा श्याम सेन ने सुकेत राज्य के खिलाफ युद्ध पर जाने से पहले इस मंदिर में पूजा की थी। राजा ने अपने अंगूठे से रक्त निकालकर जीत की प्रतिज्ञा ली थी। इसके बाद मंडी और सुकेत राज्यों के बीच बल्हघाटी के लोहारा मैदान में युद्ध हुआ। इस युद्ध में मंडी की सेना ने जीत हासिल की और सुकेत का राजा जीतसेन मैदान छोड़कर भागने लगा, लेकिन मंडी के सैनिकों ने उसे पकड़ लिया।

जब एक सैनिक उसे मारने लगा तो राजा श्याम सेन ने उसे रोक दिया और जीतसेन को छोड़ दिया। युद्ध जीतने के बाद, राजा श्याम सेन ने टारना की पहाड़ियों में माँ श्यामाकाली (टारना माता) का भव्य मंदिर बनवाने का आदेश दिया।

यही वजह है कि टारना माता को श्यामाकाली नाम से भी पूजा जाता है। माता को टारना माता या तारना माता इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि मान्यता है कि वे अपने भक्तों को हर संकट से तार देती हैं (बचाती हैं)।

मंदिर की प्रसिद्धि

टारना माता मंदिर अपनी अनोखी मान्यता और रहस्यमयी परंपरा के कारण मंडी के सभी मंदिरों में सबसे खास माना जाता है। नवरात्रि और शिवरात्रि महोत्सव में यहाँ बहुत भीड़ लगती है। शिवरात्रि के दौरान मंडी के प्रमुख देवता कमरूनाग भी इसी मंदिर में विराजमान होते हैं। इस मंदिर की प्रसिद्धि के कारण राज्यपाल, मुख्यमंत्री और सभी बड़े VIP लोग भी यहाँ माता रानी के दर्शन करने जरूर आते हैं।

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