6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में Justices Aravind Kumar and N.V. Anjaria की पीठ ने सोनम वांगचुक की गिरफ़्तारी के खिलाफ उसकी पत्नी द्वारा दायर Habeas Corpus याचिका पर केंद्र सरकार और लद्दाख प्रशासन को नोटिस जारी कर अगली सुनवाई 14 अक्टूबर के लिए तय कर दी।
दलाल वकीलों की हरकतों को देख लगता है कि अदालतें भी इनकी गुलाम बनी हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट में इतने केस पेन्डिंग पड़े हैं उन पर तारीख पर तारीख दे दी जाती है लेकिन दलाल वकीलों द्वारा दायर केस की फटाफट सुनवाई होने लगती है, क्यों? सुप्रीम कोर्ट को इसका जवाब देना होगा।
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कोर्ट ने वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो से पूछा कि आप पहले हाई कोर्ट क्यों नहीं गए? इस पर कपिल सिब्बल ने कोर्ट से सवाल किया कि हम किस हाई कोर्ट में जाते?
अब 50 साल से कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील सिब्बल को यह भी नहीं पता कि 370 हटने के बाद जम्मू & कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था और दोनों प्रदेश जम्मू & कश्मीर हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में दे दिए गए थे। जाहिर है वांगचुक की पत्नी को पहले जम्मू & कश्मीर हाई कोर्ट ही जाना चाहिए था लेकिन सिब्बल ने ही उसे सलाह दी होगी कि सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दो, वहां वो देख लेगा।
अफ़सोस इस बात का है कि दोनों माननीय न्यायाधीशों ने भी क्या पता नहीं था कि इस केस का jurisdiction जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के पास है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि सिब्बल को देख कर जज भी पिघल जाते हैं।
सिब्बल ने कोर्ट में सवाल उठाया कि संविधान के अनुच्छेद 22 में वांगचुक की गिरफ़्तारी अवैध है क्योंकि गिरफ़्तारी के कारण नहीं बताए गए जबकि सॉलिसिटर जनरल ने स्पष्ट किया कि वे कारण वांगचुक को बता दिए गए थे। अब हर किसी को तो कारण बताना जरूरी नहीं है। वैसे गीतांजलि उसे 8 अक्टूबर को मिली और उसने बताया कि गिरफ़्तारी के आर्डर उसे मिल गए हैं। सिब्बल ने यह भी आरोप लगाया कि वांगचुक को उसके रिश्तेदारों से मिलने नहीं दिया जा रहा। कौन रिश्तेदार को मना किया गया, क्या सारे वामपंथी लाइन में खड़े हो कर उससे मिलने जाएंगे जबकि उसकी गिरफ़्तारी NSA में हुई है?
सिब्बल को यह भी पता होना चाहिए कि NSA के नियम अनुच्छेद 22 से थोड़े भिन्न हैं। NSA के नियम कहते हैं -
Section 8(1) of the NSA mandates the following:
The detaining authority must communicate the grounds for the detention "as soon as may be".
Ordinarily, this communication must happen within five days of the detention.
In exceptional circumstances, and for reasons recorded in writing, this period can be extended to up to 15 days. However, some legal commentaries still cite a 10-day limit.
Power to withhold information
A critical aspect of the NSA is that it does not mandate the full disclosure of all information.
Section 8(2) of the Act specifically allows the authorities to withhold facts that they consider to be against the public interest to disclose.
अब अंतिम बात गीतांजलि अंगमो ने Habeas Corpus writ दायर की है। यह अक्सर तब दायर की जाती है जब हिरासत में लिए गए व्यक्ति के whereabouts के बारे में कोई सूचना उपलब्ध न हो और कोर्ट में उसे पेश करने के अनुरोध किया जाता है। लेकिन वांगचुक के बारे में तो कुछ छुपाया नहीं गया था और उसकी गिरफ़्तारी के तुरंत बाद बता दिया गया था कि उसे जोधपुर जेल में रखा जाएगा। तो फिर Habeas Corpus petition तो अपने आप में infructuous हो जाती है वह भी तब, जब गीतांजलि को वांगचुक से मिलने पर कोई पाबंदी भी नहीं है।
वांगचुक को विदेशी संस्थाओं से फंड मिलना साबित कर रहा है कि सिब्बल और left liberal कबाड़ गिरोह क्यों उसके पीछे लगा है।
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