‘द न्यूज मिनट’ की एडिटर धन्या राजेंद्रन को धर्मस्थल पर प्रोपेगेंडा फैलाने पर जॉर्ज सोरोस समर्थित अवॉर्ड के लिए किया गया नॉमिनेट: ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की भारत से घृणा की कहानी

                                 सोरोस से फंडिंग पाने वाली संस्था ने धन्या को किया अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट
एक समय था जब पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता था। जब हमने पत्रकारिता में कदम रखा तब फिल्म लेखन को Yellow Journalism कहा जाता था, लेकिन आज लगभग सारी पत्रकारिता ही 
Yellow Journalism हो गयी है। सारे खोजी पत्रकार नेताओं के साथ बैठ मालपुए खा रहे हैं। जिस कारण प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक सन्देह के घेरे में हैं। आज अगर सोशल मीडिया नहीं होता जनता सच्चाई के कोसों मील दूर रहकर इन पर विश्वास कर रही होती। 

मुग़ल जब भारत आये थे कोई फौज लेकर नहीं आये थे क्योकि उनकी मदद करने को यहाँ जयचन्द मौजूद थे। आज उसी जयचन्द के वंशज हिन्दू और भारत विरोधी विदेशियों के गुलाम बन अवार्ड ले रहे हैं। सरकार को तत्कालीन सेना प्रमुख बिपिन रावत की बात कि "भारत को एक बॉर्डर नहीं ढाई बॉर्डर पर लड़ाई लड़नी होगी" को याद रखते हुए विदेशी दलालों की भीख पर पलने वालों की जाँच करनी होगी। इस बात को सभी जानते है कि जॉर्ज सोरोस सरकारें गिराने में माहिर है। वह जानता है कि धन के लालच में किस देश में कौन बिक हंगामा कर या करवा सकता/सकती है। 

भारत ने CAA विरोध और तथाकथित किसान आन्दोलनजीवियों का आंदोलन देखा। क्या राजशाही आंदोलन थे। CAA विरोध में तो "गजवा-ए-हिन्द और तथाकथित किसान आन्दोलनजीवियों ने नारे लगाए "मोदी मर जा तू" इन आन्दोलनजीवियों को समर्थन देने वाले विपक्ष ने क्या ऐसे नारों का विरोध किया, नहीं। अगर विरोध करते आन्दोलनजीवियों से हंगामा करवाने के लिए फंडिंग बंद हो जाती। किसी भी विपक्षी नेता ने विरोध करने के लिए माँ का दूध नहीं पिया था।      

दुनिया में लोकतांत्रिक सरकारों के तख्तापलट में शामिल जॉर्ज सोरोस से फंडिंग पाने वाली संस्था ने धन्या राजेंद्रन को अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया है। आपको कर्नाटक के धर्मस्थल मामले में ‘द न्यूज मिनट’ (टीएनएम) की रिपोर्टिंग तो याद ही होगी, किस तरह धर्मस्थल को बदनाम करने के लिए एक के बाद एक कहानियों को ‘द न्यूज मिनट’ ने हवा दी थी। टीएनएम ने इस मामले में तथ्यों को देखने के बजाय धर्मस्थल के बारे में जहर उगला और अब उसे शायद उसका ईनाम भी मिल गया है।

टीएनएम की सह-संस्थापक और प्रधान संपादक धन्या राजेंद्रन को भारत की ओर से रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) इम्पैक्ट प्राइज ऑफ द ईयर 2025 के लिए नामित किया गया है। RSF ने नॉमिनेशन में लिखा है, ‘‘धन्या राजेंद्रन प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक व्यापक लड़ाई में शामिल हो गई हैं, जिस पर भारत सरकार प्रतिबंध लगाने की कोशिश कर रही है।” RSF ने टीएनएम को ‘गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता का मानक’ बताया है।

वो कहते हैं ना कि ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’। वही, हाल RSF और धन्या का है। RSF के नॉमिनेशन को पढ़कर लगता है कि दुनिया में दमन की सबसे बड़ी शिकार धन्या ही है। RSF ने लिखा, “उन्हें और उनकी टीम को उनके काम के कारण बार-बार मुकदमों का सामना करना पड़ा है और ऑनलाइन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है।” जिस संस्थान ने धन्या को अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया है, वो खुद ‘दूध की धुली’ नहीं है। वो खुद जॉर्ज सोरोस से पैसा लेती है, वही सोरोस जो लोकतांत्रिक देशों की सरकारों में हस्तक्षेप करने के लिए कुख्यात है।

कर्नाटक धर्मस्थल को लेकर टीएनएम का प्रोपेगेंडा

जुलाई 2025 में कर्नाटक के धर्मस्थल मंदिर के पूर्व सफाई कर्मचारी सी.एन. चिन्नैया ने इस क्षेत्र में ‘सैकड़ों शवों’ को दफनाने का दावा किया था। सफाई कर्मचारी चिन्नैया ने घटना का वक्त 1995 से 2014 के बीच का बताया। बगैर सबूत के सिर्फ चिन्नैय की गवाही के आधार पर कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ने जाँच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया।

दो हफ्तों तक SIT के अधिकारी शवों की तलाश में जंगलों, नदी के किनारों और घाटों की खाक छानते रहे। लेकिन अंत में सब खाली हाथ रहे। कोर्ट में चिन्नैया ने माना कि उसने झूठ बोला था। चिन्नैया का ‘राज’ खुल गया और पता चला कि वो वास्तव में धर्मस्थल, उसके मंदिर ट्रस्ट और धर्माधिकारी वीरेंद्र हेगड़े को बदनाम करने की साजिश का एक मौहरा भर था।

टीएनएम जैसे प्रोपेगेंडा मीडिया ने इसे हाथों-हाथ लिया और इस विषय पर दर्जनों रिपोर्ट की गईं। टीएनएम ने बेबुनियाद आरोपों की खूब रिपोर्टिंग की और उनका विश्लेषण किया।

टीएनएम का हिंदू विरोधी प्रोपेगेंडा

धर्मस्थल मामले में तो टीएनएम की हिंदू विरोधी सोच उजागर हुई ही थी लेकिन यह कोई इकलौता या पहला मामला नहीं है। टीएनएम लंबे वक्त से हिंदुओं को निशाना बनाता रहा है। ये वही पोर्टल है जिसने सामूहिक दुष्कर्म के एक मामले में मुस्लिम आरोपित के नामों को हिंदू नामों से बदल दिया था। बाद में खुद टीएनएम को सच स्वीकार पड़ा तो उस पर खूब सवाल खड़े हुए। यह पोर्टल हमेशा उन खबरों को प्रमुखता से उठाता है जिनमें निशाना हिंदू संस्थान या समुदाय होते हैं।

टीएनएम की इस प्रवृत्ति की झलक ‘द केरल स्टोरी’ की कवरेज के दौरान भी देखने को मिली। फिल्म में उन महिलाओं की सच्ची गवाही दिखाई गई थी, जिन्हें प्रेम जाल में फँसाकर धर्मांतरण कराया गया और बाद में आईएसआईएस दुल्हनों के रूप में भेज दिया गया। लेकिन ‘द न्यूज मिनट’ ने इन दर्दनाक सच्चाइयों को नजरअंदाज कर फिल्म को ‘दुष्प्रचार’ बता दिया था। यानी जहाँ अपराधियों का संबंध इस्लाम से था वहाँ पीड़िताओं की आवाज को ही खारिज कर दिया गया।

देवभूमि उत्तराखंड में मस्जिदों और मदरसों द्वारा सरकारी जमीनों पर किए गए अवैध कब्जों के कई प्रमाण सामने आए। वन भूमि और यहाँ तक कि तीर्थ मार्गों पर भी मस्जिदें और मदरसे बन जाने के दस्तावेजी सबूत मिले तोड़फोड़ के दौरान राजनीतिक बहसें भी हुईं। लेकिन इन गंभीर खुलासों पर ‘द न्यूज मिनट’ पूरी तरह चुप रहा, न कोई खोजी रिपोर्ट, न कोई संपादकीय प्रतिक्रिया। वहीं, जब किसी हिंदू धार्मिक संस्था पर ऐसा आरोप लगता है, तो TNM तुरंत उसे ‘एक्सक्लूसिव रिपोर्ट’ बना देता है।

इसी तरह, लव जिहाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी TNM की चुप्पी साफ दिखाई देती है। जब यह पोर्टल कभी-कभार इन मामलों पर लिखता भी है, तो उसे ‘दक्षिणपंथी सोच’ या ‘कल्पित प्रचार’ बताकर खारिज कर देता है। यह रवैया उन हजारों महिलाओं के दर्द का अपमान है जो झूठे प्रेम के जाल में फँसकर धर्म परिवर्तन और शोषण की शिकार हुईं।

सोरोस के पैसे से होती हैं RSF की फंडिंग

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (रिपोर्टर्स सेंस फ्रंटियर्स या RSF) इससे पहले प्रोपेगैंडिस्ट यूट्यूबर रवीश कुमार को ‘इंडिपेनडेंस प्राइज’ दे चुका है और मोहम्मद जुबैर जैसे प्रोपगेंडा फैलाने वाले लोगों के समर्थन में खड़ा रहा है। RSF को जॉर्ज सोरोस, भारत विरोधी प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए कुख्यात Ford Foundation सहित पश्चिमी सरकारों और निजी संस्थाओं द्वारा भारी मात्रा में फंड दिया जाता है। RSF खुद भी भारत विरोध के लिए कुख्यात है और इसके प्रेस फ्रीडम इंडेक्स को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं।

SRF को फंड देने वालों में यूरोपीय आयोग MFA, AIDS, Front Line, Oak Foundation, NHRF TAPIEI, MOF Danida Taiwan, NED, Ford Foundation, OSF Core Support (जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन) प्रमुख हैं। NED एक अमेरिकी सरकारी संगठन है, जिसे अक्सर CIA की ‘सॉफ्ट ताकत’ या शांति से सत्ता बदलने वाले हथियार के रूप में जाना जाता है।

RSF (Reporters Without Borders) की भारत पर रिपोर्टिंग उसके राजनीतिक पक्षपात को उजागर करती है। इसके ‘इंडिया फैक्ट फाइल’ में मोदी समर्थकों को ‘भक्त’ कहा गया है, ‘गोदी मीडिया’ का मजाक उड़ाया गया है और प्रधानमंत्री पर ‘प्रेस स्वतंत्रता संकट’ का आरोप लगाया गया है।

RSF की रिपोर्ट्स में इसकी भारत से घृणा भी साफ नजर आती है। मई 2023 में RSF ने अपनी वार्षिक प्रेस स्वतंत्रता रिपोर्ट जारी की, जिसमें उसने भारत को 180 देशों में से 161वें स्थान पर रखा। RSF के अनुसार, 2022 से भारत 11 पायदान नीचे खिसक गया है। दिलचस्प बात यह है कि RSF के अनुसार, पाकिस्तान के प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में सुधार हुआ है। 2022 में 157वें स्थान से पाकिस्तान ने सूची में 150वां स्थान प्राप्त किया है।

RSF का नजरिया समझने के लिए जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF) को देखना होगा, जो Alt News, The Wire, The Quint और Scroll जैसे पोर्टलों को फंड करती है। इसका मकसद स्वतंत्र पत्रकारिता नहीं बल्कि भारत पर वैचारिक नियंत्रण है। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि RSF, जो सोरोस की सोच को मानता है, अक्सर उन पत्रकारों को इनाम देता है जो ‘स्वतंत्रता की बोलने’ को देश-विरोधी काम और ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ को सरकार की आलोचना से जोड़ते हैं।

लोगों ने भी उठाए सवाल

धन्या के नामांकन पर सोशल मीडिया पर भी सवाल उठाए गए हैं। व्यवसायी मोहनदास पई ने X पर एक पोस्ट कर सवाल उठाए हैं। पई ने X पर टीएनएम के एक पोस्ट पर लिखा, “बेहद शर्मनाक। (नामांकन) किसलिए? धर्मस्थल पर फर्जी कहानी गढ़ने के लिए? अति वामपंथी इकोसिस्टम काम कर रहा है!” उन्होंने लिखा, “पहले झूठी कहानी गढ़ो, फिर इकोसिस्टम ऐसे ‘पीत पत्रकारों’ को पुरस्कारों के लिए नामांकित करता है! अगर धन्या में जरा भी ईमानदारी और आत्मसम्मान है, तो धर्मस्थल से जुड़ी फर्जी कहानियों के लिए माफी माँगे।”

धर्मस्थल कांड ने जब दिखाया कि पत्रकारिता के नाम पर झूठ कितनी आसानी से फैलाया जा सकता है। RSF द्वारा धन्या राजेंद्रन का नामांकन इसका उदाहरण है। यह पत्रकारिता की ईमानदारी के लिए नहीं बल्कि विचारधारा के लिए काम करने का इनाम है।

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