हवा हो गए वह दिन जब तुलसी विवाह बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता था, पकवान बनते थे ; अक्टूबर यानि कार्तिक महीने से तुलसी माता के पौधे का रखें ध्यान

सृष्टि रचने वाले परमपिता ने संसार में आने वाले त्यौहार और महीनों का विधि-विधान से निश्चित किया है। किस ऋतू में कौन से फल, सब्जी और पुष्प मानव जीवन के लिए उपयोगी है। वैसे आज हर फल और सब्जी हर महीने में मिल जाती है लेकिन जो स्वाद परमपिता द्वारा निर्धारित महीनो और ऋतु में आएगा अन्य महीनों में नहीं। ठीक उसी प्रकार हर पौधे का भी विधान है।
दीपोत्सव के बाद आने वाली एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परम्परा है। हमारे युवा दिनों में महिलाएं तुलसी विवाह से तीन/चार दिन पहले से तुलसी माता के आगे दीप जलाकर हारमोनियम, ढोलक और मंझीरे बजाकर ऐसे नाच-गाने करती थी मानो किसी पुत्र या पुत्री का विवाह हो। तुलसी विवाह के दिन व्यंजन बनाये जाते थे। लेकिन आज पश्चिमी सभ्यता, मोबाइल और फेसबुक ने इन धार्मिक प्रथाओं को धूमिल कर busy without business बना दिया।     
अक्टूबर का महीना मौसम के बदलाव का समय होता है। बरसात के बाद जब हवा में नमी रहती है और हल्की ठंडक शुरू होती है, तब दिन और रात के तापमान में अंतर बढ़ जाता है। यही उतार-चढ़ाव तुलसी के पौधे के लिए सबसे बड़ी चुनौती होता है। जब तापमान में अचानक बदलाव होता है, तो इसकी पत्तियाँ झुलसने या सूखने लगती हैं। इस समय थोड़ी-सी सावधानी रखकर आप तुलसी को स्वस्थ और हरा-भरा बनाए रख सकते हैं। तुलसी मात्र एक पौधा नहीं एक औषधि भी है। तुलसी में निकलती मंजरी भी एक औषधि है। घर के वातावरण को दूषित होने से बचाती है। आज लोग तुलसी को छतों पर रख अपना कर्तव्य पूरा कर लेते हैं। अगर छत पर रखनी है तो ऐसी दिशा में रखे कि घर के आंगन से दिख सके। आज तो फ्लैट सिस्टम होने घरों में आंगन की प्रथा ही लुप्त हो गयी है। फिर अगर फ्लैट की बालकनी में रखना है तो ऐसे रखें कि घर में इधर-उधर आते-जाते तुलसी माता निगाह में रहे अकेली नहीं रहे।

तुलसी माता ध्यान रखने के लिए निम्न बातों को अपनाना चाहिए:-

धूप और तापमान का ध्यान रखें :-
अक्टूबर में दिन की धूप तेज़ और रातें ठंडी होती हैं। तुलसी को ऐसी जगह रखें जहाँ सुबह की 4-5 घंटे की हल्की धूप मिले, लेकिन दोपहर की सीधी धूप और रात की ठंडी हवा से बचा रहे। ग्रीन नेट या छांव वाली बालकनी में पौधा रखना बेहतर रहेगा।
पानी और नमी का संतुलन बनाए रखें :-
इस मौसम में मिट्टी देर से सूखती है, इसलिए अधिक पानी देने से बचें। हर सुबह मिट्टी की ऊपरी परत को छूकर देखें — अगर सूखी लगे तभी पानी दें। ध्यान रहे, गमले में ड्रेनेज होल ज़रूर हों ताकि पानी जमा न हो, वरना जड़ें सड़ सकती हैं।
मिट्टी की गुड़ाई और प्राकृतिक खाद दें :-
हर 10–15 दिन में मिट्टी की हल्की गुड़ाई करें, इससे पौधे की जड़ों को हवा मिलती है और नई टहनियाँ निकलती हैं। महीने में एक बार गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट या चायपत्ती की खाद डालें — यह तुलसी को आवश्यक पोषक तत्व देता है और सर्दी में मजबूती बनाए रखता है।
कीट और फफूंद से सुरक्षा करें :-
अक्टूबर में तुलसी पर फफूंद या कीट लगने की संभावना बढ़ जाती है। हर 15 दिन में नीम तेल (5ml प्रति 1 लीटर पानी) का स्प्रे करें। यदि पत्तियों पर फफूंद दिखे, तो मिट्टी पर हल्दी या फिटकरी का हल्का छिड़काव करें — यह प्राकृतिक रूप से पौधे को संक्रमण से बचाता है।
पौधे को हरा-भरा बनाए रखें :-
सूखी पत्तियाँ और टहनियाँ समय-समय पर हटा दें, इससे नई पत्तियाँ निकलने में मदद मिलती है। ऊपर की टहनियों की हल्की पिंचिंग करें ताकि तुलसी का पौधा घना और स्वस्थ बने। रात में ठंडी हवा से बचाने के लिए पौधे को दीवार की आड़ या अंदर रख सकते हैं।
निष्कर्ष :-
अक्टूबर तुलसी के लिए बदलाव का महीना है। अगर इस समय उसे सही मात्रा में धूप, पानी और प्राकृतिक खाद दी जाए तो पूरा सर्दियों का मौसम तुलसी हरी-भरी और सुगंधित बनी रहती है। तुलसी न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि घर की हवा को शुद्ध करने वाली एक प्राकृतिक औषधि भी है।

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