बिहार : हार देख राहुल गाँधी ने किया सरेंडर? चुनाव से ठीक पहले सीन से गायब हैं राहुल गाँधी कांग्रेस के ‘पार्ट टाइम’ नेता; फिर चीख-पुकार होगी वोट चोरी हो गया
क्या बिहार में चुनाव राज्य सरकार के लिए हो रहा है या जातिगत सियासत का, जिसमे चुनाव आयोग बेगानी शादी में दीवाना बना हुआ है? एक छोटे राज्य में जातियों के नाम पर कितनी पार्टियां बनी हुई हैं। हर कस्बे का खलीफा नेता बन सौदेबाज़ी कर देशभक्त नज़र आ रहा है। ऐसे सौदेबाज़ न देश का भला कर सकता है, न राज्य का और ना ही अपनी जाति का, बल्कि अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं। दूसरे, मिडिल क्लास वाले नेता बने फिर रहे हैं और उससे ज्यादा शिक्षित लोग कम पढ़े की जी-हजूरी कर शिक्षा को ही बदनाम कर रहे हैं।
खैर, बिहार में चुनावी रंग चढ़ चुका है। 6 नवंबर को पहला फेज वोटिंग होने वाला है और कैंपेनिंग 4 नवंबर तक चलेगी। एक हफ्ता बाकी है, लेकिन महागठबंधन के कैंप में हड़कंप मचा हुआ है। एक तरफ NDA के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रोज रैलियाँ कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ विपक्ष का चेहरा माने जाने वाले राहुल गाँधी सीन से गायब। दो महीने से बिहार नहीं आए, न रैली की, न सड़क पर उतरे। आखिरी दौरा तो 1 सितंबर को हुई थी, जब ‘वोटर अधिकार यात्रा’ खत्म करने पटना आए थे।
प्रधानमंत्री मोदी तो जैसे बिहार को अपना दूसरा घर बना चुके हैं – हर दूसरे दिन रैली, हर रैली में विपक्ष पर जोरदार हमला। इस दौरान राहुल गाँधी पूरी तरह से गायब हो चुके हैं। लेकिन वोटर अधिकार यात्रा के दौरान बिहार के कोने-कोने में घूमने वाले राहुल गाँधी नदारद हैं। चुनाव का बिगुल बज चुका है, पहले चरण का नामांकन तक खत्म हो गया, लेकिन राहुल साहब कहीं नजर नहीं आ रहे। ये सवाल अब सिर्फ बीजेपी वाले नहीं पूछ रहे, कांग्रेस के अपने कार्यकर्ता भी परेशान हैं।
राहुल गाँधी की लंबी अनुपस्थिति: पार्ट-टाइम पॉलिटिक्स या रणनीतिक चुप्पी?
बिहार चुनाव के ठीक बीच में राहुल गाँधी का गायब होना किसी रहस्य फिल्म जैसा लग रहा है। 1 सितंबर के बाद से दो महीने बीत चुके, लेकिन वो बिहार की सरजमीं पर कदम नहीं रखे। न रैली की, न प्रेस कॉन्फ्रेंस, न ही वर्चुअल तरीके से समर्थन दिया। जबकि पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव जैसे नेता तो रोज मैदान में हैं।
कांग्रेस के अंदर भी बेचैनी है। बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी (BPCC) के एक सीनियर पदाधिकारी ने कहा, “राहुल जी ने वोटर अधिकार यात्रा से पार्टी में जान डाली थी, लेकिन अब उनकी अनुपस्थिति महँगी पड़ रही। दिल्ली में इमरती बनाते दिखे, लेकिन बिहार में नहीं।” डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट में भी यही चिंता जताई गई – राहुल की गैरमौजूदगी महागठबंधन की संभावनाओं को प्रभावित कर रही। X पर भी डिबेट छिड़ी हुई है।
हालाँकि AICC जनरल सेक्रेटरी KC वेणुगोपाल ने कहा, “राहुल छठ पूजा के बाद आएँगे। 29 अक्टूबर को मुजफ्फरपुर में तेजस्वी के साथ जॉइंट रैली और प्रियंका 28 को बिहार पहुँचेंगी।” लेकिन ये आखिरी मिनट की बात लगती है। राहुल की अनुपस्थिति पार्ट-टाइम पॉलिटिक्स जैसी हो या स्मार्ट स्ट्रैटेजी। इसका असर तो बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के साथ समझ में आ ही जाएगा।
वोटर अधिकार यात्रा से जोश जगाने के बाद सन्नाटा क्यों?
अब बात उस ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की, जिसने बिहार में हंगामा मचाया था। सितंबर में शुरू हुई ये यात्रा गाँव-गाँव घूमी, राहुल ने EVM पर सवाल उठाए, वोट चोरी का हाइड्रोजन बम फोड़ने की बात की। 1 सितंबर को पटना में राहुल गाँधी को न तो मनचाहा समापन मिल पाया और न ही किसी जनसभा को संबोधित कर पाए।
लेकिन उसके बाद? कुछ नहीं। यात्रा खत्म, राहुल दिल्ली चले गए और बिहार वाले अकेले रह गए। कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता परेशान हैं। यहाँ तकि इंडी गठबंधन के पोस्टरों से उनकी तस्वीर तक गायब कर दी गई।
बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “वोटर अधिकार यात्रा से पार्टी में नई जान आई, लेकिन राहुल की अनुपस्थिति से वो जोश ठंडा पड़ गया।” ये अनुपस्थिति महागठबंधन को नुकसान पहुँचा रही है। कॉन्ग्रेस के नेता राहुल को बुलाने की माँग कर रहे। अब 29 को रैली से शायद जोश लौटे, लेकिन देर हो चुकी। बिहार के लोग कह रहे, “यात्रा तो चली, लेकिन चुनाव लड़ना भूल गए क्या?”
तेजस्वी पर सहमति के बाद कांग्रेस पड़ी ढीली
CM चेहरा तय करने में भी देरी। लालू दबाव डालते रहे, तेजस्वी को नाम दो। कॉन्ग्रेस टालती रही, फिर गहलोत भेजे गए। आखिरकार 23 अक्टूबर को घोषणा की गई कि तेजस्वी यादव ही सीएम पद का चेहरा होंगे, लेकिन इसके बाद से कॉन्ग्रेस पूरी तरह ठंडी पड़ गई। अब 29 अक्टूबर को राहुल-तेजस्वी की जॉइंट रैली है, लेकिन इसका सारा क्रेडिट साफ तौर पर आरजेडी ले जाएगी।
कॉन्ग्रेस उम्मीदवार परेशान हैं। एक कैंडिडेट ने बताया (नाम नहीं लूँगा, लेकिन असल बात है) – “हम पोस्टर लगा रहे हैं, घर-घर जाकर वोट माँग रहे हैं। लोग पूछते हैं, राहुल जी कहाँ हैं? उनका भाषण सुनना चाहते हैं। बिना उनके मंच खाली लगता है।” कई सीटों पर तैयारी आधी-अधूरी ही है।
सियासी जानकार कहते हैं – राहुल की स्टाइल है। भारत जोड़ो यात्रा जैसी मेगा इवेंट करते हैं, फिर ब्रेक। लेकिन चुनाव में ये महँगा पड़ता है। 2020 में बिहार चुनाव में भी कॉन्ग्रेस 70 सीटों पर लड़ी, 19 जीती। इस बार भी वही रास्ता। ऐसे में अगर विपक्षी गठबंधन को हार मिलती है, तो फिर से वही ईवीएम का रोना रोया जाएगा।
राहुल की पार्ट-टाइम पॉलिटिक्स वाली पुरानी बीमारी फिर से जाग गई?
बिहार में कांग्रेस का जोश ठंडा पड़ चुका है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश जगाने के बजाय कांग्रेस नेता राहुल गाँधी दिल्ली में इमरती छानते दिखे। कांग्रेस के अंदर कोहराम मचा हुआ है। उम्मीदवार राज्य के नेताओं पर टिकट के बदले उगाही का आरोप लगा रहे हैं। यहाँ तक कि पप्पू यादव पर भी कई लोगों को टिकट बाँटने का आरोप लग रहा है। ऐसे में राहुल गाँधी हैं कहाँ? पार्टी को एकजुट करने के लिए वे क्या कर रहे हैं? ये सवाल बिहारियों के दिमाग में है।
राहुल गाँधी की विदेश यात्राओं की संख्या लगातार बढ़ती रही है। पिछले नौ महीनों में उन्होंने कम से कम छह विदेश यात्राएँ की हैं, जिनमें टेक्सस, इटली, वियतनाम, दुबई, कतर, मलेशिया और साउथ अमेरिका शामिल हैं। विदेश यात्रा के दौरान उनके कई बयान विवादों में रहते हैं।
उदाहरण के लिए, वर्जीनिया में सिखों के बारे में उनकी टिप्पणी और अमेरिका यात्रा पर उनकी टिप्पणियाँ विवादास्पद रही हैं। विपक्षी नेता होने के नाते उनके विदेश यात्राओं के खर्च और प्रोटोकॉल पर भी सवाल उठते हैं। इसके बावजूद वो चुनाव जैसे अहम मौकों पर गायब हो जाते हैं। सोचिए, बीते कुछ दिनों से वो विदेश नहीं भी गए, तब भी वो बिहार चुनाव में बिल्कुल भी सक्रिय नहीं रहे।
हालाँकि कांग्रेस पार्टी प्रवक्ता लगातार अपनी पार्टी का बचाव करते नजर आए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि राहुल जी का कार्यक्रम तय हो गया है। बिहार में उनकी रैलियों की योजना बनाई जा रही है। हम भीड़ की राजनीति नहीं, बल्कि मुद्दों पर आधारित राजनीति करते हैं।
बीजेपी राहुल गाँधी की अनुपस्थिति को चुनावी मुद्दा बना रही है। बीजेपी प्रवक्ता संजय मयूख ने कहा कि राहुल गाँधी को बिहार के मतदाताओं पर भरोसा नहीं है। इसीलिए वो चुनावी मैदान से गायब हैं। राहुल गाँधी की अनुपस्थिति बिहार में अब चर्चा का विषय बन चुकी है। अब तो कांग्रेसप्रत्याशी और समर्थक भी राहुल गाँधी के इंतजार में है कि वह कब बिहार आकर चुनाव में बिगुल फूँकते हैं.. बाकी सवाल उनके मन में भी है कि कहीं वाकई इस बार देर तो नहीं हो गई?
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