क्या है महर्षि वाल्मीकि को ‘डाकू’ बताने वाली लोककथा, जिसके कारण अंजना ओम कश्यप पर हुई FIR: जानिए कैसे अलग-अलग थे ‘रत्नाकर’ और ‘अग्निशर्मा’

             अंजना ओम कश्यप, महर्षि वाल्मीकि (साभार: Indian Express/X_LudhianaNews)
पंजाब के लुधियाना में इन दिनों एक टीवी डिबेट को लेकर खासी हलचल मची हुई है। मशहूर न्यूज चैनल आज तक की एंकर अंजना ओम कश्यप पर महर्षि वाल्मीकि को लेकर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप लगा है। वाल्मीकि समाज के एक संगठन ने शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस ने एफआईआर ठोक दी।

यह मामला न सिर्फ मीडिया की जिम्मेदारी पर सवाल खड़े कर रहा है, बल्कि सदियों पुरानी एक लोककथा को भी फिर से उछाल रहा है। क्या वाकई महर्षि वाल्मीकि पहले डाकू थे? या यह सिर्फ एक काल्पनिक कहानी है? आइए पहले इस ताजा विवाद को समझते हैं, फिर उस लोककथा की गहराई में उतरते हैं जो आज भी बहस का विषय बनी हुई है।

कैसे शुरू हुआ महर्षि वाल्मीकि को लेकर विवाद

यह मामला 7 अक्टूबर 2025 को शुरू हुआ। अंजना ओम कश्यप अपने पॉपुलर शो ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ में एक डिबेट कर रही थीं। बहस का मुद्दा था पवित्रता और परिवर्तन। एंकर ने उदाहरण के तौर पर महर्षि वाल्मीकि की प्रचलित कहानी का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वाल्मीकि जी का पुराना नाम रत्नाकर था, जो एक डाकू हुआ करते थे। वे लोगों को लूटते थे, लेकिन नारद मुनि से मिलने के बाद उनका जीवन बदल गया।

एक पल की चेतना ने उन्हें राम भक्त बना दिया और वे रामायण के रचयिता बने। अंजना ने इसे सकारात्मक बताया कि कोई भी इंसान बदल सकता है, चाहे वह कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो। लेकिन यह बात वाल्मीकि समाज को चुभ गई। संगठन का कहना है कि महर्षि वाल्मीकि को डाकू बताना उनका अपमान है। वे तो आदिकवि हैं, ब्रह्मा के पौत्र, जिन्होंने रामायण लिखी। इस तरह की बातें समाज की भावनाओं को ठेस पहुँचाती हैं।

यशपाल ने एफआईआर की माँग की, वरना यह राष्ट्रीय स्तर का आंदोलन बन सकता है। संगठन के प्रमुख संयोजक विजय दानव आम आदमी पार्टी के नेता और पंजाब सरकार के दलित विकास बोर्ड के चेयरमैन भी हैं। उन्होंने कहा, “वाल्मीकि जी हमारे भगवान हैं। उनकी कहानी को तोड़-मरोड़कर पेश करना बर्दाश्त नहीं। अंजना ओम कश्यप की तत्काल गिरफ्तारी हो और वे सार्वजनिक माफी माँगें।”

लुधियाना में तो समाज के लोगों ने सड़कों पर उतरकर विरोध जताया। अंजना की फोटो पर जूते-चप्पल फेंके गए, जूतों की माला पहनाई गई। कम से कम 13 दलित और एससी संगठनों ने भी शिकायत की। पुलिस ने कानूनी सलाह के बाद एफआईआर दर्ज की। इसमें भारतीय न्याय संहिता की धारा 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का इरादा) और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(v) (समुदाय के सम्मानित व्यक्ति का अपमान) लगाई गई।

जाँच डीएसपी रैंक के अधिकारी को सौंपी गई है और फाइल पुलिस कमिश्नर के पास भेज दी गई। कमिश्नर स्वापन शर्मा ने कहा, “हमने लीगल ओपिनियन लिया। जाँच चल रही है।”

एफआईआर में अंजना के अलावा ग्रुप चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ अरून पुरी और कंपनी लिविंग मीडिया इंडिया लिमिटेड का नाम भी जोड़ा गया है।

यह विवाद मीडिया फ्रीडम और कम्युनिटी सेंसिटिविटी के बीच की लाइन को धुँधला कर रहा है। एक तरफ अभिव्यक्ति की आजादी, दूसरी तरफ धार्मिक आस्था। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 2022 में एक इसी तरह के केस में एफआईआर रद्द कर दी थी, जहाँ किसी ने वाल्मीकि को डाकू कहा था। कोर्ट ने कहा था कि महापुरुष इंसान से देवता बने, यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। लेकिन यहाँ मामला एससी/एसटी एक्ट का है, तो केस आगे बढ़ रहा है।

कहाँ से आई वो कहानी, जो अंजना ने सुनाई

अब सवाल यह है कि अंजना ने जो कहानी सुनाई, वह कहाँ से आई? यह कोई नई बात नहीं। यह सदियों पुरानी लोककथा है, जो वाल्मीकि जयंती पर हर साल सुनाई जाती है। लेकिन विद्वान कहते हैं कि यह कथा रामायण के मूल ग्रंथ से मेल नहीं खाती। महर्षि वाल्मीकि को डाकू बताने वाली यह कहानी आठवीं शताब्दी के बाद प्रचलित हुई। और इसमें रत्नाकर और अग्निशर्मा जैसे नाम अलग-अलग हैं।

इस लोककथा को विस्तार से समझें, उसके प्रमाण देखें और जानें कि यह कैसे बनी, कैसे फैली। यह कथा न सिर्फ मनोरंजक है, बल्कि हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत की गहराई दिखाती है।

लोककथाओं की दुनिया में वाल्मीकि जी की कहानी सबसे प्रेरणादायक मानी जाती है। रामायण तो हर घर में है – राम-सीता की कथा, रावण वध, लंका दहन। लेकिन इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि के बारे में जो प्रचलित कथा है, वह कहती है कि वे पहले एक क्रूर डाकू थे। उनका नाम रत्नाकर था। जंगल में रहते थे, राहगीरों को लूटते, मारते-काटते। परिवार के लिए यह सब करते। लेकिन एक दिन भगवान की कृपा हुई और वे ऋषि बने।

यह कहानी स्कूलों में पढ़ाई जाती है, टीवी पर दिखाई जाती है, रामलीला में गाई जाती है। लेकिन क्या यह सच्ची है? विद्वान कहते हैं- नहीं, ये सही बात नहीं है। बल्कि यह एक लोकप्रिय कथा है, जो पुराणों में बाद में जोड़ी गई। असली वाल्मीकि तो ब्राह्मण कुल में जन्मे, ब्रह्मा के पौत्र थे। उन्होंने कभी पाप नहीं किया।

रामायण से समझें महर्षि वाल्मीकि के बारे में

सबसे पहले समझिए कि रामायण क्या है। वाल्मीकि रामायण संस्कृत का पहला महाकाव्य है, आदिकाव्य। इसमें सात कांड हैं – बाल, अयोध्या, अरण्य, किष्किंधा, सुंदर, युद्ध और उत्तर। वाल्मीकि ने खुद लिखा कि वे प्रचेता मुनि के दसवें पुत्र हैं। उत्तरकांड में राम दरबार में वे कहते हैं – “हे राम! मैं प्रचेता का पुत्र हूँ। मनसा, कर्मणा, वाचा – कभी पाप नहीं किया। भूतपूर्वं न किल्विषम्।” मतलब, पहले कभी कोई दोष नहीं।
प्रचेता ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। तो वाल्मीकि ब्रह्मा के पौत्र। वे जन्म से ही ज्ञानी, ब्राह्मण। तमसा नदी के तट पर उन्होंने रामायण रची। एक क्रौंच पक्षी को शिकारी मारते देख दुख से ‘मरा’ शब्द निकला, जो संस्कृत में शोक है। ब्रह्मा ने कहा – इसी से काव्य रचो। लेकिन डाकू वाली कथा? रामायण में इसका जिक्र ही नहीं।

कहाँ से आई महर्षि वाल्मीकि के डाकू होने वाली बात?

अब आती है डाकू वाली कथा। यह सबसे ज्यादा ‘स्कंद पुराण’ में मिलती है, जो आठवीं शताब्दी के आसपास लिखा गया। पुराणों में समय-समय पर जोड़तोड़ होती रही। दलित साहित्य के विद्वान ओमप्रकाश वाल्मीकि अपनी किताब ‘सफाई देवता‘ में कहते हैं – यह कथा तार्किक नहीं है। छठी शताब्दी से पहले के किसी ग्रंथ में वाल्मीकि को डाकू नहीं कहा। वे एक क्रांतिकारी ऋषि थे।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने भी माना – वाल्मीकि डाकू नहीं थे। डॉ. मंजुला सहदेव के शोध में भी यही मिला। लीलाधर शर्मा ‘पर्वतीय’ की ‘भारतीय संस्कृति कोष‘ में लिखा – वाल्मीकि के भाई ऋषि भृगु थे। दोनों ज्ञानी। डाकू वाला वाल्मीकि अलग था। कुछ कथाओं में तो अंगुलिमाल (बुद्ध काल का डाकू) को भी वाल्मीकि बता दिया जाता है। कुल मिलाकर देखें तो महर्षि वाल्मीकि से जुड़ी लोक कहानियों में हेरफेर बहुत हुआ है।

महर्षि वाल्मीकि के अग्निशर्मा डाकू होने वाली प्रचलित कहानी कौन सी है?

प्रचलित कथा क्या कहती है? एक वर्जन में वाल्मीकि का नाम अग्निशर्मा था। वे ब्राह्मण थे, लेकिन परिवार का पेट पालने कोशिश में जंगल चले गए। अकाल पड़ा, परिवार भूखा। वहाँ डाकुओं की संगत लगी। अग्निशर्मा लूटने लगे। एक दिन सप्तर्षि गुजरे। उन्होंने रोका। अत्रि मुनि ने पूछा – परिवार के लिए लूटते हो, क्या वे तुम्हारे पाप में साथ देंगे? अग्निशर्मा घर गए। सबने मना कर दिया। अग्निशर्मा टूट गए। वापस ऋषियों के पास पहुँचे।
ऋषियों ने उन्हें ‘राम’ मंत्र दिया। लेकिन अग्निशर्मा उल्टा बोलते थे, तो ‘मरा-मरा’ जपने को कहा। उन्होंने भीषण तपस्या की। इस दौरान दीमकों ने उनका शरीर ढक लिया। इसे संस्कृत में वल्मीक कहते हैं। ऐसे में ऋषियों ने उनका नाम रखा- वाल्मीकि। उन्होंने शिव की भक्ति की और फिर रामायण रची। यह कथा ‘भक्तमाल’ में है, जो 1585 में नाभादास ने लिखी थी। इसमें 200 भक्तों की कहानियाँ हैं।

रत्नाकर डाकू से जुड़ी कहानी भी जाननी जरूरी

दूसरा वर्जन है उनके रत्नाकर नाम को लेकर। जिसमें एक भीलनी ने बचपन में उनका अपहरण कर लिया। वो भील परिवार में पले-बढ़े। यहाँ वो डाकू बने, जिनके नारद मुनि मिले। उन्होंने नारद मुनि को लूटना चाहा। हालाँकि नारद मुनि ने उन्हें राम जप के लिए तैयार किया। लेकिन रत्नाकर अनपढ़ थे। वो राम नहीं बोल पाए। ऐसे में उन्होंने मरा-मरा का जाप किया, जो राम में बदल गया।
आगे की कहानी में फिर से दीमकों का घेरा है। ब्रह्मा जी के प्रसन्न होने की कहानी है और वाल्मीकि नाम पड़ने की। यह कथा रामचरितमानस में तुलसीदास ने छुआ – “उल्टा नाम जपत जग जाना, बाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।” लेकिन तुलसी 16वीं शताब्दी के हैं। मूल रामायण से बहुत बाद। अध्यात्म रामायण, कृतिवास रामायण में भी ऐसी कहानियां हैं। लेकिन ये बाद की हैं। वैशाख नाम के ब्राह्मण की कथा भी मिलती – जिसमें वो पापी बने और फिर तप से वाल्मीकि। श्रीभागवतानंद गुरु की किताब ‘उत्तरकाण्ड प्रसंग एवं संन्यासाधिकार विमर्श‘ में इसकी चर्चा विस्तार से है।
यह कथा कबसे प्रचलित कही जाती है। करीब आठवीं शताब्दी से, जो स्कंद पुराण में विकसित रूप में है। तैत्तिरीय संहिता में वाल्मीकि का जिक्र तीन बार हुआ है, लेकिन कवि के रूप में। महाभारत में भी कवि का ही उल्लेख है। ओमप्रकाश कहते है कि वाल्मीकि नाम तो प्रचलित है, रत्नाकर की कहानी भी, लेकिन डाकू अलग थे।
ये कथा 8वीं सदी के बाद फैली क्योंकि पुराणों में जोड़े गए। रत्नाकर शायद कोई लोक नायक था, जो बाद में वाल्मीकि से जोड़ दिया गया। अग्निशर्मा ब्राह्मण कुल का था, डाकू संगत में फँस गया। दोनों अलग लेकिन कथाएँ मिला दी गईं। आज टीवी पर ये दिखाना आसान है, जो भावनाओं को ठेस पहुँचा सकता है। अंजना का शो इसी कथा पर था, जो एडिट होकर वायरल हुई।
महर्षि वाल्मीकि की पूजा मंदिरों में होती है। देश ही नहीं, विदेशों में भी। पंजाब समेत उत्तर भारत में महर्षि के अनगिनत मंदिर हैं, जहाँ उन्हें पूजा जाता है। बहरहाल, वाल्मीकि जयंती पर ये विवाद और गहरा गया। समाज आंदोलन की तैयारी में है। ये बहस लंबी चलेगी। फिलहाल जाँच चल रही है। अब देखना ये है कि इस पूरे विवाद पर कोर्ट क्या कहता है।

No comments: