प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चार आधार स्तंभों में से एक नारीशक्ति ने बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे अहम भूमिका निभाई है। पीएम मोदी मातृशक्ति को हमेशा अपना सुरक्षा कवच कहते रहे हैं। बिहार की इन्हीं माताओं-बहनों और बेटियों ने पीएम मोदी के आह्वान पर लोकतंत्र के महायज्ञ में अपने वोट की बढ़चढ़ कर आहूति दी। पुरुषों की तुलना में सात प्रतिशत ज्यादा मतदान करके उन्होंने भाजपा-एनडीए का प्रचंड विजय सुनिश्चित करने का मार्ग प्रशस्त किया। यही वजह रही की इस ऐतिहासिक जीत में भाजपा का उम्मीदवारों के मुकाबले विनिंग परसेंटेज अब तक के चुनावों में सबसे ज्यादा रहा। दरअसल, महिलाओं पर पीएम मोदी के भाषण और नारों का जबरदस्त असर हुआ। इसलिए उन्होंने जंगलराज और कट्टा सरकार को चुनने के बजाए सुशासन और समृद्धि की डबल इंजन सरकार को चुना।
मतदान में महिलाओं की लंबी-लंबी कतारों ने भाजपा की जीत सुनिश्चित की
बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं नई पावर बनकर उभरी हैं। चुनाव की असली कहानी अब सिर्फ पार्टियों या जातियों तक सीमित नहीं रही। इस बार बिहार चुनाव में महिला और युवा मतदाताओं ने बड़ी भूमिका निभाई है। उनके बढ़ते प्रभाव ने चुनावी परिदृश्य बदल दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का नतीजा आते ही यह तय हो गया है कि महिलाएं किस कदर भाजपा-एनडीए की जीत की भागीदार बनीं। चुनाव में सबसे बड़ा बदलाव महिला मतदाताओं में देखने को मिला। मतदान के लिए उनकी लंबी-लंबी कतारों ने ही भाजपा की जीत सुनिश्चित कर दी थी। यही कारण है कि अब चुनाव के नतीजे इन्हीं वोटरों के इर्द-गिर्द घूमते दिख रहे हैं।महिलाशक्ति ने आठ प्रतिशत अधिक वोट कर अपना कर्तव्य निभाया
बीते दशकों में बिहार में चुनाव अक्सर जातिगत समीकरणों और पुराने गठबंधनों पर आधारित होते थे, लेकिन 2025 में महिलाओं ने निर्णायक भूमिका निभाई। चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि कई क्षेत्रों में महिला मतदान प्रतिशत पुरुषों के बराबर या उनसे ज्यादा भी रहा है। यही वजह रही कि विधानसभा चुनाव में पुरुष मतदाताओं का मतदान तो करीब 63 प्रतिशत ही रहा। लेकिन महिला मतदाताओं ने उनसे बढ़कर चुनाव के महोत्सव में हिस्सा लिया। इसी के चलते उनका कुल मतदान लगभग 71 प्रतिशत रहा। यानि महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में करीब आठ प्रतिशत ज्यादा मतदान किया।
बीते दशकों में बिहार में चुनाव अक्सर जातिगत समीकरणों और पुराने गठबंधनों पर आधारित होते थे, लेकिन 2025 में महिलाओं ने निर्णायक भूमिका निभाई। चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि कई क्षेत्रों में महिला मतदान प्रतिशत पुरुषों के बराबर या उनसे ज्यादा भी रहा है। यही वजह रही कि विधानसभा चुनाव में पुरुष मतदाताओं का मतदान तो करीब 63 प्रतिशत ही रहा। लेकिन महिला मतदाताओं ने उनसे बढ़कर चुनाव के महोत्सव में हिस्सा लिया। इसी के चलते उनका कुल मतदान लगभग 71 प्रतिशत रहा। यानि महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में करीब आठ प्रतिशत ज्यादा मतदान किया।
मतदान के दोनों ही चरणों में पुरुषों से आगे रहीं महिलाओं
बिहार में छह नवंबर को हुए पहले चरण में कुल 65.08 प्रतिशत मतदान हुआ, जिसमें महिलाओं का प्रतिशत 69.04 और पुरुषों का प्रतिशत 61.56 रहा। यानी महिलाओं का मतदान प्रतिशता ज्यादा रहा। दूसरे चरण में मतदान प्रतिशत बढ़कर 68.76 हो गया, जिसमें महिलाओं का प्रतिशत 74.03 और पुरुषों का प्रतिशत 64.1 रहा। दोनों चरणों के कुल आंकड़े देखें तो महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 71.6 रहा, जबकि पुरुषों का प्रतिशत 62.8 रहा। राज्य के कुल 7,45,26,858 मतदाताओं में से 3,51,45,791 महिला और 3,93,79,366 पुरुष मतदाता थे।
बिहार में छह नवंबर को हुए पहले चरण में कुल 65.08 प्रतिशत मतदान हुआ, जिसमें महिलाओं का प्रतिशत 69.04 और पुरुषों का प्रतिशत 61.56 रहा। यानी महिलाओं का मतदान प्रतिशता ज्यादा रहा। दूसरे चरण में मतदान प्रतिशत बढ़कर 68.76 हो गया, जिसमें महिलाओं का प्रतिशत 74.03 और पुरुषों का प्रतिशत 64.1 रहा। दोनों चरणों के कुल आंकड़े देखें तो महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 71.6 रहा, जबकि पुरुषों का प्रतिशत 62.8 रहा। राज्य के कुल 7,45,26,858 मतदाताओं में से 3,51,45,791 महिला और 3,93,79,366 पुरुष मतदाता थे।
महिलाएं सुरक्षित जीवन और युवा चाहते हैं नए-नए अवसर
महिला और युवा दोनों ही स्थिरता, अवसर और सुरक्षा चाहते हैं। उनके लिए शासन का मतलब सिर्फ प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष लाभ होना चाहिए। यही कारण है कि उन्होंने उस पार्टी को चुना, जो अपने एजेंडे में विकास, कल्याण, सुरक्षा और रोजगार पर जोर दे रही है। यह बदलाव न केवल महिला मतदाताओं की प्राथमिकताओं को दर्शाता है, बल्कि राजनीतिक रणनीतियों को भी भविष्य में नया आकार देने वाला है। भाजपा की तरह अब अन्य दलों को भी विकास और सुशासन की राजनीति पर जोर देना ही होगा।
महिला और युवा दोनों ही स्थिरता, अवसर और सुरक्षा चाहते हैं। उनके लिए शासन का मतलब सिर्फ प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष लाभ होना चाहिए। यही कारण है कि उन्होंने उस पार्टी को चुना, जो अपने एजेंडे में विकास, कल्याण, सुरक्षा और रोजगार पर जोर दे रही है। यह बदलाव न केवल महिला मतदाताओं की प्राथमिकताओं को दर्शाता है, बल्कि राजनीतिक रणनीतियों को भी भविष्य में नया आकार देने वाला है। भाजपा की तरह अब अन्य दलों को भी विकास और सुशासन की राजनीति पर जोर देना ही होगा।
अवलोकन करें:-
महिला और युवा मतदाताओं को अपने अभियान का केंद्र बनाया
इस बार भाजपा और आरजेडी समेत एनडीए के दलों ने महिला और युवा मतदाताओं को अपने अभियान का केंद्र बनाया। सत्तारूढ़ गठबंधन ने महिला कल्याण और छात्रवृत्ति योजनाओं को प्रमुखता दी, जबकि विपक्षी दल युवाओं के रोजगार और पलायन रोकने की बात करते रहे। वहीं उम्मीदवारों की सूची में महिला प्रतिनिधियों की संख्या भी बढ़ी है। सरकारी योजनाओं जैसे मुफ्त साइकिल, छात्रवृत्ति और महिलाओं के लिए खाते में नकद 10 हजार के लाभ ने उन्हें सीधे राजनीतिक प्रक्रिया और एनडीए से जोड़ा है। कह सकते हैं कि अब महिलाएं केवल एक सहायक मतदाता समूह नहीं, बल्कि निर्णायक ताकत बन गई हैं।
इस बार भाजपा और आरजेडी समेत एनडीए के दलों ने महिला और युवा मतदाताओं को अपने अभियान का केंद्र बनाया। सत्तारूढ़ गठबंधन ने महिला कल्याण और छात्रवृत्ति योजनाओं को प्रमुखता दी, जबकि विपक्षी दल युवाओं के रोजगार और पलायन रोकने की बात करते रहे। वहीं उम्मीदवारों की सूची में महिला प्रतिनिधियों की संख्या भी बढ़ी है। सरकारी योजनाओं जैसे मुफ्त साइकिल, छात्रवृत्ति और महिलाओं के लिए खाते में नकद 10 हजार के लाभ ने उन्हें सीधे राजनीतिक प्रक्रिया और एनडीए से जोड़ा है। कह सकते हैं कि अब महिलाएं केवल एक सहायक मतदाता समूह नहीं, बल्कि निर्णायक ताकत बन गई हैं।
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