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बिहार चुनाव : राहुल ने जातीय जनगणना को क्यों बताया फेक या किया सेल्फ गोल या लालटेन की लौ हुई कम? केजरीवाल से गुप्त समझौता दिल्ली चुनाव कांग्रेस के लिए आगे कुआँ पीछे खाई बनने वाला है

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गाँधी शनिवार (18 जनवरी 2025) को एकदिवसीय दौरे पर बिहार की राजधानी पहुँचे। यहाँ उन्होंने एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया और बिहार के महागठबंधन के सबसे बड़े सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के मुखिया लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और उनके बेटे तेजस्वी यादव से मुलाकात की। इस दौरान राहुल गाँधी ने एक कार्यक्रम में कुछ ऐसा बोल दिया कि बिहार की राजनीति का तापमान बढ़ गया।

‘संविधान सुरक्षा सम्मेलन’ में बोलते हुए राहुल गाँधी ने कहा कि बिहार की जातीय जनगणना फेक है और लोगों को बेवकूफ बनाने वाला है। इससे सच्ची स्थिति का आकलन नहीं हो पाया है और ना ही इसका लाभ राज्य के लोगों को मिला है। राहुल गाँधी ने कहा कि वह पूरे देश में जाति गणना कराने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में कानून पास कराएँगे। उन्होंने इसे देश का एक्स-रे और एमआरआइ जैसा बताया।

राहुल गाँधी ने कहा कि इसके आधार पर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक भागीदारी तय की जाएगी। वर्तमान में किसकी कितनी भागीदारी है, इसका आकलन होने के बाद ही देश का सही तरीके से विकास संभव है। उन्होंने आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी देने का समर्थन किया। राहुल गाँधी ने आरक्षण की सीमा को भी 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने की बात कही और कहा कि वे ऐसा जरूर करेंगे।

राहुल गाँधी ने बिहार की जातीय गणना को फेक बताकर बिहार की राजनीति में दबाव बना दिया है। दरअसल, राहुल गाँधी ने पटना में तय कार्यक्रम को उलट दिया। वे पहले बापू सभागार में आयोजित ‘संविधान सुरक्षा सम्मेलन’ में बोलने वाले थे। उसके बाद राजद के नेताओं से मिलने वाले थे, लेकिन एयरपोर्ट से वे सीधे मौर्या होटल पहुँचे और वहाँ राजद के कार्यकारिणी की बैठक के बीच तेजस्वी यादव से काफी देर तक बंद कमरे में बातचीत की। 

हालाँकि, यह मुलाकात और वो भी इतनी जल्दी में करने की क्या वजह थी, इसको लेकर स्पष्ट रूख नहीं है। लेकिन सियासत के बाजार में चर्चा है कि केजरीवाल ने तेजस्वी को बिचौलिया बनाकर कांग्रेस से सौदा किया है। यही रुझान इस बात से मिलता है कि नई दिल्ली विधानसभा में अपने प्रत्याशी संदीप दीक्षित के होने वाली रैली को बीमारी का बहाना बनाकर कैंसिल कर देना। इस गुप्त मीटिंग में दोनों ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। 

हालाँकि, राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि राहुल गाँधी की यह मुलाकात कुछ दिन पहले तेजस्वी यादव द्वारा INDI गठबंधन को लेकर दिए बयान के संदर्भ में थी। दरअसल, बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कुछ दिन पहले कह दिया था कि इस चुनाव में कोई ‘खेला’ नहीं होगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि लोकसभा चुनाव के लिए बने ‘INDI’ गठबंधन का अब अस्तित्व नहीं है। हालाँकि, बिहार में ‘महागठबंधन’ की प्राथमिकता पर उन्होंने बल दिया।

INDI गठबंधन के खत्म होने के लेकर पहले भी बयानबाजी होती रही है। राजद सुप्रीमो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उस बयान का समर्थन कर चुके हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि राहुल गाँधी से INDI गठबंधन नहीं संभल रहा है और वे इसका नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं। तब लालू यादव ने खुलेआम ममता बनर्जी की तरफदारी की थी और कहा था कि उन्हें मौका दिया जाना चाहिए।

ऐसे में राहुल गाँधी की पटना यात्रा के दौरान माना जाता है कि उनकी तेजस्वी यादव के साथ इसी मुद्दे पर लंबी चर्चा हुई। इसमें INDI गठबंधन के अस्तित्व को नकारने और जरूरत पड़ने की गठबंधन का नेतृत्व ममता बनर्जी को देने को लेकर भी चर्चा है। जानकारों का कहना है कि तेजस्वी यादव अपने बयान पर अडिग रहे और उन्होंने राहुल गाँधी को कोई स्पष्ट भरोसा नहीं दिया और पूरा फोकस बिहार विधानसभा चुनाव पर रखने की बात कही।

यह बात राहुल गाँधी को नहीं जँची। वहाँ से निकल राहुल गाँधी संविधान सुरक्षा सम्मेलन में पहुँचे और तेजस्वी यादव के जाति जनगणना के दावे की हवा निकाल दी। राहुल गाँधी ने बिहार की जातीय सर्वे को फेक बता दिया। इस जातीय गणना का पूरा श्रेय लेने की कोशिश तेजस्वी यादव करते रहे हैं। ये कई मौकों पर कह चुके हैं कि उनके दबाव में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में जातीय जनगणना कराई थी।

बिहार की जातीय गणना को फेक बताकर राहुल गाँधी ने एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की है। एक तरफ वो दलित एवं पिछड़ों में ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि नीतीश कुमार और तेजस्वी द्वारा कराया गया जातीय सर्वे में आँकड़े सही नहीं हैं और दूसरा तेजस्वी यादव द्वारा इस गणना का श्रेय लेने की कोशिश पर भी पानी फेर दिया है। वहीं, नीतीश कुमार के हाथ से भी इस मुद्दे को छीन लिया है।

दरअसल, जिस वक्त नीतीश कुमार की जदयू और तेजस्वी का राजद की गठबंधन वाली सरकार ने यह जातीय गणना कराया था, उस सरकार में राहुल गाँधी की कॉन्ग्रेस भी सहयोगी थी। इसके बावजूद उन्होंने इस पर सवाल उठा दिया है। दरअसल, इसके पीछे राहुल गाँधी की कॉन्ग्रेस के कभी समर्पित वोटर रहे दलितों में पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ाने की कोशिश के तौर पर बनाई गई रणनीति भी माना जा रहा है।

ऐसे में अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करके इनके दो प्रमुख नेतृत्वों पर निशाना साध रहे हैं। इनमें पहला निशाना नीतीश कुमार हैं और दूसरा तेजस्वी यादव। एक अन्य कारण अगले कुछ महीनों में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में टिकट बँटवारे को लेकर दबाव बनाने की राजनीति भी है। पिछले कुछ समय से मीडिया में लगातार खबर आ रही है कि कॉन्ग्रेस बिहार चुनाव में उसे अधिक सीटें देने का दबाव बना रही है।

शायद INDI गठबंधन को नकार कर तेजस्वी यादव यही संदेश देने की कोशिश कर रहे थे कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का कोई सहयोगी नहीं, लेकिन बिहार में वहीं उसकी नैया पार कराने वाली पार्टी है। इसलिए जो सीटें दी जा रही हैं वे उसे स्वीकार कर लें। हालाँकि, राहुल गाँधी ने अपने बयान में तेजस्वी यादव के मुख्य मुद्दे पर प्रहार करके उन्हें राजनीति के मैदान में शस्त्रविहीन कर दिया है। कांग्रेस को अपना दबदबा बनाने के लिए दिल्ली चुनाव है। अगर कांग्रेस 10 सीट भी निकाल लेती है, उससे केजरीवाल की हवा तो निकलेगी ही, कांग्रेस भी अपना जनाधार बनाने में सफल होगी। अन्यथा जिसकी केजरीवाल पार्टी साफ लफ्जों में कांग्रेस के लिए कह रही है न 3 में न 13 में वाली बात सच साबित हो जाएगी। अगर केजरीवाल से गुप्त समझौता किया तो दिल्ली चुनाव कांग्रेस के लिए आगे कुआँ पीछे खाई बन जायेगा।    

तेजस्वी ने जातीय गणना को ही बिहार चुनावों में मुख्य मुद्दे के रूप में पेश करने की बात कही थी। तेजस्वी यादव नेे कहा था, “हमने विकास के साथ-साथ जाति आधारित गणना कराई और आरक्षण की सीमा भी बढ़ाई। हमने जो कहा, वह किया।” दरअसल, जल्दबाजी में पिछली सरकार ने बिहार में आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया था, जिस पर पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है।

बिहार में जातीय गणना की बात राहुल गाँधी ने बहुत सोच-समझ कर की है। उन्हें पता है कि बिहार में चुनाव का मुख्य केंद्र जाति ही होती है। जातीय गोलबंदी के आधार पर ही यहाँ टिकट के बँटवारे से लेकर गठबंधन तक की राजनीति होती है। ऐसे में तेजस्वी यादव पर एक तरह महागठबंधन को सम्मानजनक तरीके से बनाए नैतिक भार डाल दिया है।