रामपुर में आजम खान ने इस मुद्दे के सहारे पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, मोदी जी की फौज के लोगों को जो ट्रेनिंग दी गई है। उस पर अमल शुरू कर दिया गया है. मैं पूछना चाहता हूं कि इन लोगों ने जो बहादुरी 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में दिखाई थी। वही मर्दानगी उस समय दिखाई होती, जिस समय बाबर मस्जिद बनवा रहा था तो मस्जिद बनती ही नहीं। आजम खान कहा, सवाल सिर्फ इतना है कि ये मर्दानगी उस वक्त कहां थी जो आज दिखा रहे हैं।
आजम खान ने कहा, अयोध्या में क्या बना देना चाहिए उसका सवाल ही नहीं है। मैं पूछता हूं कि ये बहादुरी कहां थी। सिर्फ एक बात बता दें कि उस समय कहां गए थे सारे राजा महाराजा आजम खान ने अपनी बात को शायराना अंदाज देते हुए कहा, बात उठेगी तो दूर तलक जाएगी. जानना चाहूंगा कि ये बहादुरी कहां गई थी.
आज़म खान किसी भी तरह विवाद को जीवित रख अपनी रोजी-रोटी का प्रबन्ध नहीं, हलवा-पूरी और मालपुए खाने के लिए वास्तविकता को नज़रअंदाज़ कर, उल्टे-सीधे बयान दे कर देश को भ्रमित के रहे हैं।
बल्कि आज़म खान को इस विवाद को समाप्त करने के आगे आकर यह माँग करनी चाहिए कि "खुदाई में मिले अवशेषों को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किए जाएँ, और इन अवशेषों को छुपाने वालों को कठोर दण्ड दिया जाए। क्योकि इनके इस दुष्काम से न जाने कितने बेगुनाहों की जानें चली गयीं। उसके दोषी ये ही लोग हैं। ये लोग माफ़ी के काबिल नहीं। चाहे वह व्यक्ति जितने भी उच्च पद पर हो। वातानुकूलित घरों में बैठे इन्हीं लोगों के कारण हिन्दुओं के आराध्य देव श्रीराम टेन्ट में विराजमान हैं।"
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आज़म खान किसी भी तरह विवाद को जीवित रख अपनी रोजी-रोटी का प्रबन्ध नहीं, हलवा-पूरी और मालपुए खाने के लिए वास्तविकता को नज़रअंदाज़ कर, उल्टे-सीधे बयान दे कर देश को भ्रमित के रहे हैं।
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मुगलवाद को जिस तरह भारत में ज़िंदा रखा जा रहा है और वोट के भूखे नेता कट्टरपंथियों के आगे शीश झुकाते हैं, विश्व में भारत को एक मजाक बना दिया है, विश्व इन करतूतों की वजह से हम पर हँसता है। मक्का जिसे इस्लाम का तीर्थ कहा जाता है, भारत में मुगलों के हिमायती जवाब दें कि मक्का में बानी बिलाल मस्जिद कहाँ है? जहाँ सजदा किए बिना हज पूरा नहीं होता था। किसी माई के लाल में हिम्मत है, सऊदी सरकार के विरुद्ध एक लब्ज़ निकाल सकें। भारत में मुगलों के लिए विधवा-विलाप करने वाले सऊदी सरकार के विरुद्ध मुँह खोलने का अर्थ भलीभाँति जानते है कि कहीं हमारे हज के जाने पर वहाँ की सरकार प्रतिबन्ध न लगा दे। भारत में ही कह सकते हैं "हमारा सिर सिर्फ अल्लाह के आगे झुकता है, किसी और के आगे नहीं", अब कोई इनसे पूछे सऊदी सरकार के विरुद्ध क्यों नहीं ? सऊदी सरकार के आगे झुक गया न सिर, इससे बड़ा प्रमाण और क्या चाहिए?
सभी लोग ये जानते हैं कि आजम खान और अमर सिंह एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते. पिछले दिनों राज्यसभा सदस्य अमर सिंह की शिकायत पर पुलिस ने आजम खान के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. अमर ने आजम पर आरोप लगाया है कि सपा नेता ने कथित तौर पर उनकी बेटियों पर तेजाब फेंकने की धमकी दी थी. पुलिस ने बताया कि गोमती नगर थाने में बुधवार को प्राथमिकी दर्ज की गई. अमर ने बताया, ‘‘मैंने अपनी बेटियों पर तेजाब फेंकने की धमकी दिए जाने के मामले में आजम खान के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए गोमती नगर पुलिस थाने में प्रार्थना-पत्र दिया था.’
1853: पहली बार इस स्थल के पास सांप्रदायिक दंगे हुए.
1885: इस विवादित मामले की गहराई में जाए तो पता चलता है कि यह अभी का झगड़ा नहीं है बल्कि 1885 से चला आ रहा है। कुछ हिंदू संगठन के दस्तावेजों पर नजर डाली जाए तो उससे पता चलता है कि बाबर ने मंदिर तोड़ कर इस विवादित स्थल पर मस्जिद बनवाई थी। लेकिन इतिहास कुछ और ही कहता है। जिसके तहत बाबर कभी अयोध्या गया ही नहीं। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान 1885 में महंत रघुवीर दास ने फैजाबाद न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि जन्म स्थान एक चबूतरा जो मस्जिद से अलग उसके सामने है जिसकी लंबाई पूर्व-पश्चिम इक्कीस फिट और चैड़ाई उत्तर दक्षिण सतरह फीट है। महंत स्वयं व हिंदू इसकी पूजा करते हैं। इस दावे में यह भी कहा गया था कि यह चबूतर चारों ओर से खुला है। सर्दी गर्मी और बरसात में पूजा करने वालों को कठिनाई होती है। इस लिए इस पर मंदिर बनाने की अनुमति दी जाए। सरकार ने मंदिर बनाने से रोक दिया है। इस लिए न्यायालय सरकार को आदेश दे कि वह मंदिर बनाने दे। प्राप्त आंकड़ों के आधार पर 24 दिसंबर 1885 को फैजाबाद के सब जज पं. हरिकृष्ण ने महंत रघुवीरदास की अपील यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि मस्जिद के सामने मंदिर की इजाजत देने से हिंदू-मुसलमान के बीच झगड़े और खून खराबे की बुनियाद पड़ जाएगी। फैसले में यह भी कहा गया था कि मंदिर मस्जिद के बीच एक दीवार है जो दोनों पूजा स्थलों को एक दूसरे से अलग साबित करती है। मंदिर और मस्जिद के बीच यह दीवार 1857 से पहले बनाई गई थी। फैजाबाद के सब जज पं. हरि कृष्ण के फैसले के खिलाफ राम जन्म स्थान के महंत रघुवीर दास ने फैजाबाद के जिला जज कर्नल जे आर्य के यहां अपील की जिसका मुआयना करने के बाद इसे 16 मार्च 1886 को खारिज दिया गया। जिला जज के इस फैसले के खिलाफ महंत रघुवीर दास ने ज्यूडीशिनल कमिश्नर जिसके पास पूरे अवध के लिए हाईकोर्ट के समान अधिकार थे, ने भी अपने फैसले के जरिए इस अपील को एक नवंबर 1886 को खारिज कर दिया।
इस फैसले के बाद बाबरी मस्जिद में नमाज पढ़ी जाती रही, राम जन्म स्थान चबूतरों पर हिन्दू पूजा अर्चना करते रहे। हिंदू-मुस्लिम के बीच कभी कोई विवाद नहीं हुआ। सन 1934 में गो-वध को लेकर अयोध्या में एक दंगा हुआ, जिसमें बाबरी मस्जिद की एक दीवार को छति पहुंची। जिसे सरकार ने अपने खर्चे से बनवा दिया। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। कहा तो यह जाता है कि आजाद मिलने के बाद कांग्रेस ने राजनीतिक फायदा उठाने के लिए (इस समय देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू थे) बाबरी मस्जिद पर कब्जा करने की योजना बनाई, 22/23 दिसंबर 1949 की रात्रि कुछ शरारती लोगों ने बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रख दी। जिसकी सूचना संबंधित थाने के कांस्टेबल माता प्रसाद ने थाना इंचार्ज राम दुबे को दी। राम दुबे ने एक नामदर्ज एफ आई आर की जिसमें कहा गया कि मुल्जिमान रामास, राम शुक्ल दास सुदर्शन दास व पचास साठ आदमी अज्ञात ने बलवा करके मस्जिद में मूर्तियां रख कर उसे नापाक किया। मुल्जिमान को ड्यूटी पर लगे लोगों और दूसरे आदमियों ने देखा। जिससे मुदकमा तैयार किया गया जो सही है। थाना इंचार्ज राम दुबे की एफ आई आर की बुनियाद पर मार्कण्डे सिंह एडीशनल सिटी मजिस्ट्रेट ने 29 दिसंबर 1949 को धारा 145 के तहत बाबरी मस्जिद कुर्क कर दी। इसके बाद बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि के तमाम मुकदमों को यकजा कर दावा नंबर 12, 1261 हाईकोर्ट लखनऊ के हवले कर दिया गया।
1859: ब्रितानी शासकों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी.
1949: वैसे तो राम मंदिर बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक़ का मामला तो सौ बरस से भी अधिक पुराना है. लेकिन यह अदालत पहुँचा 1949 में. यह विवाद 23 दिसंबर 1949 को शुरू हुआ जब सवेरे बाबरी मस्जिद का दरवाज़ा खोलने पर पाया गया कि उसके भीतर हिंदुओं के आराध्य देव राम के बाल रूप की मूर्ति रखी थी. इस जगह हिंदुओं के आराध्य राम की जन्मभूमि होने का दावा करने वाले हिंदू कट्टरपंथियों ने कहा था कि “रामलला यहाँ प्रकट हुए हैं.” लेकिन मुसलमानों का आरोप है कि रात में किसी ने चुपचाप बाबरी मस्जिद में घुसकर ये मूर्ति वहां रख दी थी.
9 अगस्त 1991 को भारतीय संसद में पेश की गई जानकारी के अनुसार फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन ज़िलाधिकारी केके नैयर ने घटना की जो रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी थी उसमें लिखा था, “रात में जब मस्जिद में कोई नहीं था तब कुछ हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद में घुसकर वहाँ एक मूर्ति रख दी.”
16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैज़ाबाद की ज़िला अदालत में अर्ज़ी दी कि हिंदुओं को उनके भगवान के दर्शन और पूजा का अधिकार दिया जाए. मुकदमा संख्या 2 /1950 दर्ज करवाकर अनुरोध किया कि गर्भगृह में रखी मूर्तियां न हटाने और पूजा व दर्शन की अनुमति मांगी। उसी दिन इसका अस्थायी आदेश दिया गया।
पूजा शुरू- 19 जनवरी 1950 को फ़ैजाबाद के सिविल जज ने इन दोनों अर्ज़ियों पर एक साथ सुनवाई की और मूर्तियां हटाने की कोशिशों पर रोक लगाने के साथ साथ इन मूर्तियों के रखरखाव और हिंदुओं को बंद दरवाज़े के बाहर से ही इन मूर्तियों के दर्शन करने की इजाज़त दे दी.
साथ ही, अदालत ने मुसलमानों पर पाबंदी लगा दी कि वे इस ‘विवादित मस्जिद’ के तीन सौ मीटर के दायरे में न आएँ.
दिगंबर अखाड़ा के महंत और राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष परमहंस रामचंद्र दास (अब दिवंगत) ने भी ऐसी ही एक अर्ज़ी दी.
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the real story of ram temple issue no indian media ever show it 1 |
1961: इन तीनों मुकदमों के लंबित रहने के कारण 1961 तक नहीं हो सका तो मूर्तियां रखने की तारीख से 12 साल के अन्दर मुसलमानों की ओर से एक दावा मालिकाना हक और कब्जा वापसी के बाबत 18 दिसम्बर, 1961 को दाखिल किया गया।
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Proof of temple found at Babri Masjid land alleged by archaeologist KK Muhammed |
Subsequently, the
case was not taken up until 1983, when the Vishwa Hindu Parishad launched its temple movement in a big way.
case was not taken up until 1983, when the Vishwa Hindu Parishad launched its temple movement in a big way.
1984: कुछ हिंदुओं ने विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में भगवान राम के जन्म स्थल को “मुक्त” करने और वहाँ राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया. बाद में इस अभियान का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संभाल लिया.
2003, found proof of a temple in Ayodhya. This is no propaganda, this is no falsehood, these are facts of an independent body and historical proofs have been found during the excavations. |
Judge KM Pandey observed, “After having heard the parties, it is clear that the members of the other community — namely Muslims– are not going to be affected by any stretch of imagination if the locks of the gates were opened and idols inside the premises are allowed to be seen and worshipped by the pilgrims and devotees.”
His observation, “heavens will not fall if the locks of the gates are removed”, however, fell flat as the order sparked off nationwide rioting and communal violence.
पहली फरवरी, 1986 के इस आदेश को मोहम्मद हाशिम अंसारी की ओर एक रिट पिटीशन दायर करके चुनौती दी गई जिसमें 3 फरवरी, 1986 ई. को हाईकोर्ट ने विवादित भवन में कोई बदलाव न करते हुए यथास्थिति बनाए रखने के आदेश जारी कर दिए।
The Sunni Waqf Board and Babri Masjid Action Committee moved the Allahabad High Court against the district judge’s order. However, the order was not stayed. Meanwhile, all cases pertaining to the Ayodhya dispute were referred to the Lucknow bench of the court.
11 नवंबर 1986 को विश्व हिंदू परिषद ने विवादित मस्जिद के पास की ज़मीन पर गड्ढे खोदकर शिला पूजन किया.
The Wall Street Journal/Court Files Excavation work at the Babri Masjid site. |
इस अर्ज़ी पर विचार चल ही रहा था कि 1989 में अयोध्या की ज़िला अदालत में एक याचिका दायर कर मांग की गई कि विवादित मस्जिद को मंदिर घोषित किया जाए.
10 जुलाई 1989 उच्च न्यायालय ने पाँचों मुक़दमों को साथ जोड़कर तीन जजों की एक बेंच को सौंप दिया. तीन जजों की एक बेंच 21 साल (1989-2010) से सुनवाई कर रही थी. इस बीच कई जज रिटायर हो गए या उनके तबादले हो गए.
1989: विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज़ किया और विवादित स्थल के नज़दीक राम मंदिर की नींव रखी. 10 नवंबर 1989 को अयोध्या में मंदिर का शिलान्यास हुआ लेकिन अगले ही दिन फ़ैज़ाबाद के ज़िलाधीश ने आगे निर्माण पर रोक लगा दी.
1989-91: Meanwhile, a ‘shilaniyas’ (laying of foundation stone) for the proposed temple in 1989 gave the whole issue a hype and the police firing ordered on violent karsevaks by the Mulayam Singh government in 1990 polarised votes in favour of the BJP, forging Kalyan Singh to power in 1991. Kalyan ordered acquisition of 2.75 acres of land around the mosque in his bid to show his party’s seriousness towards building the temple.
However, BMAC convenor Zafaryab Jilani promptly moved yet another writ to prevent any kind of construction on the acquired land.
Meanwhile, Aslam Bhure moved the Supreme Court against the acquisition. But the apex court transferred the case to high court here directing for maintenance of status quo until the high court decided the five writs that were by then pending there.
1990- Advani’s Rath Yatra: Chariot of fire
- 1986 May: Becomes chief of the BJP
- 1989 June: Drafts the Palampur resolution, aligning the BJP with VHP’s Ram temple agitation.
- December: Allies with JD for LS polls. Lends outside support to the V.P. Singh government, as does the Left.
- 1990 September 25: Launches rath yatra from Somnath for temple construction.
- October 23: Yatra is stopped at Samastipur, Bihar; withdraws support to VP government.
- 1992 December: Babri Masjid demolished by kar sevaks on Dec 6. Advani prime accused.
Advani’s phenomenal rath yatra changed the course of the BJP.
It was in September 1990 when BJP president L.K. Advani decided to go for a padyatra to educate the people about the Ayodhya movement. This had been the BJP’s main election plank during the 1989 elections. However, when the late Pramod Mahajan heard about this, he pointed out that Advani would make slow progress on foot. “A jeep yatra, then ?” asked Advani. It was then that Mahajan suggested that they take a mini-bus and redesign it as a rath.
And that is how Advani embarked on his first Toyota rath yatra, catalysing a chain of events that resulted in the demolition of the Babri Masjid two years later. He took off from Somnath in Gujarat and worked his way to Ayodhya via central India. The idea of a chariot worked as a great mobiliser. Hindutva supporters rang temple bells, beat thalis and shouted slogans to welcome the rath. Some smeared the rath with a tilak and smeared the dust from its wheels on their forehead.
As expected, there was a communal backlash as riots broke out in Gujarat, Karnataka, Uttar Pradesh and Andhra. Advani was arrested in Samastipur on October 23 by then chief minister Lalu Prasad Yadav before he could reach the kar seva at Ayodhya on October 30. Although in his autobiography, My Country My Life, Advani calls this rath yatra, “an exhilarating period in my political life”, it was much more than that.
It whipped up a strong Hindu fervour and increased the party’s votebank from 85 in 1989 to 120 in the 1991 general elections. It also launched Advani’s career as the Eternal Yatri as he undertook four other rath yatras. However, the rath yatra also hung the albatross of Hindutva round the BJP’s neck, an accessory that the BJP and Advani alternately embrace and at times try hard to shrug off.
The main event: The Mandal report
The crisis, the likes of which has rarely engulfed the nation with such overwhelming intensity and rage,was of his own making and,as it mounted with increasing ferocity, PM V.P. Singh found himself facing it almost alone. The very people who had pushed him into taking the controversial decision were nowhere to be seen. Having taken the big bite from the forbidden apple of the Mandal Commission, Singh found himself unable to swallow it or to spit it out. Even as he found himself paralysed in grappling with the consequences of the hasty decision he had made, his government watched in stunned horror as city after city exploded in violent anti-Mandal agitations.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिवस पर सोमनाथ गुजरात से 25 सितम्बर 1990 से शुरू हुई रथयात्रा को 30 अक्टूबर तक अयोध्या में ख़त्म होना था. आडवाणी को 23अक्टूबर को समस्तीपुर बिहार में ग़िरफ़्तार कर लिया गया।
1990: विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को कुछ नुक़सान पहुँचाया. तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने वार्ता के ज़रिए विवाद सुलझाने के प्रयास किए मगर अगले वर्ष वार्ताएँ विफल हो गईं.
1990 में देश के पूर्व प्रधान मंत्री चंद्र शेखर ने इस विवाद का हल निकालना चाहा उन्होंने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और विश्व हिंदू परिषद को आमने सामने बैठा दिया। दोनों के बीच सरकार ने भैरोसिंह शेखावत और शरद पवार को नियुक्त किया। बातचीत के कई दौर चले आखिर में यह तय हुआ कि दोनों पक्ष अपने-अपने कागज और सबूत पेश करें, बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने तो दस्तावेज पेश किए लेकिन विश्व हिन्दू परिषद ने दस्तावेज नहीं पेश किए। क्योंकि उस दिन राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों में एक विवादित भ्रमित विज्ञापन/समाचार प्रकाशित हुआ था। इस पर अधिक प्रकाश शरद पवार और डॉ सुब्रमण्यम स्वामी डाल सकते हैं।
30 अक्टूबर 1992: the fifth Dharma Sansad met in Keshavpuram New Delhi and decided to start the Kara Save on 6th December, 1992
On the morning of 8th December, 1992 the Central Government took over the complete Shri Rama Janmabhoomi Parisar area under its control. The pooja for Ram Lala did continue.
अंत में 6 दिसंबर 1992 को केन्द्र में कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार के रहते कार सेवा के दौरान मस्जिद को ढहा दिया गया। पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे हुए। विदेशों में भी इस घटना की निंदा हुई। जिसके दबाव में आकर केन्द्र में स्थापित कोंग्रेस सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने 26 जनवरी 1993 को लाल किले से घोषणा की कि वह उसी स्थान पर पुनः मस्जिद का निर्माण कराएंगे।
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