पशुपतिनाथ मंदिर क्यों नहीं गए राहुल?

गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष ने जो हिन्दू नाम का चोला ओढ़ा है, आज तक नहीं उतारा।कभी शिव भक्त बन रहे हैं, तो कभी राम भक्त। हैरानी की बात यह है कि जो राहुल गाँधी मन्दिर जाने वालों को आरोपित करते नहीं थकते थे, आज कुर्सी की खातिर मन्दिर मन्दिर के चक्कर काट रहे हैं, अब इसे पाखण्ड नहीं कहा जाए, तो क्या नाम दिया जाए। दूसरे यह कि पहले राहुल तो क्या कांग्रेस को हिन्दुत्व की बात करने पर साम्प्रदायिकता नज़र आती थी। इतना ही नहीं, कोर्ट में लंबित अयोध्या में राममन्दिर मुद्दे पर पुरातत्व विभाग के तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक डॉ के.के.मोहम्मद के अनुसार खुदाई में मन्दिर के बहुत प्रमाण मिले थे, लेकिन कांग्रेस के सहयोग से वामपंथी इतिहासकारों ने सारे प्रमाण छुपाकर केवल एक ही खम्बा दिखाकर कोर्ट को धोखा दिया। यदि आज भी कोर्ट के समक्ष खुदाई में मिले सारे प्रमाण प्रस्तुत कर दिए जाएं, दुनियाँ की ताकत अयोध्या में मस्जिद नहीं राममन्दिर बनने से कोई नहीं रोक सकता।परन्तु कांग्रेस में विराजमान समस्त हिन्दू कुछ नहीं बोलते, विपरीत इसके मन्दिर मन्दिर जाने के विवाद पर राहुल के पक्ष में खड़े हो रहे हैं। 
अब इनके कैलाश मानसरोवर यात्रा पर भी विवाद होना स्वाभाविक है। जाने क्या हैं वह कारण:-  
राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर की यात्रा से लौट आए, लेकिन इसके साथ ही उनकी यात्रा को लेकर विवाद एक बार फिर से खड़ा हो गया है। सिर्फ 10 दिन में यात्रा पूरी करके लौटने वाले वो हिंदुस्तान के शायद पहले शख्स होंगे। यह शक जताया जा रहा है कि संभवत: उन्हें चीनी सेना ने अपने हेलीकॉप्टर या गाड़ी पर बिठाकर कैलाश यात्रा करवाई। राहुल सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए कुछ देर वहां रुके होंगे और फिर वापस लौट आए। कैलाश मानसरोवर जाने वाले तमाम लोगों का भी यही कहना है कि अगर कोई चलकर वहां जाता है तो इतनी जल्दी लौट ही नहीं सकता। इतना ही नहीं लौटते ही वो भारत बंद में पदयात्रा नहीं कर सकता। जो सबसे बड़ा सबूत है वो ये कि कैलाश मानसरोवर जाने वालों को चेहरे पर सनबर्न हो जाते हैं। लोगों के चेहरे बिल्कुल काले या फिर लाल हो जाते हैं। जबकि राहुल गांधी के चेहरे पर ऐसे कोई निशान नहीं हैं।

21 दिन की यात्रा 10 दिन में कैसे?

पवित्र कैलाश पर्वत तक पहुंचने के लिए भारत से दो रास्ते हैं। पहला रास्ता उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से होते हुए है जिसमें लोगों को चलना पड़ता है। इस मार्ग से यात्रा की अवधि 24 दिनों की होती है। दूसरा मार्ग सिक्किम के नाथूला दर्रे से होकर जाता है। इसमें ट्रेकिंग नहीं करनी होती है पूरी यात्रा वाहन से होती है। इसमें 21 दिन लगते हैं। मोदी सरकार आने के बाद ये रास्ता खोला गया है। राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा 31 अगस्त के दिल्ली से शुरु हुई थी। शुरुआत से ही अजीबोगरीब बातें सामने आने लगीं। सबसे पहले पता चला कि राहुल चाहते थे कि चीन के राजदूत उन्हें दिल्ली के वीआईपी लाउंज में एक आधिकारिक क्रार्यक्रम के तहत विदा करें। इस पर चीनी दूतावास ने विदेश मंत्रालय को चिट्ठी भेजकर इजाज़त मांगी। विदेश मंत्रालय ने ये कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि राहुल गांधी न तो किसी संवैधानिक पद पर हैं, न ही किसी ऐसे पद पर कभी रहे हैं। वैसे भी वो दिल्ली से चीन नहीं, बल्कि नेपाल रवाना हुए थे।

राहुल का नेपाल जाना भी एक पहेली

कैलाश जाने के लिए राहुल गांधी नेपाल क्यों गए? ये भी एक रहस्य है। अगर उन्हें नाथूला दर्रे से कैलाश जाना था तो उन्हें बागडोगरा एयरपोर्ट जाना चाहिए था। लेकिन वो नेपाल चले गए। इस यात्रा में वो अकेले नहीं थे रिपोर्ट्स के मुताबिक राहुल गांधी के साथ उनके कुछ खास दोस्त और सलाहकार भी थे। उनके दोस्तों में अमिताभ बच्चन के भाई अजिताभ बच्चन के बेटे भीम बच्चन भी उनके साथ थे। मतलब साफ है कि ये कोई धार्मिक यात्रा नहीं बल्कि मौजमस्ती और सैर-सपाटे वाला टूर था। नेपाल जाने की दो वजहें थीं। पहला ये कि वो काठमांडू का लुत्फ भी उठाना चाहते थे साथ ही राहुल को ये सुझाव दिया गया था कि कैलाश मानसरोवर से पहले अगर पशुपतिनाथ मंदिर में दर्शन हो जाए तो एक पंथ दो काज हो जाएगा। सच्चा शिवभक्त साबित करने में कांग्रेस प्रवक्ताओं को एक ठोस सबूत मिल जाएगा। लेकिन सवाल ये है कि ये कैसा शिवभक्त है जो काठमांडू तो गया लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर नहीं गया? ये भला कैसे हो सकता है कि कोई शिवभक्त काठमांडू एयरपोर्ट तक पहुंच जाए लेकिन बगल में पशुपतिनाथ मंदिर न जाए?

पशुपतिनाथ मंदिर क्यों नहीं गए राहुल?

दरअसल राहुल गांधी अपने दोस्तों के साथ 31 अगस्त को दोपहर एक बजे काठमांडू पहुंचे। फिर वहां उन्होंने पशुपतिनाथ मंदिर जाने की इच्छा जताई। उनके साथ गए लोगों ने काठमांडू के कुछ पुराने नेताओं से बात की। वो 1 तारीख की सुबह पशुपतिनाथ मंदिर जाना चाहते थे। लेकिन जब ये प्रस्ताव आया तो पशुपतिनाथ मंदिर के मैनेजमेंट ने इस विषय पर एक मीटिंग बुलाई, जिसमें ये तय करना था कि राहुल गांधी को हिंदू माना जाए या नहीं। पशुपतिनाथ मंदिर के गर्भगृह में सिर्फ हिंदू ही जा सकते हैं। मंदिर प्रबंधन ने वही फैसला लिया जो 1985 में सोनिया गांधी के लिए लिया था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी के रुप में सोनिया काठमांडू गई थी लेकिन इसके बावजूद उन्हें मंदिर में घुसने नहीं दिया गया था। इसी तरह इस बार भी राहुल गांधी के हिंदू होने पर मंदिर प्रबंधन को भऱोसा नहीं था इसलिए राहुल गांधी को मना कर दिया गया।

राहुल की गतिविधियां भी थीं संदिग्ध

राहुल गांधी देश के बड़े नेता हैं। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं। जब वो नेपाल के लिए रवाना हुए तो चीनी राजदूत से औपचारिक विदाई चाहते थे लेकिन जब वो अपने दोस्तों के साथ काठमांडू पहुंचे तो न ही उन्होंने काठमांडू में मौजूद भारतीय उच्चायोग से संपर्क किया न ही विदेश मंत्रालय को कोई खबर दी। काठमांडू पहुचने के बाद राहुल की मित्र मंडली वहां होटल ढूंढने में जुट गई। जब इसका पता उच्चायोग के अधिकारियों को चला तो उन्होंने मदद की और सुरक्षा मुहैय्या कराया। लेकिन, शाम होते ही वो फिर काठमांडू में मौजमस्ती के लिए निकल पड़े। वूडू रेस्तरां में डिनर किया जहां ये विवाद खड़ा हो गया कि उन्होंने चिकन और सुअर का मांस खाया। राहुल के मांसाहार की खबर भारतीय मीडिया ने नहीं, बल्कि नेपाली मीडिया ने दी थी।

मानसरोवर के बजाय ल्हासा क्यों गए?

पशुपतिनाथ मंदिर में एंट्री नहीं मिलने के बाद राहुल अगले दिन अपने दोस्तों के साथ काठमांडू से तिब्बत के ल्हासा रवाना हो गए। उन्होंने दोपहर 12:10 बजे वाली एयर चाइना 408 की फ्लाइट पकड़ी। सवाल ये है कि वो ल्हासा क्यों गए? ये तो मानसरोवर का रास्ते में पड़ता नहीं है। दरअसल ये शहर तो मानसरोवर के ठीक उल्टी दिशा में हैं। राहुल गांधी ल्हासा इसलिए गये क्योंकि मौजमस्ती करने वालो और अमीरों के लिए मानसरोवर का रास्ता ल्हासा से गुजरता है। राहुल गांधी ल्हासा में 2-3 दिन रुके। आराम किया। तिब्बत के पठारी वातावरण में खुद को ढाला और फिर ल्हासा से फ्लाइट के जरिए न्गोरा शहर पहुंचे। तिबब्त का ये शहर मानसरोवर और कैलाश के सबसे करीब है। ये शहर कैलाश से करीब 190 किलोमीटर दूर है लेकिन दोनों को चायनीज नेशनल हाइवे नंबर 219 जोड़ता है। यानि काठमांडू से ल्हासा फिर ल्हासा से न्गारो और वहां से गाड़ी पर बैठ कर मानसरोवर और फिर कैलाश पर्वत तक पहुंचे।

34 घंटे पदयात्रा का झूठ बोला गया!

राहुल गांधी की तरफ से कांग्रेस पार्टी ने ट्वीट करके बताया कि उन्होंने लगातार 34 किलोमीटर तक पैदल रास्ता तय किया। इस दौरान वो घोड़े पर भी बैठ सकते थे, लेकिन नहीं बैठे। लेकिन सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक यह पूरी तरह गलत है। कई ट्रेकर्स ने भी लिखा है कि बेहद कम ऑक्सीजन वाले उस इलाके में 34 किलोमीटर तक इतने कम समय में लगातार चलना एक तरह से नामुमकिन होता है। बीच-बीच में रुककर आराम करना जरूरी होता है। लेकिन खुद को फिट साबित करने के लिए राहुल गांधी ने यह झूठ बताया कि वो 34 किलोमीटर चले। वैसे भी अगर को इतना पैदल चले तो उसे सनबर्न (ऊंचे पहाड़ों पर तेज़ धूप के कारण त्वचा जलना) होना तय था। जो लोग भी कैलाश से लौटते हैं वो काफी काले हो जाते हैं। गोरे लोगों का भी चेहरा बिल्कुल लाल या कत्थई हो जाता है। लेकिन राहुल गांधी को देखकर ऐसा नहीं लगता कि उन्हें कोई सनबर्न हुआ। इसी बात से शक होता है कि वो कार से कैलाश तक पहुंचे होंगे। साथ ही कैलाश यात्रा से आने वाले बिल्कुल फिट व्यक्ति को भी 2-4 दिन आराम करना ही पड़ता है। लेकिन राहुल गांधी अगले ही दिन जिस फुर्ती से भारत बंद कराने निकल पड़े वो बात भी कई लोगों को हजम नहीं हुई।

चीन सरकार के मेहमान बने थे राहुल

कैलाश मानसरोवर कैसी तीर्थयात्रा है इसके बारे में वो लोग बता सकते हैं जो पहाड़ पर मीलों पैदल चल कर मानसरोवर पहुंचते हैं? इस तरह से कैलाश अगर जाना हो तो दो दिन में वहां पहुंचा जा सकता है। लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को ये बताना चाहिए कि उन्होंने नेपाल में क्या क्या किया? ल्हासा में कितने दिन रहे और किस-किस से मिले? मानसरोवर की यात्रा के दौरान चीन की सरकार और एजेंसी से क्या क्या मदद ली? क्योंकि जिस तरह से चीनी राजदूत की तरफ से सरकार को चिट्ठी दी गई उससे तो यही लगता है कि नेपाल से ल्हासा पहुंचने के बाद राहुल की खातिरदारी चीनी सरकार की तरफ से की गई होगी। राहुल गांधी और उनके दोस्तों को तीर्थयात्रा और सैर-सपाटे का फर्क समझ में नहीं आया। यही वजह है कि कैलाश पहुंचते ही तस्वीरें शेयर करने लगे। वीडियो भी अपलोड कर दिया। कैलाश मानसरोवर तक पहुंचने वाला हर हिन्दू वहां पर थोड़ी-पूजा पाठ और स्नान जरूर करता है। अब तक की तस्वीरों से ऐसा कोई लक्षण नहीं दिखता कि राहुल गांधी ने कैलाश पर्वत की तरफ मुंह करके एक बार श्रद्धा से नमस्कार भी किया होगा।
अवलोकन करें:--
इतना ही नहीं, जिस हिन्दू शब्द में कांग्रेस और इसकी समर्थक पार्टियों को साम्प्रदायिकता नज़र आती थी, मन्दिर जाने वालों पर टिप्पणियां की जाती थी, आज वही राहुल गाँधी कुर्सी की खातिर एक मन्दिर से दूसरे मन्दिर माथा टेकने जा रहे हैं। दूसरे, मुस्लिम वंश( दादा फ़िरोज़ गाँधी, एक मुस्लिम) पैदा हुआ. हिन्दू कैसे बन सकता है; इस्लाम में तो टीका लगाने और मन्दिरों में पूजा करना पर पाबन्दी है, तो क्या उनका यह सब ड्रामा मात्र किस्सा कुर्सी का नहीं है?
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वैसे मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में लिखा है पदयात्रा ही तीर्थ यात्रा है।
ऐश्वर्य लोभान्मोहाद् वागच्छेद यानेन यो नरः।
निष्फलं तस्य तत्तीर्थ तस्माद्यान विवर्जयेत्। (मत्स्य पुराण)
तीर्थयात्रा में वाहन/यान वर्जित है क्योंकि ऐश्वर्य के गर्व से, मोह से या लोभ से जो यान पर बैठकर तीर्थयात्रा करता है, उसकी तीर्थ यात्रा निष्फल हो जाती है। राहुल गांधी ने अपनी तीर्थयात्रा के बारे में सच बोला या झूठ बोला आने वाले समय में उनको मिलने वाले भगवान महादेव के आशीर्वाद से खुद ही स्पष्ट हो जाएगा।

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