
पीएम मोदी ने कहा 'सुप्रीम कोर्ट के बड़े-बड़े वकीलों को कांग्रेस राज्यसभा में भेजने लगी है. बीजेपी के पास अभी राज्यसभा में बहुमत नहीं है. लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस गंदा खेल खेल रही है. सुप्रीम कोर्ट के वकील राम मंदिर के मामले में दबाव डालते हैं. वे कहते हैं कि 2019 तक इस केस पर फैसला मत दो. इस तरह दबाव बनाने की राजनीति चल रही है.' राज्यसभा में कांग्रेस के एक वकील सांसद फैसला सुनाने वाले जजों को डराते और धमकाते हैं। कांग्रेस के लोग यह कह कर मामले को लटकाते रहे कि 2019 में बीजेपी फायदा उठाने की फिराक में है और अब वो केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हैं। आखिर कांग्रेस दोहरी बातें क्यों कर रही है।
उन्होंने कहा 'आज राज्यसभा के सदस्य बड़े वकील सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग लाकर डराने की कोशिश करते हैं. संवेदनशील मुद्दों को सुनने से रोकने का पाप कर रहे हैं. ये लोग देश की न्यायपालिका को बंधक बनाने की कोशिश कर रहे हैं. देश इसके लिए इन्हें कभी माफ नहीं करेगा. लेकिन हम न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए काम करेंगे. हम इनके काले मंसूबों को लोकतंत्र के मंदिर में कभी पूरा नहीं होने देंगे.'
उन्होंने कहा 'कांग्रेस पार्टी इतनी नीचे गिरती जा रही है कि उन्होंने राजनीति के संस्कार छोड़ दिए हैं, शिष्टाचार भूल गए हैं और चुनाव में विकास के मुद्दों पर बहस करने के लिए वे अपनी हिम्मत भी खो चुके हैं. कांग्रेस के पास चुनाव का मुद्दा नहीं हैं तो वो अब मोदी की जात पूछ रही है. कांग्रेस जातिवाद का जहर फैलाने से बाज नहीं आ रही है, कांग्रेस पार्टी जातिवाद के जहर में डूबी हुई है. दलितों और पिछड़ों के प्रति नफरत का भाव कांग्रेस की रगों में भरा पड़ा है.'
इस बीच धर्म महासभा में बोलते हुए स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि 11 दिसंबर के बाद राम मंदिर के मामले में बड़ा फैसला होगा। उन्होंने कहा कि एक बड़े मंत्री ने इस संबंध में भरोसा दिया है। इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि आचार संहिता की वजह से फैसला रुका है। एक ऐसा फैसला होगा जिसके बाद राम मंदिर बन कर ही रहेगा। उन्होंने कहा कि अब और समय नहीं दिया जा सकता है। लाखों-करोड़ों हिंदुओं की भावना का ख्याल करते हुए इस विषय पर अब तत्काल किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने की आवश्यकता है।
उद्धव ने ट्रेेनों में भरकर महाराष्ट्र से शिवसैनिकों को लेकर अयोध्या पहुंचाया. ऐसे में लोगों के जेहन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. सवाल है कि जिस राम मंदिर के मुद्दे को बीजेपी उठाती रही है, उसे अचानक शिवसेना क्यों उठा रही है? उत्तर भारतीयों की खिलाफत करके राजनीति चमकाने वाले उद्धव ठाकरे शिवसेना के हजारों कार्यकर्ताओं के साथ अचानक उत्तर प्रदेश क्यों आ गए हैं. एनडीए का घटक दल होने के बावजूद शिवसेना आखिर क्यों बीजेपी शासित राज्य में आकर शक्ति प्रदर्शन कर रही है. इस पूरे घटनाक्रम के पीछे क्या वजह है? इन सारे सवालों का जवाब हम समझने की कोशिश करते हैं.
महाराष्ट्र में CM की कुर्सी पर उद्धव की नजर
शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे जमीनी नेता थे, जबकि उनके बेटे उद्धव ठाकरे को पार्टी विरासत में मिली है. राजनीति के जानकार मानते हैं कि जनता के बीच बाल ठाकरे की तरह उद्धव की स्वीकार्यता नहीं है. पिता के शागिर्द रहे उद्धव इस बात को बखूबी समझते हैं. उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना किस तरह कमजोर हो रही है इसकी बानगी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पिछले कुछ चुनाव परिणामों में नजर आती है. रामजन्म भूमि आंदोलन के बाद महाराष्ट्र में 1995 में पहला चुनाव हुआ था. इसमें शिवसेना को सबसे ज्यादा 73 और बीजेपी को 65 सीटें मिली थीं. 1999 के चुनाव में शिवसेना को 69 और बीजेपी को 56 सीटें मिली थीं. 2004 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना को 62 और बीजेपी को 54 सीटें मिली थीं.
बीजेपी की दुखती रग पर हाथ डाल रही है शिवसेना
एक बात यह भी है कि केंद्र और राज्य में सरकार की सहयोगी होने के बाद भी शिवसेना लगातार बीजेपी पर हमले करती आ रही है. इसके बावजूद बीजेपी उसे खास तवज्जो नहीं दे रही है. इस वक्त अयोध्या के मेयर से लेकर प्रधानमंत्री के पद तक बीजेपी सत्ता में है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर अयोध्या में राम मंदिर क्यों नहीं बन रहा है. कुल मिलाकर विपक्षी नेता से लेकर आम जनता तक अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे पर बीजेपी से सवाल पूछ रही है. शिवसेना समझ चुकी है कि राम मंदिर बीजेपी की दुखती रग है, इसलिए वह इसी मुद्दे को कुरेद रही है, ताकि इसके जरिए वह आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सीट शेयरिंग में बीजेपी पर दबाव बना सके.
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