J&K में पैलेट गन पर लगे रोक, खत्म हो AFSPA : 50 यूरोपिय संसद की मोदी से अपील

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क्या ये पत्थरबाज लड़कियाँ रहम के काबिल हैं?
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
यूरोपीय संसद के 50 सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की है कि जम्मू कश्मीर में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक लगे और सुरक्षाबल विशेष अधिकार अधिनियम (आफ्स्पा) और जन सुरक्षा कानून (पीएसए) जैसे कानूनों को खत्म किया जाए। 
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विश्व का कौन-सा मानवाधिकार इस
देश-विरोधी गतिविधियों की
इजाजत देता है? 
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पत्थरबाजों के समर्थक
बतायें "क्या यह हरकत
माफ़ी के काबिल है?"
मेंबर्स ऑफ द यूरोपियन पार्लियामेंट (एमईपीएस) ने 25 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में कहा, 'हम यूरोपीय संसद के निर्वाचित सदस्य की अपनी क्षमता में आपसे पूर्व और वर्तमान में कश्मीर के लोगों के मानवाधिकार उल्लंघन, जैसा कि ओएचसीएचआर1 की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है, के खिलाफ गहरी चिंता व्यक्त करते हैं'  सदस्यों ने शोपियां जिले में पैलेट गन की पीड़ित 19 माह की हिबा निसार का उल्लेख किया जो पिछले साल नवंबर में घायल हो गई थी। 
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ये पत्थरबाज हाथ में पत्थर अपने  सिर 
पर मारने के लिए हुए है या 
सुरक्षाकर्मियों पर मारने के लिए? 
फिर इस आधार पर इन पर 
दया दिखाई जाए, बल्कि ऐसे 
लोग किसी आतंकवादी से
कम नहीं। 
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क्या इन लड़कियों को
स्कूल में पत्थरबाज़ी
सिखाई जाती है?
पत्र में कहा गया, 'हम खासतौर पर 19 माह की बच्ची के दुखद मामले का जिक्र करना चाहेंगे जो पैलेट गन की चोट से बुरी तरह घायल हो गई थी (बीबीसी रिपोर्ट)। सशस्त्र बल (जम्मू-कश्मीर) विशेष अधिकार अधिनियम 1990 (आफ्स्पा) और जम्मू कश्मीर लप सुरक्षा कानून 1978 (पीएसए) सुरक्षा बलों को किसी भी तरह के मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ एक तरह से प्रतिरक्षा देते हैं'
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यूरोपीय सांसदों को सुरक्षाकर्मियों पर
होते हमले क्यों नहीं दिखाई देते?
Image result for कश्मीरी पत्थरबाजसदस्यों ने मांग की कि पैलेट गन का इस्तेमाल तत्काल बंद किया जाना चाहिए और सभी प्रासंगिक भारतीय कानूनों को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुपालन के अनुरूप लाना चाहिए। 
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इस जख्मी सुरक्षाकर्मी के
पक्ष कोई बोलने का
साहस करेगा?
Image result for कश्मीरी पत्थरबाजऐसे में प्रश्न उत्पन्न होता है कि "क्या कश्मीर में आतंकियों को नंगा नाच करने दिया जाए? बेगुनाहों को मरने दिया जाए? सुरक्षाकर्मियों को पत्थर खाने दिया जाए?" आदि अनेकों प्रश्न हैं, जिन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखने से पूर्व इन सदस्यों और मानवाधिकार की दुहाई देने वालों को सोंचना था, जो इन तुष्टिकरण पुजारियों ने नहीं किया, ये उनकी छोटी सोंच और कुंठित मानसिकता का प्रमाण है। ये सब उस समय भी खामोश रहे जब घाटी से कश्मीरी पंडितों को खदेड़ा जा रहा था, उनकी महिलाओं का बलात्कार किया जा रहा था। उस समय ये सब किस खोली में छिपे बैठे थे? मानवाधिकार और अन्य लोग एकतरफा खेल खेलना बंद करें। आतंकवादियों और उनके समर्थकों पर हमदर्दी बंद करनी होगी। विपरीत इसके इनकों यह कहना था कि जो भी आतंकवादियों के समर्थन सामने आए, उसे भी आतंकवादी समझा जाए।   

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