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| क्या ये पत्थरबाज लड़कियाँ रहम के काबिल हैं? |
यूरोपीय संसद के 50 सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की है कि जम्मू कश्मीर में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक लगे और सुरक्षाबल विशेष अधिकार अधिनियम (आफ्स्पा) और जन सुरक्षा कानून (पीएसए) जैसे कानूनों को खत्म किया जाए।
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| विश्व का कौन-सा मानवाधिकार इस देश-विरोधी गतिविधियों की इजाजत देता है? |
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| पत्थरबाजों के समर्थक बतायें "क्या यह हरकत माफ़ी के काबिल है?" |
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| ये पत्थरबाज हाथ में पत्थर अपने सिर पर मारने के लिए हुए है या सुरक्षाकर्मियों पर मारने के लिए? फिर इस आधार पर इन पर दया दिखाई जाए, बल्कि ऐसे लोग किसी आतंकवादी से कम नहीं। |
| क्या इन लड़कियों को स्कूल में पत्थरबाज़ी सिखाई जाती है? |
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| यूरोपीय सांसदों को सुरक्षाकर्मियों पर होते हमले क्यों नहीं दिखाई देते? |
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| इस जख्मी सुरक्षाकर्मी के पक्ष कोई बोलने का साहस करेगा? |
ऐसे में प्रश्न उत्पन्न होता है कि "क्या कश्मीर में आतंकियों को नंगा नाच करने दिया जाए? बेगुनाहों को मरने दिया जाए? सुरक्षाकर्मियों को पत्थर खाने दिया जाए?" आदि अनेकों प्रश्न हैं, जिन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखने से पूर्व इन सदस्यों और मानवाधिकार की दुहाई देने वालों को सोंचना था, जो इन तुष्टिकरण पुजारियों ने नहीं किया, ये उनकी छोटी सोंच और कुंठित मानसिकता का प्रमाण है। ये सब उस समय भी खामोश रहे जब घाटी से कश्मीरी पंडितों को खदेड़ा जा रहा था, उनकी महिलाओं का बलात्कार किया जा रहा था। उस समय ये सब किस खोली में छिपे बैठे थे? मानवाधिकार और अन्य लोग एकतरफा खेल खेलना बंद करें। आतंकवादियों और उनके समर्थकों पर हमदर्दी बंद करनी होगी। विपरीत इसके इनकों यह कहना था कि जो भी आतंकवादियों के समर्थन सामने आए, उसे भी आतंकवादी समझा जाए। 





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