सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर हुई है। भारत में हर नागरिक को आवाज उठानी चाहिए, वैसे भी अभी लगभग आधी संसद के लिए मतदान होना शेष है। पीछे-पीछे नगर निगम तो किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं। लोकसभा चुनावों के चलते ही देखिए किस तरह दल-बदलू इधर-उधर भाग रहे हैं, क्यों? जनता सेवा के लिए नहीं, बल्कि केवल अपना और अपने परिवार का भविष्य उज्जवल करने के लिए। व्यापार रूप धारण कर चुकी राजनीती को भी बदलने की उस तरह जरुरी है, जिस तरह देश से आतंकवाद समाप्त करना जरुरी है। लाखों रूपए खर्च कर पंचायत से लेकर संसद तक जाने के लिए कोई ऐसे ही नहीं लुटाता। एक के दस बनाने के लिए खर्च करता है, क्योकि उसे मालूम है कि बस एक बार निर्वाचित हो गए, चाँदी ही चाँदी नहीं, बल्कि सोना ही सोना है। एक बार सदस्य बन गए कम से कम एक पीढ़ी के खाने का प्रबन्ध।
![]() |
सभी कार्टून साभार |
अभी कल(अप्रैल 26) को ही प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव खर्च कम करने की बात कही, लेकिन समाजसेवा के नाम पर मेवा खाने और तिजोरियाँ भरने वालों पर चुप्पी साधे रहे। प्रधानमन्त्री के एक आव्हान पर देश के हज़ारों नागरिकों ने गैस सब्सिडी लेनी बंद कर दी, फिर इसी तरह का आव्हान सांसदों और अन्य सदनों में निर्वाचित सदस्यों से मुफ्त मिल रही सुविधाओं को वापस लेने का भी होना चाहिए। लेकिन लगता है ऐसे आव्हान करने के लिए 56X10 सीना चाहिए। यदि पेंशन आदि बंद हो गयी, सरकारी खजाने में हर महीने करोड़ों की बचत होगी, बजट का घाटा भी लगभग शून्य भी आ सकता है।
2018 का सुधार अधिनियम
सांसदों को पेंशन नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि राजनीति कोई नौकरी या रोजगार नही है बल्कि एक निःशुल्क सेवा है।
राजनीति लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत एक चुनाव है, इसकी पुनर्निर्माण पर कोई सेवानिवृत्ति नहीं है, लेकिन उन्हें फिर से उसी स्थिति में फिर से चुना जा सकता है। (वर्तमान में उन्हें पेंशन मिलती है सेवा के 5 साल होने पर)। इसमें एक और बड़ी गड़बड़ी यह है कि अगर कोई व्यक्ति पहले पार्षद रहा हो, फिर विधायक बन जाए और फिर सांसद बन जाए तो उसे एक नहीं, बल्कि तीन-तीन पेंशनें मिलती हैं। यह देश के नागरिकों साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है जो तुरंत बंद होना चाहिए।
यदि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी पुनः वापसी करते हैं या गठबन्धन सत्ता में आता है, तो पेंशन की इस सुविधा को तुरन्त बंद कर देनी चाहिए। जिससे प्रति माह सरकार को करोड़ों की बचत होगी और यही बचत देश के विकास में और तेजी से आगे बढ़ाएगी, बजट में होने वाले वित्तीय घाटे को भी बहुत कम या दूसरे अर्थों में कहा जाए लगभग न्यूनतम पर रहा सकता है।
केंद्रीय वेतन आयोग के साथ संसद सदस्यों सांसदो का वेतन भत्ता संशोधित किया जाना चाहिए और इनको इनकम टैक्स के दायरे में लाया जाए। (वर्तमान में वे स्वयं के लिए मतदान करके मनमाने ढंग से अपने वेतन व भत्ते बढा लेते हैं और उस समय सभी दलों के सुर एक हो जाते हैं।
सांसदों को अपनी वर्तमान स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली त्यागनी चाहिए और भारतीय जन-स्वास्थ्य के समान स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में भाग लेना चाहिए। इलाज विदेश में नही भारत मे होना चाहिए, इनका अगर विदेश में करवाना है तो अपने खर्च से करवाएँ।
मुफ्त छूट जैसे: बिजली, पानी, फोन बिल जैसी सभी रियायत समाप्त होनी चाहिए। (वे न केवल ऐसी बहुत सी रियायतें प्राप्त करते हैं बल्कि वे नियमित रूप से इसे बढ़ाते भी रहे हैं)
अपराधी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोका जाए, संदिग्ध व्यक्तियों के साथ दंडित रिकॉर्ड, अपराधिक आरोप और दृढ़ संकल्प, अतीत या वर्तमान को संसद से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए,
कार्यालय में राजनेताओं के कारण होने वाली वित्तीय हानि, उनके परिवारों, नामांकित व्यक्तियों, संपत्तियों से वसूल की जानी चाहिए।
सांसदों को भी सामान्य भारतीय लोगों पर लागू सभी कानूनों का समान रूप से पालन करना चाहिए। - नागरिकों द्वारा एलपीजी गैस सब्सिडी का कोई समर्पण नहीं जब तक सांसदों और विधायकों को उपलब्ध सब्सिडी, संसद कैंटीन में सब्सिडी वाले भोजन, सहित अन्य रियायतें वापस नहीं ले ली जाती।
संसद में सेवा करना एक सम्मान है, लूटपाट के लिए एक आकर्षक करियर नहीं।
फ्री रेल और हवाई जहाज की यात्रा की सुविधा बंद हो। आम आदमी क्यो उठाये इनकी मौज मस्ती का खर्च
क्या आपको नहीं लगता कि यह मुद्दा उठाने का सही समय है ?
विस्तार से देखिये एक निर्वाचित सदस्य टैक्स भुगतान करने वालों का कितना बड़ा भाग हड़प जाते हैं:-

इसके ऊपर मिलते हैं इतने भत्ते
सैलरी के ऊपर मिलने वाले भत्तों की तो इसकी लिस्ट बहुत लंबी है। इसमें डायरेक्ट एरियर (सालाना) : 3 लाख 80 हजार रु, हवाई सफर भत्ता (सालाना) : 4 लाख 8 हजार रु, रेल सफर भत्ता (सालाना) : 5 हजार रु, पानी भत्ता (सालाना) : 4 हजार रुपए रु, बिजली भत्ता (सालाना) : 4 लाख रु जैसे कई भत्ते शामिल हैं। एक सांसद को सैलरी के अलावा करीब 1 लाख 51 हजार 833 रुपए प्रतिमाह यानी 18 लाख 22 हजार रुपए सालाना भत्ता दिया जाता है। तो कितनी हुई कुल सैलरी
- फिक्स्ड सैलरी और भत्ते को जोड़ें तो एक सांसद एक महीने में 2,91,833 रुपए वेतन पाता है। यानी देश को एक सांसद सालाना 35 लाख रुपए का पड़ता है।


सबसे खास बात ये है कि इनकी सैलरी पर कोई टैक्स नहीं मिलता। वहीं इन्हें मिलने वाले भत्ते कई तरह के होते हैं, जिनमें कई सुविधाएं इनके परिवार के लोगों के लिए भी होती हैं। इसमें वाइफ या पार्टनर के लिए 34 फ्री हवाई सफर, अनलिमिटेड ट्रेन का सफर और संसद सत्र के दौरान घर से दिल्ली तक सालाना 8 हवाई सफर भी शामिल हैं।
भत्ते में जुड़ी हैं ये चीजें
बात करें भत्ते में जुड़ी चीजों की तो एक सांसद को 50 हजार यूनिट फ्री बिजली, 1 लाख 70 हजार फ्री कॉल्स, 40 लाख लीटर पानी, रहने के लिए सरकारी बंगला (जिसमें सारे फर्नीचर और एयरकंडीशन, और इनका मेंटेनेंस भी फ्री) शामिल है।
बात करें भत्ते में जुड़ी चीजों की तो एक सांसद को 50 हजार यूनिट फ्री बिजली, 1 लाख 70 हजार फ्री कॉल्स, 40 लाख लीटर पानी, रहने के लिए सरकारी बंगला (जिसमें सारे फर्नीचर और एयरकंडीशन, और इनका मेंटेनेंस भी फ्री) शामिल है।
ये तो मिलना ही है
इस सबके अलावा जो बचता है, वो है सिक्युरिटी गार्ड्स, जिंदगीभर की पेंशन, जीवन बीमा और सरकारी गाड़ी, जो सरकार की तरफ से सांसद को मुफ्त दिया जाता है। अब आप भी सोच रहे होंगी कि नेता जी की जिंदगी कितनी आरामदायक होती होगी?
कभी एक सांसद को मिलते थे 20 रूपए महीना
इस सबके अलावा जो बचता है, वो है सिक्युरिटी गार्ड्स, जिंदगीभर की पेंशन, जीवन बीमा और सरकारी गाड़ी, जो सरकार की तरफ से सांसद को मुफ्त दिया जाता है। अब आप भी सोच रहे होंगी कि नेता जी की जिंदगी कितनी आरामदायक होती होगी?
कभी एक सांसद को मिलते थे 20 रूपए महीना
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल 2018-2019 का बजट पेश किया। जिसमें उन्होंने देश के राष्ट्रपति की सैलरी 5 लाख रुपये प्रति महीना दिए जाने का ऐलान किया। वहीं उपराष्ट्रपति का वेतन 4 लाख और राज्यपाल का वेतन 3.5 लाख रुपये करने का प्रस्ताव पेश किया।
बजट से भले ही किसी को फायदा हुआ हो या ना हुआ हो, लेकिन राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपालों को इसका फायदा मिला। वहीं सांसदों के वेतन को लेकर जेटली ने कहा, सांसदों की तनख्वाह में बढ़ोतरी महंगाई इंडेक्स के आधार पर हर 5 साल पर तय होगी। यह 1 अप्रैल 2018 से लागू होगी।
मजे की बात यह है कि संसद में न कोई शोर-शराबा हुआ और न ही किसी ने walkout किया यानि सबकुछ पलक छपकते ही पारित हो गया। इन्हे प्रलोभनों ने आज राजनीति को जनसेवा नहीं बल्कि एक व्यापार बना दिया है।
वहीं कुछ आंकड़े हम आपके सामने पेश कर रहे हैं, जिसमें बताया जा रहा है कि संसद के सदस्यों की सैलरी में अब तक कितना बदलाव हुआ।
मजे की बात यह है कि संसद में न कोई शोर-शराबा हुआ और न ही किसी ने walkout किया यानि सबकुछ पलक छपकते ही पारित हो गया। इन्हे प्रलोभनों ने आज राजनीति को जनसेवा नहीं बल्कि एक व्यापार बना दिया है।
वहीं कुछ आंकड़े हम आपके सामने पेश कर रहे हैं, जिसमें बताया जा रहा है कि संसद के सदस्यों की सैलरी में अब तक कितना बदलाव हुआ।
अगर हम इस बारे में ऐतिहासिक आंकड़ों पर गौर करें तो साल 1921 में संसद के सदस्यों को दैनिक भत्ते के रूप में 20 रुपये मिलते थे। जिसके बाद साल 1945 में दैनिक भत्ता 30 रुपये दिया जाता था। वहीं वाहन भत्ता 15 रुपये था। जिसे साल 1946 में बढ़ाकर 45 रुपये कर दिया गया।
वहीं, मासिक वेतन को लेकर महात्मा गांधी ने जोर देकर कहा था कि सार्वजनिक जीवन में व्यक्तियों को न्यूनतम वेतन लेना चाहिए। उस दौरान संविधान सभा के कुछ सदस्यों को केवल 30 रुपये का भुगतान किया जाता था।
20 मई 1949 को वेतन और दैनिक भत्ते के लिए मसौदा संविधान प्रावधान( Draft Constitution provision) पेश किया गया, जिसमें मासिक आय को 750 से 1000 रुपये के बीच का भुगतान करने के लिए एक सुझाव दिया गया था। लेकिन एक दम से इतने पैसे बढ़ाने के लिए विधानसभा ने आपत्ति जताई थी।लेकिन दैनिक भत्ता 30 रुपये से बढ़ाकर 45 रुपये कर दिया गया।
17 अक्टूबर 1949 में वी. आई. मुन्नीस्वामी पिल्लई ने दैनिक भत्ता को 40 रुपये करने के लिए एक प्रस्ताव भेजा। मेंबर ऑफ पार्लियामेंट एक्ट 1954 के तहत मासिक वेतन के रूप में 400 रुपये और दैनिक भत्ता के रूप में 21 रुपये का प्रस्ताव रखा गया। साथ ही 1946 में पेंशन को भी शामिल किया गया।
इतने बदलाव के बाद सैलरी में बढ़ोत्तरी होती गई। जो इस प्रकार है:-
1964 में 500 रुपये, 1983 में 750 रुपये, 1985 में 1000 रुपये, 1988 में 4000 हजार रूपए, 1998 में 12000 रुपये और 2006 में हालिया पैमाने पर 16,000 रुपये की वृद्धि हुई थी। वहीं जिस प्रकार मासिक आय में बढ़ोतरी हुई वहीं दैनिक भत्ते में भी बढ़ोतरी हुई जो इस प्रकार है:- 1964 में 31 रुपये, 1969 में 51 रुपये, 1983 में 75 रुपये, 1988 में 150 रुपये, 1993 में 200 रुपये, 1998 में 400 रुपये और 2001 में 500 रुपये कर दिया गया।
1964 में 500 रुपये, 1983 में 750 रुपये, 1985 में 1000 रुपये, 1988 में 4000 हजार रूपए, 1998 में 12000 रुपये और 2006 में हालिया पैमाने पर 16,000 रुपये की वृद्धि हुई थी। वहीं जिस प्रकार मासिक आय में बढ़ोतरी हुई वहीं दैनिक भत्ते में भी बढ़ोतरी हुई जो इस प्रकार है:- 1964 में 31 रुपये, 1969 में 51 रुपये, 1983 में 75 रुपये, 1988 में 150 रुपये, 1993 में 200 रुपये, 1998 में 400 रुपये और 2001 में 500 रुपये कर दिया गया।
सैलरी के साथ कितनी सुविधाएं लोकसभा के मेंबर को दी जाती है:- एक सांसद को 50 हजार रुपये हर महीने वेतन के रूप में मिलते हैं। जिसके साथ संसदीय क्षेत्र भत्ता 45 हजार रुपये, दैनिक भत्ता 2 हजार रुपये, ऑफिस के खर्चे के लिए 45,000 हजार रुपये मिलते हैं। इसी के साथ ट्रैवलिंग, रेल यात्रा, हवाई यात्रा के लिए सुविधाएं दी जाती है। जो कुल मिलाकर 2 लाख 20 हजार है। सांसद की पत्नी के लिए सुविधाएं: सांसद की पत्नी को रेल यात्रा के लिये फर्स्ट एसी का टिकट मुफ्त दिया जाता है। जिसमें वह साल में 8 बार यात्राएं कर सकती हैं।
No comments:
Post a Comment