आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
राजनीति आज एक भयानक रूप धारण कर रही है, कोई भी गलत काम करों, पकडे जाने पर तुरन्त धर्म और राजनीति से जोड़ कर, अपना बचाव कर, काले धन पर ऐश करते रहो। पहले समाजसेवी ही राजनीती में आते थे, उन्हें कोई लालच नहीं था, परन्तु बदलते परिवेश में आज राजनीति बदमाशी और लूटपाट का सफेदपोशी व्यापार बन चूका है।
कोई प्राइवेट कंपनी तो क्या कोई दुकानदार भी किसी अपराधी को नहीं रखता, राजनीति है कि अपराधियों को ही नेता बना रही है और सरकार खामोश, क्यों? एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है, और आज़म खान जैसे लोग वही काम कर रहे हैं। खैर, अब मुद्दे पर आते हैं।
बॉलीवुड नायक कमाल राशिद खान अपने बेबाक बोल के लिए हमेशा सुर्खियों में छाए रहते हैं. वैसे तो केआरके हमेशा एंटरटेन्मेंट से जुड़े पोस्ट ही अपने ट्विटर हैंडल से करते हैं. लेकिन हाल ही में उन्होंने पोलिटिकल ट्वीट किया है, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. दरअसल, कमाल राशिद खान ने अपने ट्विटर हैंडल से समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को लेकर ट्वीट किया है. हाल ही में आजम खान ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि बंटवारे के समय जो मुस्लिम पाकिस्तान नहीं गए वो आज इसकी सजा भुगत रहे हैं. अब आजम खान के इस कमेंट पर बॉलीवुड एक्टर केआरके ने उनको करारा जवाब दिया है. कमाल राशिद खान ने ट्वीट करते हुए लिखा, 'अगर आजम खान को बंटवारे के समय पाकिस्तान ना जाने का दुख है तो वो अब जा सकते हैं.'
केआरके ने आगे कहा, 'मैं उनके पूरे परिवार को बिजनेस क्लास का टिकट दिलवाने को तैयार हूं. भारत को ऐसे फर्जी लोगों की कोई जरूरत नहीं है, जो अपने फायदे के लिए धर्मों का इस्तेमाल करे.' केआरके के इस ट्वीट पर लोग खूब कमेंट कर रहे हैं. कमाल खान सिर्फ यही नहीं रुके उन्होंने एक और ट्वीट किया. दूसरे ट्वीट में केआरके ने कहा, 'मिस्टर आजम खान कृप्या नोट करें, पाकिस्तानी लोग भारत से आए लोगों को 'मुहाजिर' कहते हैं और उन्हें तीसरी श्रेणी के इंसान की तरह ट्रीट करते हैं. ये जो स्लोगन हैं कि हम सब मुस्लिम एक-दूसरे के भाई-बहन हैं ये सिर्फ केवल किताबों में ही अच्छे लगते हैं. तो मूर्ख ना बनें.'
Mr #AzamKhan please note, Pakistani people call them Muhazirs, who went to Pakistan from India, during the partition and treat them like 3rd grade citizens of Pakistan. Slogans like All Muslims are brothers, look good in the books only. So don’t be a fool twitter.com/kamaalrkhan/st …
आज़म खान शायद अल्ताफ हुसैन को भूल रहे हैं
1947 में भारत छोड़कर पाकिस्तान नहीं जाने के अपने बाप दादों के फैसले को कोसने, उस फैसले पर मातम करने के बजाय आज़म खान अपने उन बाप दादों को धन्यवाद दे कि 1947 में पाकिस्तान नहीं जाकर आज़म खान सरीखों पर असीम कृपा की।
आज़म खान को पता नहीं क्यों अल्ताफ हुसैन का नाम याद नहीं। अल्ताफ हुसैन के बाप दादों ने वही काम किया था जो काम आज़म खान के बाप दादों ने नहीं किया था। अल्ताफ हुसैन के बाप दादे 1947 में भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे। लेकिन वहीं जन्मे अल्ताफ हुसैन ने जब पाकिस्तान में नेता बनने की कोशिश की और वहां की सरकार और सेना के खिलाफ भाषण देने शुरू किए तो उसको रातों रात अपनी जान बचाकर पाकिस्तान से भागना पड़ा। किन्तु अल्ताफ हुसैन के दर्जनों सगे सम्बन्धियों, साथियों सहयोगियों को पाकिस्तानी सेना ने मौत के घाट उतार दिया। अल्ताफ हुसैन पिछले 20 वर्षों से इंग्लैंड में शरणार्थी की ज़िंदगी गुजार रहा है। जबकि आज़म खान इसी देश में रहते हुए यहां की सरकार और सेना के खिलाफ बेखौफ बेलगाम होकर ज़हर उगलता रहता है। ठाठ से नेतागिरी भी करता है।
आज के अल्ताफ हुसैन की कहानी कोई नई कहानी नहीं है बल्कि 70 साल पुरानी है।
आज़ादी के बाद भारत छोड़ कर पाकिस्तान गए आम मुसलमानों की तो बात छोड़िये।
पाकिस्तान के निर्णताओं में शामिल नामी गिरामी मुसलमानों का वहां क्या हश्र हुआ था.? आज आज़म खान को यह याद दिलाना बहुत ज़रूरी है।
तत्कालीन पंजाब (अब हरियाणा) के करनाल के रहनेवाले लियाकत अली को पाकिस्तान के निर्माताओं की सूची में जिन्ना के बाद दूसरा स्थान प्राप्त था। यही कारण है कि 15 अगस्त 1947 को वो पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री बन गया था। लेकिन केवल 4 साल बाद उसको अक्टूबर 1951 में सरेआम गोलियों से भूनकर मौत के घाट उतार दिया गया था।
बंगाल के मुर्शिदाबाद के नवाब परिवार का नवाबजादा इस्कंदर मिर्ज़ा भी पाकिस्तान बनवाने वाले टॉप 5 नेताओं में शामिल था। तत्कालीन भारतीय-ब्रिटिश सेना में मेजर जनरल रहा तथा लियाकत अली खान का डिफेंस सेक्रेटरी रह चुका इस्कंदर मिर्ज़ा पाकिस्तान का संविधान बनने के बाद 1956 में पाकिस्तान का पहला राष्ट्रपति बना था लेकिन केवल 2 साल बाद 1958 में जनरल अयूब खान ने उस मुहाजिर इस्कंदर को लतिया कर कुर्सी से उतार दिया था और उसकी कुर्सी पर खुद बैठ गया था। उसकी सैन्य पृष्ठभूमि के कारण अयूब खान ने उसको मौत के घाट तो नहीं उतारा था लेकिन इस शर्त के साथ कि वो हमेशा के लिए पाकिस्तान से बाहर चला जाए। इस तरह इस्कंदर को हमेशा के लिए पाकिस्तान से खदेड़ दिया गया था। 1959 से लेकर 1969 में हुई अपनी मौत तक इस्कंदर मिर्ज़ा इंग्लैंड में एक शरणार्थी की तरह रहा और होटल में काम कर के आजीविका चलाता रहा।
पंजाब के जालंधर में जन्मा जनरल जिया उल हक जब किसी तरह जोड़तोड़ कर के पाकिस्तान का राष्ट्रपति बना तो कुछ वर्ष बाद ही उसको कुत्ते की मौत जिस तरह मारा गया था, वह नज़ारा पूरी दुनिया ने देखा था। दिल्ली में जन्मा एक और मुहाजिर परवेज़ मुशर्रफ कुछ ही समय राष्ट्रपति रह पाया और उसे हमेशा के लिए पाकिस्तान से खदेड़ दिया गया है। आजकल अपनी जान बचाने के लिए वो पाकिस्तान से बाहर दुबई में अपने अंतिम दिन गिन रहा है।
यह तो केवल कुछ उदाहरण हैं, जो पाकिस्तान की राजनीति में उन मुसलमानों की शर्मनाक स्थिति की सच्चाई बताते हैं जो 1947 में भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे।
लेकिन राजनीति से इतर भी ऐसे उदाहरण हैं जो आज़म खान के मातम की धज्जियां उड़ा देते हैं।
विश्वविख्यात पहलवान गामा भी 1947 में पाकिस्तान चला गया था। 1960 में जब उसकी मौत हुई तो उस समय उसके पास इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे। उसकी मृत्यु से पूर्व उसकी दयनीय स्थिति की खबर मिलने पर कुश्ती के शौकीन रहे भारतीय उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला ने गामा की सहायता के लिए 2000 रु तत्काल भिजवाए थे तथा 300 रुपये प्रतिमाह की पेंशन अपने पास से देना शुरू की थी। उल्लेख आवश्यक है कि उस समय (1959 में) स्वर्ण का मूल्य 102 रुपये प्रति दस ग्राम था। उसकी तुलना में आज स्वर्ण का मूल्य लगभग 354 गुना अधिक है।
इसी तरह मशहूर शायर जोश मलिहाबादी भी भारत नहीं छोड़ने का जवाहरलाल नेहरू का व्यक्तिगत अनुरोध ठुकरा कर पाकिस्तान चला गया था। वहां उसकी इतनी बुरी गत हुई थी कि उसने वापस भारत आकर बसने की बड़ी मार्मिक अपील तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से की थी। लेकिन नेहरू के साथ झूठ बोलकर पकिस्तान चले गए जोश मलिहाबादी की उस करतूत को इंदिरा भूलीं नहीं थीं। अतः उन्होंने मलिहाबादी को टका सा जवाब भिजवा दिया था कि आप अपनी मर्ज़ी से पाकिस्तान गए थे, अतः सरकार अब आपको वापस नहीं लेगी। इसके बाद जोश मलिहाबादी ने बहुत बुरे दौर से गुजरते हुए अपने अंतिम दिन काटे थे।
ऊपर जिन हस्तियों का जिक्र है, उनके पासंग बराबर भी नहीं है आज़म खान। अतः आज़म खान के बाप दादे अगर 1947 पाकिस्तान चले गए होते तो आज़म खान का वहां क्या हाल होता.? इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। इसलिए 1947 में भारत छोड़कर पाकिस्तान नहीं जाने के अपने बाप दादों के फैसले को कोसने, उस फैसले पर मातम करने के बजाय आज़म खान अपने उन बाप दादों को धन्यवाद दे कि 1947 में पाकिस्तान नहीं जाकर आज़म खान सरीखों पर असीम कृपा की।
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